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रांची के इस गांव तक नहीं जाती है पक्की सड़क, खटिया के सहारे हॉस्पिटल पहुंचते हैं मरीज और गर्भवती महिलाएं

सूरज ठाकुर/ऋषभ गौतम

"क्या करें सर। हमलोग का कौन सुनता है। विधायक साहब को गांव लेके आए थे कि चलिए हालत देख लीजिए। एकठो पुलिया बनवा दीजिएगा तो कृपा हो जाएगा। सड़क बन जाता तो मेहरबानी हो जाती। विधायक जी बोले कि अभी तो कोरोना है, सब बंद है। थोड़ा स्थिति ठीक होने दो बनवा देंगे। फिर कहे कि मानसून में तो मुश्किल होगा, बारिश का मौसम बीतने दो बनवा देंगे। 40 बरस से हम इस गांव में रहते आए हैं। रोज नदी नदी पार करके 3 किमी पैदल चलते हैं, तब सड़क आता है। ये कहा भुवनेश्वर ने, जब फॉलोअप टीम उस गांव पहुंची थी जिसका संपर्क प्रखंड और जिला मुख्यालय से बीते 4 महीने से कटा हुआ है"। 

दशकों बाद भी गढ़ाटोली गांव तक नहीं पहुंची सड़क
गांव का नाम है गढ़ाटोली। झारखंड की राजधानी रांची में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल रमेश बैस के आवास से महज 20 किमी दूर नामकुम प्रखंड के सिलवाई पंचायत में एक गांव है गढ़ाटोली। इस गांव से लगते सीसीपीढ़ी और पाहन टोली सहित तकरीबन 1 दर्जन से ज्यादा गांवों तक जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है। इन गावों तक जाना तो रांची-जमशेदपुर मुख्य मार्ग से उतरकर पहले 3 किमी तक पथरीली पगडंडी पर चलना पड़ेगा। दो ही विकल्प हैं, या तो पैदल जाइये या फिर दोपहिया वाहन से। उस पथरीले रास्ते में इतने खड्ढे हैं कि आप कभी भी स्थिर होकर बाइक में नहीं बैठ सकते। ये पगडंडी जहां खत्म होती है वहीं एक नाला है जिसकी चौड़ाई तकरीबन 8 फीट होगी। स्थानीय ग्रामीण इसे गूंगा नाला कहते हैं। इस नाले के उस पार है गढ़ाटोली। गढ़ाटोली से आगे सिसीपीढ़ी और पाहनटोली गांव हैं। आसपास के और गांवों को मिलाकर कुल आबादी तकरीबन 10 हजार की होगी। इस नाले को पार करने का एकमात्र तरीका यही है कि कपड़ा समेटिये और पानी में घुस जाइये। 

भारी बारिश के बीच भी उतरकर पार करना होता है नाला
गांव के मोहन उरांव ने बताया कि बीते कई दशकों से यही हाल है। मुख्य मार्ग से गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है। गूंगा नाला में पुलिया नहीं है इसलिए इसे उतरकर पार करना होता है। इसमें काफी जोखिम है। नाले में पानी का वेग काफी तेज होता है। चूंकि वो मौसमी नाला है इसलिए कब उसका जलस्तर अचानक से बढ़ जाए, कह नहीं सकते। ऐसे में कई बार इधर के लोग इधऱ और उधऱ के लोग उधर ही फंसे रह जाते हैं। मोहन के पास बाइक है। वो नाले से पहले पड़ने वाले एक टोले में किसी दूसरे के मकान में अपनी मोटरसाइकिल रख देते हैं और फिर नदी पार करके अपने घर तक जाते हैं। गूंगा नाला को पार करना खतरे से खाली नहीं क्योंकि उसकी गहराई कहीं-कहीं बहुत ज्यादा है। मोहन ने बताया कि व्यस्क लोग तो फिर भी नाला पार कर जाते हैं लेकिन महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए ये काफी खतरनाक साबित होता है। 

ग्रामीणों द्वारा बनाई गई पुलिया के साथ बह गई महिला
ग्रामीण भुवनेश्वर ने बताया कि नाले को पार करने के लिए ग्रामीणों ने श्रमदान के जरिए बांस का पुल बनाया था। लगातार हो रही बारिश की वजह से नाले का जलस्तर बढ़ गया। बांस का पुल कई जगह से टूट गया। 18 सितंबर को एक महिला बांस की पुलिया के जरिए नाला पार करने की कोशिश कर रही थी कि बह गई। परिजन और गांव वाले उसे ढूंढते रहे लेकिन वो नहीं मिली। सोमवार की सुबह घटनास्थल से 25 किमी दूर अनगढ़ा थाने की पुलिस ने महिला का शव बरामद किया। शव को पोस्टमॉर्टम के लिए रिम्स भिजवाया गया जहां से परिजनों को सूचना दी गई। भुवनेश्वर कहते हैं कि यदि समय पर नाले में पुलिया बना दी गई होती तो एक कीमती जिंदगी बच जाती। उन्होंने बताया कि वे मुखिया, विधायक, प्रखंड विकास पदाधिकारी सहित तमाम जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार आवेदन दे चुके हैं लेकिन उनकी मांग को टाल दिया गया। 

