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चायवाले इस बच्‍चे केेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे हौसले जानकर आप हो जाएंगे हैरान

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मुंबई के सुब्‍हान की कहानी उसकी ही ज़ुबानी

अम्मी पिछले बारह वर्षों से परिवार की एकमात्र कमाने वाली हैंं। जब से अब्बू का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्होंने छोटे काम से शुरुआत की और आखिरकार बस अटेंडेंट बन गईं। वह अधिक घंटे काम करती थीं और कभी भी छुट्टी नहीं लेती थींं। क्योंकि वह हमें खूब-पढ़ाना चाहती थीं। उन्‍होंने अब्बू की भूमिका को भी बखूबी निभाया और मुझे या मेरी बहनों को कभी भी उनकी कमी महसूस नहीं होने दी।

पायलट बनाने का मां का सपना

लेकिन वह पढ़ाई को लेकर बहुत सख्त हैं। एक बार जब मैं भूगोल में लगभग फेल हो गया, तो वह बहुत परेशान थीं... मुझे पास बैठाया और कहा, 'पढ़ाई ही आगे ले जाएगी।' मुझसे कहा कि वह मुझे एक फाइटर पायलट के रूप में वायु सेना में शामिल होते देखना चाहती हैं। उसकी आँखों में आशा का वह उल्लास देखकर मैंने उस सपने को अपना बना लिया और खूब मन लगाकर पढ़ाई करने लगा। मेरे ग्रेड में सुधार हुआ और मेरी उपस्थिति 100% हो गई।

 

लॉक डाउन में मां की नौकरी गई

लेकिन सच कहूं तो मुझे स्कूल जाना भी बहुत पसंद था। अंग्रेजी मेरा पसंदीदा विषय है। बहुत सारी कहानियां हैं, मैं उन्हें कभी खत्म नहीं करना चाहता, और फिर मेरे सारे दोस्त भी स्कूल में हैं।  मुझे अवकाश के दौरान बुक और क्रिकेट खेलने की याद आती है- पिछली बार जब हम एक साथ खेले थे तो मार्च में थे। उसके बाद हम लॉकडाउन में चले गए। बहुत दुख की घड़ी थी। अम्मी ने अपनी नौकरी खो दी और फिर क्योंकि हम इसे वहन नहीं कर सकते थे, मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा। 

घर में पैसे नहीं, छोड़ा स्‍कूल, कमाए 100 रु

लॉकडाउन के एक महीने में हमारे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं थे। यहाँ तक कि मेरा गुल्लक भी खाली था। इसलिए मैंने पास के किराना अंकल से बात की और वह मुझे अपना छोटू नियुक्त करने के लिए तैयार हो गये। मैंने एक दिन में केवल 100 रुपये कमाए, लेकिन कम से कम हमें भूखा नहीं सोना पड़ा।कुछ महीने बाद, मैंने देखा कि एक चाचा टपरी चला रहे हैं। मैंने सूरज के नीचे उनसे हर सवाल पूछा और फिर चाय बेचने का फैसला किया।  वैसे भी अम्मी अक्सर कहती हैं कि मेरी चाय उनकी सारी चिंताएं पिघला देती है।

नागपाड़ा की गलियों में बेचने लगा चाय

अगले दिन से ही मैं नागपाड़ा की गलियों में चाय बेचने लगा। परांठे वाले अंकल ने मुझे एक कोने मे जगह दी। वे काफी दयालु हैं। मैं अपनी चाय उनके स्टॉल पर बनाता हूं और फिर उसे दुकान के मालिकों की सेवा के लिए सड़क पर लाता हूं। मैं दोपहर 1 बजे से 1:30 बजे तक काम करता हूं। क्षेत्र में हर कोई मुझे अब जानता है।वे सब बहुत अच्छे हैं। लेकिन अम्मी बहुत खुश नहीं है-वह खुद को दोष देती हैं। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि क्यों- इतने सालों में उसने ही हमें परिवार को सबसे पहले साथ रहना सिखाया, तो जब मैं ऐसा कर रहा हूं तो यह गलत क्यों है। 

मां! करुंगा आपका सपना पूरा

शायद उसे इस बात की चिंता है कि मैं फाइटर पायलट नहीं बन पाउँगा। लेकिन मैं तुमसे वादा करता हूँ, मैं वापस स्कूल जाऊंगा।  बहुत समय हो गया है जब मैंने आखिरी बार कोई कहानी सुनी या अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला। लेकिन तब तक, मैं अपने परिवार की खातिर एक चायवाला बनकर खुश हूं। आखिर...मेरी चाय हर चिंता को पिघला देती है।

(Humens of Bombay मार्फ़त शशांक गुप्ता)

 

(लेखक शशांक  गुप्‍ता कानपुर में रहते हैं। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन ।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।