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संविधान दिवस लोकतांत्रिक भारतवर्ष की आत्मा का प्रतीक

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द फॉलोअप टीम, दिल्ली: 

भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराम अम्बेडकर जी की 125वीं जयंती वर्ष के अवसर पर 2015 में भारत सरकार ने हर साल 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया हमारे संविधान के मुख्य शिल्पकार के प्रति कृतज्ञता को दोहराने के लिए एक सराहनीय पहल है। मोदी सरकार ने संविधान दिवस के रूप में भारतीय संविधान निर्माताओं को सदैव स्मरण रखने और उनको श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित करने का प्रस्ताव किया था ताकि देश की वर्तमान पीढ़ी संविधान को जान सके। भारत का संविधान भारत का सर्वोच्च विधान है जो विश्व के सभी देशों में सबसे विस्तृत है संविधान में देश, प्रांत, धर्म तथा भारतीय नागरिकों के लिए सभी कानून तथा नीतियां नियोजित की गई हैं जिसके परिणामस्वरूप भारत का संविधान विश्व का वृहदतम् संविधान बनकर सामने आया है।

सभी नागरिक समान रूप से भारतीय
भारत का संविधान भारत को सम्प्रभुता सम्पन्न, समाजवादी तथा पंथनिरपेक्ष देश बनाता है जिसका अर्थ यह हुआ की भारत में रहने वाली सभी नागरिक समान रूप से भारतीय है उनको धर्म तथा मजहब के रूप में संविधान द्वारा विभाजित नहीं किया गया है जिसका उदाहरण हमें संविधान की प्रस्तावना से ही समझ में आ जाता है जिसकी शुरुआत हम भारत के लोग से होती है जिसका अर्थ यह हुआ कि भारत के सभी धर्म और वर्ग के लोग संविधान में अपनी आस्था रखते हैं। संविधान में मौलिक कर्तव्य, मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देशक तत्व मिलकर भारत के संविधान की आत्मा कहलाते हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने एक भविष्योन्मुख और जीवंत दस्तावेज तैयार किया जो एक तरफ हमारे आदर्शों और आकांक्षाओं को दर्शाता है, और दूसरी तरफ सभी भारतीयों के भविष्य की रक्षा का आश्वासन भी देता है। संविधान सिर्फ एक किताब नहीं है बल्कि आम इंसान की आकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने का एक साधन है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम एवं सभ्यतागत मूल्य इस संविधान में परिलक्षित होते हैं।

अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू
डॉ भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान सभा की प्रारूप समिति ने अद्वितीय विवेक, ईमानदारी, धैर्य और परिश्रम का परिचय दिया और संविधान को अंतिम रूप देने का काम किया। उन्होंने सरदार पटेल, नेहरू, मौलाना आजाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि के साथ मिलकर एक मजबूत मसौदा तैयार किया और सभी भारतीय नागरिकों के लिए एक बेहतर भविष्य का मार्ग प्ररस्त किया। संविधान सभा में अपने एक भाषण में, डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक नैतिकता के महत्व को रेखांकित करते हुए इस बात पर जोर दिया कि संवैधानिक नैतिकता' का सार संविधान को सर्वोच्च मानना और संवैधानिक रूप से अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन करना है। राज्य के तीनों अंगों, संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों, नागरिक समाज के सदस्यों और भारत के आम नागरिकों से संवैधानिक नैतिकता के पालन की अपेक्षा की जाती है। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू है। जब हम मौलिक अधिकारों की बात करते हैं तो हमें अपने  का भी स्मरण होना चाहिए। कर्तव्यों मानवता की भावना का विकास करना भी नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है। हमें संविधान के मूल्यों का पालन करने और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए अपने ऊपर जिम्मेदारी की समान भावना रखने की जरूरत है। 

सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र 
बाबासाहेब ने संविधान सभा में राष्ट्र के भविष्य पर बोलते हुए कहा- "26 जनवरी 1950 को हम अंतर्विरोधों के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमारे पास समानता होगी और सामाजिक और आर्थिक ढांचे में हम एक व्यक्ति एक मूल्य के सिद्धांत को नकारते रहेंगे। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के महत्व को रेखांकित किया। 13 दिसंबर 1945 को नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्यों और उद्देश्यों पर संकल्प पर बोलते हुए संविधान सभा के अपने पहले भाषण में, डॉ अम्बेडकर ने एक संयुक्त और अखंड भारत की दृष्टि और संभावना परचर्चा की थी। 

