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आर्मी चीफ ने किस जांबाज़ को हेलिकॉप्टर से बुलवाया और उसकी गठरी से खाई दो रोटी और प्‍याज

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रजनीकांत शुक्ल, दिल्‍ली:

'पागी' भारतीय सेना में एक पोस्ट का नाम है। 'पग' यानी कि पैर के निशान देखकर रेगिस्तान में रास्ता बताने वाले यानी मार्गदर्शक को 'पागी' कहा जाता है।  इस पोस्ट का गठन गुजरात के बनासकांठा जिले के पाकिस्तान सीमा से सटे गाँव पेथापुर गथड़ों के रहने वाले रणछोड़दास रबारी के नाम पर किया गया। जो गाएं चराया करते थे। उनमें इतना हुनर था कि ऊँट के पैरों के निशान देखकर वे बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार हैं। इंसानी पैरों के निशान देखकर वज़न से लेकर उम्र तक का अन्दाज़ा लगा लेते थे। कितनी देर पहले का निशान है तथा कितनी दूर तक गया होगा, सब एकदम सटीक आकलन, जैसे कोई कम्प्यूटर का हिसाब हो।

58 साल की उम्र में पुलिस के मार्गदर्शक

जिस उम्र में अमूमन लोग रिटायर होते हैं उस 58 साल की उम्र में उन्हें जिले के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने पुलिस के मार्गदर्शक के रूप में रख लिया।1965 के पाकिस्तान के साथ युद्ध के आरम्भ में पाकिस्तानी सेना ने भारत के गुजरात में कच्छ सीमा स्थित विधकोट पर कब्ज़ा कर लिया। इस मुठभेड़ में लगभग सौ भारतीय सैनिक हताहत हो गये थे तथा भारतीय सेना की एक दस हजार सैनिकों वाली टुकड़ी को तीन दिन में छारकोट पहुँचना आवश्यक था। तब आवश्यकता पड़ी थी, पहली बार रणछोडदास पागी की। रेगिस्तानी रास्तों पर अपनी पकड़ की बदौलत उन्होंने सेना को तय समय से बारह घण्टे पहले मंजिल तक पहुँचा दिया था। सेना के मार्गदर्शन के लिए उन्हें भारतीय सेना के जनरल सैम मानिक शा ने खुद चुना था तथा सेना में एक विशेष पद सृजित किया गया- 'पागी'। अर्थात- पग अथवा पैरों का जानकार।

और पाकिस्तानी शहर पर फहराया तिरंगा
भारतीय सीमा में छिपे बारह सौ पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन तथा अनुमानित संख्या केवल उनके पदचिह्नों से पता कर भारतीय सेना को बता दी तथा इतना ही काफ़ी था, भारतीय सेना के लिए वो मोर्चा जीतने के लिए। इसी तरह सन 1971 के युद्ध में सेना के मार्गदर्शन के साथ-साथ अग्रिम मोर्चे तक गोला-बारूद पहुँचाना भी पागी के काम का हिस्सा था। पाकिस्तान के पालीनगर शहर पर जो भारतीय तिरंगा फहराया गया था, उस जीत में पागी की अहम भूमिका थी। सैम साब ने स्वयं तीन सौ रुपए का नक़द पुरस्कार अपनी जेब से दिया था। पागी को उनकी सेवाओं के लिए भारतीय सेना से तीन सम्मान भी मिले 65 व 71 के युद्ध में उनके योगदान के लिए - संग्राम पदक, पुलिस पदक व समर सेवा पदक। उत्तर गुजरात के 'सुईगाँव' अन्तर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक सीमा चौकी को 'रणछोड़दास सीमा चौकी' नाम दिया गया।

 

डिनर में एक रोटी सैम साहब ने खाई और दूसरी पागी ने

2009 में पागी ने 108 वर्ष की आयु में सेना से 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति' ले ली और सन् 2013 में 112 वर्ष की आयु में 'पागी' का निधन हो गया। एक फ़िल्म आने वाली है, जिसका नाम है 'भुज - the pride of India' इसमें फिल्म अभिनेता संजय दत्त रणछोड़दास रबारी 'पागी' का किरदार निभा रहे हैं। 2008 फील्ड मार्शल मानेक शॉ वेलिंगटन अस्पताल, तमिलनाडु में भर्ती थे। गम्भीर अस्वस्थता तथा अर्धमूर्छित अवस्था में वे एक नाम अक्सर लेते थे - 'पागी-पागी', डाक्टरों ने एक दिन पूछ ही लिया-सर, ये पागी कौन है? तब उन्होंने बताया। 1971 का युद्ध भारत जीत चुका था, जनरल मानेक शॉ ढाका में थे। आदेश दिया कि पागी को बुलवाओ, डिनर आज उसके साथ करूँगा। हेलिकॉप्टर भेजा गया। हेलिकॉप्टर पर सवार होते समय पागी की एक थैली नीचे रह गई, जिसे उठाने के लिए हेलिकॉप्टर वापस उतारा गया। अधिकारियों ने नियमानुसार हेलिकॉप्टर में रखने से पहले थैली खोलकर देखी, तो दंग रह गए। क्योंकि उसमें दो रोटी, प्याज तथा बेसन का एक पकवान गाठिया था। डिनर में एक रोटी सैम साहब ने खाई एवं दूसरी पागी ने।

(गाजियाबाद के रहनेवाले लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।