द फॉलोअप मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर आज उनकी सरकार के कामकाज का कोई लेखा-जोखा नहीं करना चाहता। दरअसल, आज शायद उनके जन्मदिन पर उन लाखों मजबूर मजदूरों की उन्हें दुआ मिल रही होगी, जो कोरोना काल में सुरक्षित अपने घर पहुंचे थे। झामुमो नेतृत्ववाली सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन की आठ माह पुरानी सरकार, जब नये रूप में अपना आकार ग्रहण कर रही थी, तभी झारखंड को कोरोना के संकट ने जकड़ लिया, जो अबतक बरकरार है। कोरोना काल के दौर से गुजरने के बाद भी सरकार में गतिशीलता कायम है। बेशक कोरोना काल में हेमंत सरकार ने चुनौतियों को जिस तरह से अवसर में बदला है, उसके मूल्यांकन की जरूरत है।
नारायण विश्वकर्मा
क्या अजीब संयोग है। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस तो दूसरे दिन यानी 10 अगस्त को सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जन्मदिन। यानी झारखंड के लिए साल में दो दिन लगातार खास मौके आते हैं। आज हेमंत सोरेन का जन्मदिन सेलिब्रेट किया जा रहा है। संयोग से विश्व आदिवासी दिवस के सार्वजनिक अवकाश की घोषणा भी हो गई। यह झारखंड में रचे-बसे लोगों के लिए सुखद विषय है।
मुल्क में छोड़ी अमिट छाप
सच कहा जाए तो कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की विभिन्न समस्याओं को लेकर हेमंत सरकार चंद दिनों में मुल्क में अमिट छाप छोड़ने में सफल रही है। इस मामले में देश के विभिन्न राज्यों के कई मुख्यमंत्रियों को उन्होंने काफी पीछे छोड़ दिया। बतौर मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन अपने छोटे से अंतराल में राजनीतिक क्षितिज पर एक सितारे की तरह चमके हैं। रांची से लेकर दिल्ली तक की सत्ता के गलियारों में उनकी चर्चा है। कल तक जिन्हें एक अपरिपक्व राजनीतिज्ञ समझा जा रहा था, अब उनकी गिनती भारतीय राजनीति के सुरमाओं में की जा रही है। कोरोना कालखंड को लेकर जब भी चर्चा होगी, लोगों की जुबां पर देश के राज्यों के मुख्यमंत्रियों की कार्यशैली का जिक्र होगा तो, हेमंत सोरेन का नाम सबसे पहले आएगा।
हाईकोर्ट ने भी की थी सराहना
कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों को लेकर देश के अन्य राज्यों के हाईकोर्ट राज्य और केंद्र सरकारों की कार्यशैली पर फटकार लगा रहे थे, उस समय झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के कामकाज की तारीफ की थी। विपक्ष ने अपनी पार्टी लाइन के तहत नाकाफी बता दिया। विपक्ष अबतक यह नहीं बता सका कि वो कौन सा पहला राज्य था, जहां पहली बार मजदूरों को लेकर श्रमिक स्पेशल ट्रेन चली? वह कौन सा पहला राज्य था, जहां मजदूरों को एयरलिफ्ट किया गया? प्रवासी मजदूरों के लिए झारखंड में भाजपा के कितने सांसद-विधायक सड़कों पर उतरे? आखिर झारखंड आनेवाले मजदूरों का वोट तो विपक्ष को भी मिला था। नोएडा की 12 साल की निहारिका त्रिपाठी को झारखंड के मजदूरों से क्या मतलब था? विपक्ष ने उस किशोरी की भी सराहना नहीं की।
मजदूरों से हेमंत हुए थे रू-ब-रू
