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पाकिस्तान यात्रा-20: श्रीराम के भाई भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर बसा था तक्षशिला

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(हिंदी के वरिष्‍ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्‍होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 20 वां भाग:)

मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:

संग्रहालय से निकलने के बाद हम विभिन्न बुद्धिस्ट स्टूपास जैसे, धर्मराजिका, भल्लर और कुणाला का भ्रमण करते हुए सरकैप की ओर गए। यहां पर तक्षशिला में विभिन्न शासन काल में निर्मित भवन व महल आदि के अवशेष देखने को मिले। यहां मध्य में एक चौड़ा सा रास्ता है जिसके दोनों और लगभग 3 फुट ऊंची और 3 फीट चौड़ी पत्थर की चिनाई की दीवारें बनी हुई हैं जो कभी कमरे रहे होंगे।  देखने से प्रतीत होता है कि सुनियोजित ढंग से शहर बसाने के लिए घर बनाए गए होंगे। कमरों का आकार थोड़ा छोटा है। तक्षशिला का शब्दार्थ है, ' city of cut stone'. पाकिस्तान पुरातत्व विभाग से संबंधित एक कर्मचारी वहां उपस्थित थे जिनसे हमने इन अवशेष के बारे में बताने का अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि तक्षशिला में खुदाई का कार्य उस समय भारतीय पुरातत्व के पिता कहलाए जाने वाले सर अलेक्जेंडर कमिंघम के द्वारा 1863- 64 और फिर 1872- 73 में कराया गया, परंतु कार्य पूर्ण नहीं हुआ।

 

इसके पश्चात सर जॉन हरबर्ट मार्शल ने 1913 से 1934 तक इसकी खुदाई का कार्य पूर्ण कराया जिसके फल स्वरुप भीर माउंड, सरकैप के महल, मोहरा  मोरादू और जूलियन मठ के अवशेष प्राप्त हुए। जनादियल मंदिर और पीपला मंदिर के अतिरिक्त बड़े और छोटे अन्य मंदिरों के अवशेष भी मिले। इसके अतिरिक्त धर्मराजिका, भल्लर और कुणाला स्टूपा के अवशेष प्राप्त हुए। उन्होंने आगे बताया कि ईसा मसीह से 520 वर्ष पूर्व यहां पारसी राजा थे। ईसा मसीह से 320 वर्ष पूर्व सिकंदर-ए-आज़म (अलेक्ज़ेंडर द ग्रेट) ने तक्षशिला के राजा आम्भी पर हमला किया जिनका राज्य सिंधु नदी से जेहलुम नदी तक था और तक्षशिला को राजधानी बना लिया। झेहलुम नदी से चिनार नदी तक सेल्यूकस ( पोरस) का शासन था। सिकंदर और पोरस के युद्ध में पोरस हार गया था और वहां पर भी सिकंदर का शासन हो गया था। ईसा मसीह से 297 वर्ष पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य का शासन था जो 25 वर्षों तक रहा। चंद्रगुप्त मौर्य के बाद बिंदुसार और फिर अशोका द ग्रेट का शासन रहा। कालिंगा के युद्ध में लगभग एक लाख व्यक्ति मारे गये थे और डेड़ लाख व्यक्ति बंदी बनाए गए थे जिसके पश्चात अशोका ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। ईसा मसीह से 90 वर्ष पूर्व तक्षशिला के अंतिम ग्रीक राजा को मऊ द्वारा पराजित किया गया।

इस प्रकार तक्षशिला विभिन्न समय में विभिन्न राजाओं के शासन में रहा जिसकी पुष्टि वहां उपलब्ध अवशेष देखने से भी होती है जो मुख्यतः तीन प्रकार के हैं और हिंदू, ग्रीक वह बुद्धिस्ट आर्किटेक्चर व सभ्यता को दर्शाते हैं। थोड़ा आगे बढ़े तो बायीं ओर एक बड़ा चबूतरा दिखाई दिया जिसकी दीवारों पर मूर्तियां बनी हुई थी। संभवतः यह मंदिर का  अवशेष था। आगे जाकर छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं जिन पर भी इसी प्रकार की पत्थरों की चिनाई की लगभग 3 फुट ऊंची  दीवारें दिखाई दे रही थी। इनके बारे में बताया गया कि यह अशोका का महल था। पहाड़ी पर होने के कारण   हम वहाँ नहीं गए। कर्मचारी के द्वारा यह भी बताया गया कि माइथोलॉजी के अनुसार कुछ का मानना है कि श्री राम के भाई श्री भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर इस स्थान का नाम तक्षशिला हुआ तथा उस समय यहाँ उनका राज्य था। उन्होंने यह भी बताया कि तक्षशिला को 1980 में यूनेस्को विश्व हेरिटेज स्थल घोषित किया गया तथा 2010 में लंदन की मैगजीन 'द गार्जियन' के द्वारा तक्षशिला को पाकिस्तान के पर्यटक स्थलों में  उच्चतम स्थान दिया गया है।

जारी

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पहला भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्‍तान, तो क्‍या हुआ पढ़िये दमदार संस्‍मरण

दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें:  पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्‍तानी

तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण

चौथा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा

पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: दरवाज़े पर ॐ  लिखा पत्‍थर और आंगन में तुलसी का पौधा

छठवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे

सातवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक

आठवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना

नौवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कराची के रत्‍नेश्‍वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता

दसवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान

11वां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची

12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़

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19 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : तक्षशिला की सैर-कभी सनातन और बौद्ध धर्मों का रहा केंद्र

 

 

(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्‍वतंत्र लेखन )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।