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एक फेसबुकिया पोस्ट ने आखिर कैसे समूचे बांग्लादेश को सांप्रदायिक हिंसा में झोंक दिया

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पुष्परंजन, दिल्‍ली:

काजी नज़रूल इस्लाम की कर्मभूमि कोमिल्ला में 1931 में किसान आंदोलन हुआ था, तब गांधी, टैगोर भी गए थे कोमिल्ला। उसी जगह एक फेसबुकिया पोस्ट ने दंगे की दावाग्नि देशव्यापी कर दी। क्या यह साज़िश थी पाकिस्तान की? आईएसआई प्रमुख हज़ारों मील दूर कोसोवो में हथियार भेजकर दंगे करवा सकता है, बांग्लादेश में इनके लिए क्या मुश्किल है। परेशान करनेवाली बात त्रिपुरा और असम में होने लगी, जहाँ के मुख़्यमंत्री बयानबाज़ी करने लगे, जबकि यह काम केंद्र का है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से बांग्लादेश का कोमिल्ला मात्र 98 किलोमीटर की दूरी पर है। कमल के फूल से लबरेज तालाब हुआ करते थे कोमिल्ला में। आठवीं सदी में त्रिपुरा के देव राजवंश का शासन और 1400 के बाद माणिक्य वंशी राजाओं का लंबा शासन। वर्ष 1764 में त्रिपुरा के राजा जगत माणिक्य के विरुद्ध किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था शमशेर ग़ाज़ी ने, तब जनता ने राजशाही से छुटकारा पा लिया था। काजी नज़रूल इस्लाम की कर्मभूमि कोमिल्ला, जहां प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आने के विरुद्ध बहुचर्चित कविता की रचना उन्होंने की थी। मालगुजारी के खिलाफ़ किसान विद्रोह एकबार फ़िर 1931 में हुआ था, तब महात्मा गांधी और टैगोर कोमिल्ला आये थे। उसी ऐतिहासिक कोमिल्ला में दुर्गा पूजा के दिन ऐसी कम्युनल दावाग्नि धधक उठी, जिसकी लपटें देश के हर कोने को छूने लगी हैं। 

 

Bangladesh Strengthens Security as Violence Targets Hindu Festival - The  New York Times

पहले लगा कि शेख़ हसीना सरकार ने सब कुछ काबू कर लिया है। मगर, ऐसा हुआ नहीं। इस बार फितने की शुरुआत 13 अक्तूबर, 2021 को कोमिल्ला के नानूआर दिधी के दुर्गा पूजा मंडप पर फेसबुकिया पोस्ट से हुई। पोस्ट में एक तस्वीर डाली गई थी कि मूर्तियों के पांव के पास किसी ने कुरान शरीफ रख दी है। पलक झपकते पवित्र ग्रंथ के अपमान ने दंगे का रूप ले लिया। न तो किसी ने इसकी पुष्टि करनी चाही, न ही फेसबुक वालों ने तस्वीर हटाने जैसी त्वरित कार्रवाई की। तस्वीर वायरल होने में कुछ सेकेंड लगे। 80 से अधिक पूजा के पंडाल तहस-नहस कर दिये गये, डेढ़ सौ से अधिक वो लोग घायल हुए, जो पूजा-पाठ में लगे हुए थे। दो शव कोमिल्ला में बरामद हुए थे, जो हिंदुओं के बताये गये। 

13 अक्तूबर को ही कोमिल्ला से 70 किलोमीटर दूर चांदपुर में दंगइयों को रोकने के वास्ते जो पुलिस फायरिंग हुई, उसमें चार मारे गये। नोआखाली, फेनी, रंगपुर, बंदरबन हिंसक भीड़ की वजह से सर्वाधिक संवेदनशील दिखने लगे। 64 में से 22 प्रशासकीय ज़िलों में दंगारोधी पुलिस तैनात है। पांच दिनों में 450 लोग पकड़े गये हैं, हिंदुओं के विरुद्ध हमले के 71 मामले दर्ज़ किये गये हैं। सोमवार शाम को पुलिस ने रंगपुर के पीरगंज में 16 साल के किशोर परितोष राय को गिरफ्तार किया, जिसके फेसबुक पोस्ट से फसाद की शुरुआत बताई जा रही है। मगर, रंगपुर इस गिरफ्तारी मात्र से शांत नहीं हो पाया, देखते-देखते दंगइयों ने उस इलाके में 25 घरों को आग लगा दी, और 90 जगहों पर लूटपाट की। रंगपुर में 45 लोग हिंसा-आगजनी के आरोप में पकड़े गये हैं। 

