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भूले-बिसरे: इस मशहूर फिल्मी जोड़ी को कहा जाता था 'भारतीय लॉरेल-हार्डी'

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मनोहर महाजन, मुम्बई:

गोरी' और 'दीक्षित' एक कॉमेडी जोड़ी थी जिसमें नज़ीर अहमद गोरी और मनोहर जनार्दन दीक्षित शामिल थे। वे 1930 और 1940 के दशक के दौरान भारतीय सिनेमा में सक्रिय थे। उन्हें 'भारतीय लॉरेल-हार्डी' कहा जाता था। दोनों ने 'दो बदमाश', 'सीतामगढ़', 'तूफानी टोली' और 'भोला राजा' सहित कई फिल्मों में अभिनय किया थ। उनकी अधिकांश फिल्मों का निर्माण रंजीत स्टूडियो द्वारा किया गया था। दीक्षित मोटे थे जबकि गोरी एक दुबले-पतले व्यक्ति थे और उनकी जोड़ी ने कई शुरुआती टॉकीज़ में एक हास्य तत्व के रूप में काम किया। दोनों ने पहली बार 1932 जयंत देसाई द्वारा निर्देशित टॉकी 'चार चक्र' में एक साथ अभिनय किया। उन्होंने  जयंत देसाई द्वारा निर्देशित कई अन्य फिल्मों में अभिनय किया -'भोला शिकार', 'भूल भुलैयां' और 'विश्वमोहिनी'.उन्होंने 1947 तक रंजीत स्टूडियोज़ में अभिनय करना जारी रखा।

गोरी का जन्म 11 अगस्त 1901 को बॉम्बे में हुआ था। उन्होंने 1927 में भगवती प्रसाद मिश्रा द्वारा निर्देशित 'अलादीन एंड हिज़ वंडरफुल लैंप' और 'सेंटेड डेविल' के साथ अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। रंजीत फिल्म कंपनी में शामिल होने से पहले, गोरी ने कई अन्य प्रोडक्शन कंपनियों के साथ काम किया था। उनकी आखिरी भारतीय फिल्म 1948 दुनियादारी थी। दीक्षित की मृत्यु के बाद गोरी पाकिस्तान चला गया. उन्होंने वहां अभिनय करना जारी रखा और 9 दिसंबर 1977 को 76 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

दीक्षित का जन्म 12 नवंबर 1906 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के सिन्नार में हुआ था। वह एक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की सबसे बड़ी संतान थे। दीक्षित ने 'नवजीवन स्टूडियो में' एक सहायक कैमरामैन के रूप में प्रवेश किया। जब किसी ने सुझाव दिया कि वह एक नवाब के रूप में अच्छे दिखेंगे, तो उन्हें जयराज और माधव काले के साथ 1930 की फ़िल्म 'शार्कलिंग यूथ' में कास्ट किया गया। तीन और फिल्मों 'बदमाश', 'बिजली' और 'वनदेवी' में अभिनय करने के बाद (सभी 1930 में रिलीज़ हुई) वह रंजीत फिल्म कंपनी में शामिल हो गए।1947 में फ़िल्म 'पुगरी' की मुख्य फोटोग्राफ़र की हैसियत से काम करते हुए के उन्हें दिल का दौरा पड़ा। 29 जून 1949 को मुंबई में 42 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.उनकी आखिरी फिल्म 'महात्मा' थी जो 1953 में रिलीज़ हुई थी।

 

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।