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कानून : जिन्होंने नहीं लगवाया कोरोना का टीका, पढ़िए! उनके खिलाफ कौन सी कानूनी कार्रवाई होगी

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द फॉलोअप टीम, रांचीः
कोरोना वैक्सीन को लेकर शुरू से ही भ्रांतियां फैली थी। लोग तरह-तरह की बातें वैक्सीन को लेकर शुरूआत से ही बनाते आ रहे हैं। वैक्सीन ना लगवाने वाले लोगों ने अपना ऐतराज जाहिर किया है। हाल ही में यह मामला तब और उछला जब सर्बिया के टेनिस स्टार नोवाक जोकोविच, वैक्सीन नहीं लगवाने से मना कर दिया था। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अपने हक में मुकदमा जीता। भारत में भी वैक्सीन नहीं लगाने वालों के खिलाफ कई तरह के शर्तें रखी जा रही हैं। यह शर्त यात्रा से लेकर वर्कप्लेस पर है।  
भारत में विरोध राजनैतिक वजह 
भारत में कई लोगों ने वैक्सीन का विरोध किया है वह राजनैतिक आधार पर किया है। किसी ने मानव अधिकार के आधार पर वैक्सीन लगवाने से मना नहीं किया। कोई यह दावा करे कि वह अपने शरीर पर सुई चुभाने की इजाजत नहीं देगा और ऐसा करना उसका निजी अधिकार है तो क्या ऐसा संभव है। कई देशों में लोग वैक्सीन के साइड इफेक्ट के चलते वैक्सीन लगवाना नहीं चाहते  हैं और ऐसा करना वे अपना हक समझते हैं। वैक्सीन के पैरोकारों की एक तगड़ी दलील यह है कि क्या लोगों को यह हक दिया जा सकता है कि वह खुद को संक्रमित होने देकर दूसरों के संक्रमण का कारण बन जाएं। 


पिछले साल भी हो रहा था विरोध
पिछले साल कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान सैन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस देने का मामला सामने आया था क्योंकि उन्होंने वैक्सीन लगवाने से मना कर दिया था। वहीं गुजरात में भी व्यापारियों को ऐसा कहने के बात सामने आई थी कि अगर उन्होंने अपने कर्मचारियों को वैक्सीन नहीं लगवाई तो उनकी दुकानें बंद कर दी जाएंगी। यह विरोधाभास नया नहीं हैं। इसे लोकहित और निजी अधिकारों के बीच का विरोधाभास कहते हैं। स्वास्थ्य और विश्वास के मामलों में यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह लोकहित और अधिकारों के बीच में संतुलन और समन्वय की स्थिति बनाने का काम करे। 
दुनिया में अलग-अलग कारण
दुनिया भर में वैक्सीन की खिलाफत के अलग अलग कारण है. जहां कई देशों में लोग निजी अधिकारों की संवेदनशीलता के चलते अनिवार्यता का विरोध करने लग जाते हैं तो कई लोगों वैक्सीन को लेकर आशंकाओं के चलते विरोध करने लग जाते हैं. कोविड वैक्सीन का भी शुरू में इसी वजह से काफी विरोध हुआ था। कई देशों में तो खून में ‘मिलावट’ को आधिकारिक और कानूनी रूप से खारिज किया गया था। भारत के संविधान की धारा 14 से लेकर 22 तक अधिकारों की चर्चा हुई है इसमें धारा 21 लोगों को जीने का अधिकार, निजता का अधिकार देती है।


इसमें कुछ अपवादों की छूट दी गई जो विवाद का विषय बन जाते हैं। इसे न्यायिक तौर पर औचित्य की कसौटी में कसा जाना चाहिए। कई बार अनशन पर बैठे लोगों को जबरन खाना खिलाने के मामले में देश की उच्च और सर्वोच्च अदलतों ने इस विषय पर विचार किया है।
मेघालय उच्च न्यायालय ने क्या कहा था
पिछले साल मेघालय उच्च न्यायालय ने भी इस मामले में अपनी राय रखी थी। अदालत ने कहा था कि यह साफ और स्पष्ट तौर पर समझा जाना चाहिए की टीकाकरण अभी की जरूरत है जिससे वैश्विक महामारी से निपटा जा सकता है। अदालत ने महान न्यायविद कार्डोजो को उद्धृत करते हुए यह भी कहा किहर व्यस्क और मानसक रूप स्वस्थ मानव को यह तय करने का अधिकार है कि उसके शरीर के साथ क्या किया जाना चाहिए। अदालत ने अंत में कहा कि उसे अनिवार्य या जबरस्ती वाले टीकाकारण को सही ठहराने का कोई वैधानिक या संवैधानिक कारण नहीं दिखता।

वैक्सीनेशन को लेकर इन देशों में नियम
बता दें कि अब कुछ देशों में वैक्सीन ना लगवाने पर सख्ती बरती जा रही है। फिलिपिंस सरकार ने वैक्सीन नहीं लगवाने पर रेस्ट एट होम का निर्देश जारी किया है। यहां वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोगों को बाहर जाने की इजाजत नहीं होगी। यदि कोई नागरिक ऐसा करता पकड़ा गया तो उसे भारी जुर्माना देना होगा। फ्रांस में किसी भी सार्वजनिक स्थान पर जाने के लिए पूर्ण टीकाकरण का सर्टिफिकेट दिखाना होगा। ऐसा नहीं करने पर उचित कानूनी कार्रवाई की जायेगी। भारत में भी जन वितरण प्रणाली केंद्र से राशन लेने के लिए वैक्सीनेसन सर्टिफिकेट दिखाना जरूरी है।