अनुच्छेद 370 पर भी उनका यही मत
हैदराबाद, कश्मीर, त्रावणकोर आदि राज्यों में अशांति के संदर्भ में जो भारतीय संघ में शामिल होने के इच्छुक नहीं थे, अम्बेडकर ने कहा- 'भारतीय राज्य, भारत के अभिन्न अंग है। संघ उन्हें अपने भीतर अलगाव के द्वीपों के रूप में मौजूद रहने की अनुमति नहीं दे सकता है। वह संयुक्त भारत की प्राप्ति के लिए भारतीय संघ में राज्यों के एकीकरण के पक्षधर थे। अनुच्छेद 370 पर भी उनका यही मत था। उन्होंने विशेष दर्जे की मांग को ठुकरा दिया और सलाह दी कि 'आप चाहते हैं कि भारत कश्मीर की रक्षा करें, अपने लोगों को खिलाए, कश्मीरियों को पूरे भारत में समान अधिकार दे। लेकिन आप भारत और भारतीयों को कश्मीर में सभी अधिकारों से वंचित करना चाहते हैं। मैं भारत का कानून मंत्री हूं. मैं राष्ट्रीय हित में इस तरह के विश्वासघात का पक्षधर नहीं हो सकता।

समाज की परिकल्पना 
मोदी सरकार द्वारा 2019 में धारा 370 के निरस्त होने से न केवल भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को लक्ष्य मिला है, बल्कि इसने जमीनी स्तर पर भी बड़े बदलाव लाए हैं। अब जम्मू और कश्मीर की महिलाओं और अनुसूचित जाति एवं जनजाति को भी आरक्षण एवं मानवाधिकार उपलब्ध हो सकेंगे। अम्बेडकर ने समान नागरिक संहिता पर आधारित भारतीय राष्ट्र और समाज की परिकल्पना की थी। मोदी सरकार द्वारा बर्बर और स्त्री दमनकारी तीन तलाक की समाप्ति अम्बेडकर के इस स्वप्न को पूरा करने का एक मानवोचित प्रयास है। समान नागरिक सहिता की पूर्ण स्थापना ही अम्बेडकर जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिसके लिये मोदी सरकार कृत संकल्पित प्रतीत हो रही है। अम्बेडकर ने भारत के लिए समान नागरिक संहिता से युक्त एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की परिकलपना की थी जिससे बंधुत्व भावना पैदा होगी और संविधान की प्रस्तावना में निहित बंधुत्व को वास्तविक अर्थ मिलेगा। कांग्रेस पार्टी ने 57 वर्षों तक शासन किया है लेकिन इसने सामाजिक उद्देश्यों के बजाय अपने राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संवैधानिक लक्ष्यों और आदर्शों की अनदेखी की है। हमारे संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों को लागू करने के लिए उसके पास कभी भी राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी।

संविधान का दुरुपयोग
"एक परिवार के स्वार्थी व्यक्तिगत हितों के कारण संविधान का दुरुपयोग किया गया था और पूरे देश को एक जेल में बदल दिया गया था, जिसमें प्रमुख विपक्षी नेताओं और आम नागरिको को आपातकाल के दौरान कैद किया गया था। डॉ. अम्बेडकर ने स्वस्थ लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए विपक्ष की रचनात्मक भूमिका को समझा था। हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने संसद में बहस और विचार-विमर्श को रोकने के लिए केवल संसद व्यवधान पैदा करने का सहारा लिया। यह संविधान के प्रति कांग्रेस पार्टी की भक्ति को दर्शाता है। इसने राजनीतिक लाभ के लिए धर्म और जाति का इस्तेमाल किया और देश में समावेशी विकास सुनिश्चित करने की कभी परवाह नहीं की। सिर्फ वोटों के लिए उन्होंने शाह बानो मामले में एक प्रगतिशील समानता आधारित फैसले को रद्द कर दिया, जिसने मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता का अधिकार दिया था। आज संविधान के लिए कोई खतरा नहीं है, कोई आपात स्थिति नहीं है, कोई सेंसरशिप नहीं है, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी नहीं है, न्यायपालिका का अतिक्रमण नहीं है। इस समय में सब कुछ पारदर्शी है। मोदी सरकार "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास आदर्श से संचालित हो रही है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के तहत, गरीबों में से सबसे गरीब या अंत्योदय के उत्थान के दर्शन को एक जमीन मिली है। इसका उद्देश्य हमारी मानव संसाधन को सबसे बड़ा संसाधन बनाना है। वर्तमान सरकार द्वारा समाज के कमजोर और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए एक सुस्पष्ट और लक्षित दृष्टिकोण की अवधारणा की गई है।

भारत की एकता को सुरक्षित रखने का स्वप्न
डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय संविधान के माध्यम से भारतीयों की गरिमा और भारत की एकता को सुरक्षित रखने का स्वप्न देखा था। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा बनाई गई कोई भी नीति डॉ० भीमराव अम्बेडकर के इन जुड़वां आदर्शो पर आधारित है। कांग्रेस ने 57 वर्षों तक देश पर शासन किया लेकिन नागरिकों को बिजली, पानी, बैंक खाते, शौचालय, घर आदि जैसी बुनियादी मानवीय सेवाएं प्रदान नहीं की गई। मोदी सरकार ने पिछले सात वर्षों में बाबासाहेब के सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के आदर्शों को पूरा करने का प्रयास किया है और विश्वास है कि यह यात्रा मंजिल मिलने तक सतत जारी रहेगी।
डॉ. मुकेश कुमार सहायक प्राध्यापक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के साथ साथ राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनुसूचित जाति मोर्चा, भाजपा हैं। 
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