हाल ही में झारखंड सरकार ने लद्दाख जाकर काम करनेवाले झारखंडी मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के साथ जो ऐतिहासिक फैसला किया है, वह अन्य राज्यों के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा। चूंकि हेमंत सोरेन ने अपने मजदूरों से रू-ब-रू होकर उनकी आपबीती सुनी। राज्य के अधिकतर मुख्यमंत्री तो अपने मजदूरों को लाने या उनसे मिलने तक में कोताही बरती। लद्दाख में झारखंडी मजदूरों के शोषण की कहानियां सुनने के बाद हेमंत सोरेन को पता चला कि किस तरह से मजदूरों का अन्य राज्यों में शोषण होता है।
हेमंत ने बीआरओ को झुकाया
झारखंड सरकार ने बीआरओ को यह साफ-साफ बता दिया कि अगर उन्हें लद्दाख में काम के लिए मजदूर चाहिए तो उनके बीच से ठेकेदारों को हटाना होगा और बीआरओ को झुकना पड़ा। हेमंत सोरेन ने 1979 में बने अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक नियोजन कानून को प्रभावी ढंग से लागू कर देश के सामने मिसाल पेश की। हेमंत सोरेन के अथक प्रयास से लॉकडाउन में पहली बार झारखंड की राजधानी रांची की धरती पर फ्लाइट से मजदूरों को लाया गया। देश में फ्लाइट से मजदूरों को लानेवाला झारखंड पहला राज्य बना। पिछले 1 मई को मई दिवस के दिन मजदूरों को लेकर हैदराबाद से रांची के लिए चली ट्रेन भी पहली बार झारखंड राज्य पहुंची थी। इसके बाद पूरे भारत में प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए ट्रेन चलने लगी। हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार से मजदूरों को ट्रेन से लाने की गुहार लगायी थी। कई पत्र व्यवहार करने के बाद केंद्र सरकार ट्रेन के लिए राजी हुई थी।
केंद्र से एयरलिफ्ट करने पर नहीं बनी थी सहमति
हेमंत सोरेन ट्रेन चलवाने के बाद झारखंडी मजदूरों को फ्लाइट से लाने के लिए गृहमंत्री अमित शाह से समन्वय स्थापित किया। पत्राचार के जरिये केंद्र सरकार से आग्रह किया कि झारखंड के कई प्रवासी मजदूर अंडमान-निकोबार, लद्दाख और उत्तर-पूर्व के राज्यों में फंसे हुए हैं, जिन्हें ट्रेन और बस के जरिये झारखंड लाना मुश्किल है। ऐसे में उनके लिए स्पेशल फ्लाइट की व्यवस्था की जाये, ताकि उन्हें रांची लाया जा सके। 12 मई को भी हेमंत सोरेन ने गृहमंत्री को पत्र लिखा, लेकिन गृह मंत्रालय से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। हालांकि राज्य सरकार फ्लाइट का किराया स्वयं वहन करने को तैयार थी। अंततः केंद्र ने सहमति नहीं दी थी। फ्लाइट से प्रवासी मजदूरों को लाने में एलुमनाई नेटवर्क ऑफ नेशनल लॉ स्कूल, बंगलुरू के सहयोग से प्रवासी मजदूरों को लाया जा सका।
मजदूरों ने सीएम को दी थी दुआएं
फ्लाइट से उतरते समय मजदूरों की आंखों में चमक थी। चेहरे पर मुस्कान लिए कई मजदूरों ने कहा कि हवाई सफर की कभी कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन हमारे राज्य के मुख्यमंत्री के अथक प्रयास से सपना साकार हो गया। शुक्र है हमारे राज्य के मुखिया की तत्परता से हम सही-सलामत अपने घर जा रहे हैं। फ्लाइट से उतरे अधिकतर मजदूरों के लिए यह किसी सपने जैसा था। बहरहाल, गुड गवर्नेंस की ओर कदम बढ़ाने पर हमें सरकार का इस्तकबाल करना चाहिए। हेमंत सरकार के बेहतर कामों की प्रशंसा होनी चाहिए। लेकिन हमें सरकार को आईना भी दिखाते रहना चाहिए। द फॉलोअप टीम की तरफ से उन्हें जन्म दिन की शुभकामाएं।