पटना-कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाना। राजनीति में ये कहावत शुरू से फिट बैठती आ रही है। बिहार चुनाव में भी एक बार फिर इसे दोहराने की कोशिश हो रही है। दरअसल बिहार में 3 महीने बाद विधानसभा चुनाव है । इसे सत्ता का फाइनल माना जा रहा है लेकिन उससे पहले बिहार में विधानपरिषद का चुनाव होने वाला है। इसका बिगुल भी 18 जून को अधिसूचना के साथ बज चुका है। 25 जून को नामांकन की आखिरी तारीख है और 6 जुलाई को मतदान की प्रक्रिया संपन्न होगी। विधानसभा कोटे की खाली हुई विधानपरिषद की 9 सीटों के लिए सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक मतदान होगा। 6 जुलाई को ही शाम 5 बजे से वोटों की गिनती होगी और देर शाम तक परिणाम भी सामने आ जाएगा।
विधानपरिषद की 9 सीटों पर चुनाव
दलगत स्थिति पर नजर डाली जाय तो विधानपरिषद की जिन 9 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं उनमें से 3 सीट जेडीयू, 3 राजद, 2 बीजेपी और एक कांग्रेस के खाते में जाएगी। इसके लिए सभी दल की ओर से प्रत्याशियों का चयन अंतिम दौर में है। बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवार के बारे में जहां दिल्ली के आला नेता फैसला लेंगे। वहीं राजद में लालू यादव और जेडीयू में नीतीश कुमार इस पर फाइनल मुहर लगाएंगे।
सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस
सभी दलों की ओर से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की लंबी चौड़ी फौज हैं लेकिन किसे विधानपरिषद जाने में सफलता मिलेगी। इसके लिए राजनीतिक बिसात पर चाल चली जा रही है। सभी दल विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान दे रहे हैं। खबरों की माने तो लालू यादव अपने कोटे की 3 सीटों में से एक सीट अल्पसंख्यक समाज से ताल्लुक रखनेवाले नेता के लिए पहले से ही रिजर्व कर चुके हैं। उम्मीदवार का नाम भी करीब-करीब फाइनल हो चुका है। बाकी बची 2 सीटों में से एक दशकों से नाराज चल रही अगड़ी जाति को दिए जाने की बात की जा रही है।
राजपूत प्रत्याशी पर राजद का दांव
जानकारी के मुताबिक इसके लिए राजपूत प्रत्याशी का चयन किया जा रहा है। क्योंकि भूमिहार वर्ग को साधने के मकसद से लालू पहले ही अमरेन्द्रधारी सिंह को राज्यसभा भेज चुके हैं। तीसरी सीट के लिए अतिपिछड़ा उम्मीदवार की तलाश चल रही है। कई नाम सामने भी आए हैं लेकिन अंतिम मुहर रांची के रिम्स में भर्ती पार्टी सुप्रीमो लालू यादव लगाएंगे। राजद को लगता है कि माय समीकरण के साथ-साथ अगर अगड़ी जाति के भूमिहार और राजपूत के अलावा अतिपिछड़ा वर्ग का साथ उसे मिल गया तो न सिर्फ वोट बैंक में बड़े पैमाने पर इजाफा होगा बल्कि विधानसभा चुनाव में फतह से उसे कोई रोक नहीं सकता। माना जा रहा है कि एक दो दिनों में लालू अपने तीनों उम्मीदवारों के नाम फाइनल कर देंगे और 22 जून को सभी प्रत्याशी नामांकन का पर्चा भी दाखिल कर देंगे।
जेडीयू, बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश
सियासी पंडितों के मुताबिक बगैर बीजेपी और जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाए राजद विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार नहीं कर सकता। यही सोच है कि लालू ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर राजपूत समाज से जगदानंद सिंह को बिठाया और उम्मीद से विपरित आखिरी वक्त में राज्यसभा में भूमिहार वर्ग से अमरेन्द्रधारी को भेज दिया। माना जा रहा है कि चुनाव आते-आते सवर्णों को खुश करने के लिए लालू कई अगड़ी जाति के नेताओं को भी पार्टी में जगह दे सकते है। लालू बखूबी जानते हैं कि बगैर जातिगत बैलेंस के वो अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी की राह आसान नहीं कर सकते। लालू से इशारा मिलने के बाद खुद तेजस्वी भी इसी नए समीकरण के तहत काम करते नजर रहे हैं।
अतिपिछड़ा पर जेडीयू की नजर
दूसरी तरफ अगर जेडीयू की बात करें तो अतिपिछड़ों की पार्टी कही जाने वाली जेडीयू धानुक और कुशवाहा समाज पर इस बार ज्यादा फोकस करता नजर आ रहा है। खास तौर पर कुशवाहा समाज पर उसकी नजर इसलिए भी है क्योंकि उसे लगता है कि रालोसपा सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा उसके परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। इनके अलावा जेडीयू मुस्लिम और दलित वोटरों का भी भरोसा जीतने में लगा है। इधर बीजेपी की नजर भी यादव, दलित के अलावा अतिपिछड़ा वर्ग पर है। बीजेपी को लगता है थोड़ा बहुत ऊपर नीचे होने पर भी अगड़े उससे नहीं छिटकेंगे।
सवर्णों पर कांग्रेस का फोकस
कांग्रेस की नजर फिलहाल सवर्णों पर है। सवर्ण पर इसलिए क्योंकि वो उसके परंपरागत वोटर रहे हैं लेकिन पिछले कुछ समय से नाराज होकर बीजेपी के पाले में चले गए हैं। पार्टी ने मदनमोहन झा को बिहार की जिम्मेवारी इसी मिशन के तहत ही सौंपी है। विधानपरिषद के जरिए अब इसका फायदा विधानसभा में उठाने की कोशिश होगी। कुल मिलाकर सभी राजनीतिक दल विधानपरिषद चुनाव में सामाजिक तानाबाना बुनने की कोशिश में लगे हैं। सभी को ये लगता है कि अगर इसमें वो सफल रहे तो फिर विधानसभा चुनाव में सत्ता के करीब पहुंचा जा सकता है।