बीमार व्यक्तियों को खटिया से पहुंचाना पड़ता है हॉस्पिटल
गांव के बाबूराम मुंडा ने बताया कि पुलिया नहीं होने की वजह से गांव में कई तरह की परेशानी होती है। पुलिया नहीं होने की वजह से कोई वाहन गांव तक नहीं जा पाता। इस वजह से गांव में ना तो चापाकल लग सका है और ना ही आवास बन पाता है। गांव में यदि कोई बीमार पड़ जाते तो उसे पहले खटिया पर लादकर पुलिया पार कराना पड़ता है, फिर 3 किमी पगडंडी से चलकर सड़क तक जाना पड़ता है। वहां से किसी ऑटो के जरिए अस्पताल तक पहुंचाना पड़ता है। बाबूराम कहते हैं कि यदि कोई गंभीर रूप से बीमार हो, या किसी को सांप काट ले तो हमारे पास उसकी जिंदगी बचाने का कोई उपाय नहीं है। 

गर्भवती महिलाओं को हॉस्पिटल पहुंचाने में होता है संघर्ष
गांव की अंजू देवी ने बताया कि गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा मुश्किल होती है। अंजू बताती हैं कि यदि किसी गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा होती है तो गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती। उनको खटिया में लिटाकर अस्पताल तक पहुंचाना पड़ता है। कई बार रास्ते में ही प्रसव हो जाता है। ऐसे में जच्चा और बच्चा की जान को खतरा हो जाता है। कई बार गर्भवती महिलाओं की जान पर बन आई तो किसी ने जान ही गंवा दी। अक्सर सही समय पर इलाज नहीं मिल पाने की वजह से नवजात की मौत हो जाती है। अंजू देवी ने कहा कि सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। हमारी समस्या का समाधान होना चाहिए। गांव की बुजुर्ग महिला इतवारी देवी ने बताया कि उन्हें गांव में रहते हुए 35 वर्ष हो चुका है, तब से ऐसे ही हालात हैं। 

झारखंड के कई गांवों तक नहीं पहुंच सकी है पक्की सड़क
गौरतलब है कि ये झारखंड की राजधानी रांची से महज 20 किमी दूर एक गांव का नजारा है। आपके जेहन में वो गिरिडीह की एक तस्वीर आज भी ताजा होगी शायद। फरवरी महीने में जब झारखंड विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था तब गिरिडीह जिले के एक गांव से गर्भवती महिला को खटिया में लिटाकर अस्पताल पहुंचाने की कोशिश हो रही थी। अस्पताल 7 किमी दूर था। महिला ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे दिया। नवजात ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया वहीं महिला ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। हाल ही में सिमडेगा की युवा हॉकी खिलाड़ी को सांप ने काट लिया। उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना जरूरी था लेकिन गांव तक पक्की सड़क नहीं होने की वजह से एंबुलेंस नहीं पहुंच सकी और हॉकी खिलाड़ी ने दम तोड़ दिया। हॉकी खिलाड़ी का शव भी पोस्टमॉर्टम के लिए खटिया के जरिए मुख्य सड़क तक लाया गया। ऐसे कई और भी उदाहरण हैं झारखंड में। 

झारखंड में पिछले कुछ सालों में सड़क निर्माण का बजट क्या
अब राज्य में सड़कों की हालत पर बात करते हैं। अप्रैल 2021 में केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 7 सड़कों का उद्घाटन और 14 सड़कों का शिलान्यास किया। उस दिन नितिन गडकरी ने राज्य में 3 हजार 550 करोड़ रुपये की लागत से कुल 539 किमी लंबी 21 सड़क परियोजनाओं का उद्घाटन किया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मौके पर बताया कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य को वित्तीय वर्ष 2017-18 में 205 करोड़ रुपये, 2018-19 में 169 करोड़ रुपये, 2019-20 में 500 करोड़ रुपये और वित्तीय वर्ष 2020-21 में 675 करोड़ रुपये सड़क परियोजनाओं के विकास के निमित्त आवंटित किये गये। इतनी बड़ी राशि और परियोजनाओं के बाद भी रांची से महज 20 किमी दूर एक गांव में सड़क नहीं है। उनका संपर्क प्रखंड और जिला मुख्यालय तक नहीं है।