10 फीसद हिंदू आबादी वाले बांग्लादेश के ग़ैर-मुस्लिम संगठनों के नेता सड़कों पर हैं। जातीयो हिंदू महाजोट के नेता गोविंद चंद्र की गिरफ्तारी की मांग सत्तारूढ़ अवामी लीग के सांसद बदरूद्दीन कर रहे हैं। ढाका गरमाया हुआ है। वहां ‘शाहबाग़ प्रोटेस्ट’ पूरी दुनिया देख रही है। उस जगह पर विश्वविद्यालय के छात्र, महिलायें, विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के लोग 18 अक्तूबर से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। इधर सीमा पार कुछ और मंज़र है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देब ने 17 अक्तूबर को बांग्लादेश में हिंदुओं पर कहर बरपाये जाने की भर्त्सना करते हुए शेख हसीना सरकार को निशाने पर लिया। बल्कि, बिप्लव देब ने बांग्लादेश में तैनात भारत के उच्चायुक्त के. दोराईस्वामी को फोन कर वस्तुस्थिति की जानकारी ली। यह कूटनीतिक लक्ष्मण रेखा लांघने का ही उपक्रम है। त्रिपुरा में हिंदू राजनीति का हरावल दस्ता बांग्लादेश के उपउच्चायुक्त मोहम्मद जुवैद हुसैन के पास भी प्रतिरोध व्यक्त करने पहुंच गया। ममता बनर्जी यदि इस घटनाक्रम पर चुप हैं, तो संभवतः उन्होंने अपनी राजनीति का सीमांकन कर रखा है। 

 

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भारत-बांग्लादेश की 4 हज़ार 96 किलोमीटर लंबी सीमा असम, त्रिपुरा, मिज़ोरम, मेघालय और पश्चिम बंगाल जैसे पांच राज्यों को छूती है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा शर्मा भी बोल गये कि हिंदुओं पर ज़ुल्म ढाने वालों के खि़लाफ शेख हसीना त्वरित कार्रवाई करें। गुवाहाटी में उपउच्चायुक्त कार्यालय पर प्रतिरोध प्रदर्शन, शेख़ हसीना सरकार को कोसने जैसे काम विहिप, बजरंग दल के कार्यकताओं ने किये। बराक घाटी, सिल्चर, करीमगंज हिंदू संगठनों के विरोध प्रदर्शन से गरमाये जा चुके हैं। मिज़ोरम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने अब तक ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। पांच सीमावर्ती राज्यों में से केवल असम और त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों ने सीमा पार की हिंसक गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी की। ऐसी बातों का क्या भविष्य की कूटनीति पर प्रभाव पड़ेगा? इस पर केंद्र सरकार को सोचना चाहिए।

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जो कुछ बांग्लादेश में हुआ, निश्चित रूप से उसे एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा माना जाना चाहिए, जिससे बांग्लादेश-भारत के रिश्तों में खटास की संभावना अधिक नज़र आती है। यह खटास शेख़ हसीना के हालिया बयान में भी ध्वनित हो रही थी, जब उन्होंने भारत के हिंदूवादियों को संयम बरतने की नसीहत दी थी। 26 से 27 मार्च को पीएम मोदी बांग्लादेश गये थे। वहां पूजा-पाठ किया था, हिंदू नेताओं से भी मिले थे। तब बंग बंधु की याद में समारोहों और रिश्तों की गरमाहट का स्मरण कीजिए। उस सौहार्दपूर्ण माहौल को क्या पाकिस्तान बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था? ईश निंदा और पवित्र धर्म ग्रंथ के कथित अपमान के बहाने अल्पसंख्यकों को मारने-काटने, पूजा स्थलों के विध्वंस में पाकिस्तान तो एक्सपर्ट माना जाता है। वह एक्सपोज होता है, तो वहां की अदालतें मंदिरों के तोड़े जाने पर मुआवजे की घोषणा कर जैसे-तैसे पाकिस्तान की साख़ बचाती हैं।

एक घटना की चर्चा यहां ज़रूरी है। सितंबर, 2011 में हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने आईएसआई के पूर्व चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जावेद नासीर को सौंपने की मांग कर दी, जिस पर आरोप था कि 1993 से 1995 के बीच बोस्निया के मुस्लिम फाइटर्स को दंगे के वास्ते बड़ी मात्रा में हथियार मुहैया कराये थे। पाकिस्तान ने उन्हें हेग सौंपने से मना इस बिना पर किया कि वे स्मृति लोप के शिकार हैं। सोचने वाली बात है कि जब आईएसआई बोस्निया में ऐसे ऑपरेशन कर सकती है, तो बांग्लादेश में क्यों नहीं? इस कांड से कई लक्ष्य सधते दिख रहे हैं। बरसों मुर्दा पड़ी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएमपी) के पर लग गये हैं। बीएमपी ने दंगे की जांच के वास्ते जिस तरह दो समानांतर कमेटियों का गठन किया है, उससे राजनीति सेके जाने की बू साफ आ रही है। 25 मार्च, 2020 को जेल से रिहा ख़ालिदा ज़िया की उम्मीदें बंधने लगी हैं। इस पूरे प्रकरण में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की लंबी चुप्पी हैरान करती है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की दक्षिण एशिया प्रतिनिधि साद हमादी ने बांग्लादेश में हिंदुओं की रक्षा की मांग की है। सचमुच कमाल हो गया। पांच दिनों बाद 18 अक्तूबर को बोला एमनेस्टी इंटरनेशनल ने!

(कई देशी-विदेशी मीडिया  हाउस में काम कर चुके लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। संंप्रति ईयू-एशिया न्यूज के नई दिल्ली संपादक)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।