ध्रु्व गुप्त, पटना:
जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति के सबसे चमकते सितारे कृष्ण का जन्मदिन है। कृष्ण की स्मृति से उनकी अनगिनत छवियां एक साथ उपस्थित हो जाती हैं - एक बहुत नटखट बच्चा, एक चंचल और पराक्रमी किशोर, एक समर्पित शिष्य, एक आत्मीय मित्र, एक अद्भुत बांसुरी वादक, एक उत्कट प्रेमी, एक विश्वसनीय सहयोगी,एक मानवीय शासक, एक प्रचंड योद्धा, एक मौलिक विचारक, एक महान योगी, एक दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ, एक बेहद चतुर रणनीतिकार और एक विलक्षण दार्शनिक। अपने समय की स्थापित परंपराओं और रूढ़ियों का अतिक्रमण करने वाला एक विलक्षण महामानव जिसने अपने कालखंड को अपने इशारों पर नचाया। उन्होंने शांति की भूमिका भी लिखी और युद्ध की पटकथा भी। उनमें निर्माण की परिकल्पना भी है और विनाश की योजना भी। अथाह मोह भी और असीमित वैराग्य भी। पत्नियों की भीड़ भी और प्रेम का एकांत कोना भी।
हम जिसे उनकी लीला कहते हैं, वह वस्तुतः जीवन के समग्र स्वीकार का उत्सव है। गोकुल के एक चरवाहे से भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व तक की कृष्ण की जीवन-यात्रा युगों से हमें रोमांचित करती रही है। देश की संस्कृति के असंख्य महानायकों के बीच कृष्ण अकेले हैं जिन्हें 'संपूर्ण पुरूष' का दर्ज़ा हासिल है। भारतीय जनमानस में गहराई तक धंसे कृष्ण एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे जीते जी दिव्य पुरुष का आदर मिला और कालांतर में जिन्हें विष्णु का अवतार घोषित किया गया। यह बहस निरर्थक है कि कृष्ण हमारी और आपकी तरह मानव थे अथवा ईश्वर के अंश या अवतार। ईश्वर हमारा स्रष्टा है तो हम सब ईश्वर के ही अंश या अवतार हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कृष्ण ने अपने भीतर का ईश्वरत्व पहचान लिया था और हम अपने वास्तविक स्वरुप की तलाश में अंधेरे में भटक रहे हैं।
अंत में अपनी ही लिखी कविता:
धरा है मुझमें
आसमान भी है
प्रेम मुझमें है
मैं ही प्रेम में हूं
रंग मैं हूं
मेरे भीतर कोई
रंगरेज भी है
मैं ही राधा हूं
कृष्ण भी मैं हूं
मुझमें ब्रज
मुझमें है बरसाने भी
मैं हूं मधुवन में
मुझमें मधुवन भी
मैं बजाता हूं
ये बंशी भी बजाती है मुझे !
(लेखक IPS अधिकारी रहे हैं। स्वेच्छा से रिटायरमेंट लेने के बाद पटना में रहकर संप्रति स्वतंत्र लेखन। कई किताबें प्रकाशित )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।