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काबुल से जंतर-मंतर तक की मानसिकता में क्‍या फ़र्क़ है कोई

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रंगनाथ सिंह, दिल्‍ली:

प्रोफेसर इश्तियाक अहमद की एक चर्चा सुन रहा था। वैसे तो उनकी हर बात गौरतलब होती है लेकिन उन्होंने एक बात ऐसी कही जो शायद हमारे लिए बेहद जरूरी है। इश्तियाक अहमद कह रहे थे कि उनके युवावस्था में जब वो लाहौर में रहते थे और चाय की दुकान पर जब कुछ लोग तालिबान या इस्लामी निजाम की बातें करते थे तो लोग उनपर हँसते थे और उन्हें सिरफिरा समझते थे। गुण्डा तत्वों को हल्के में लेने का खमियाजा सभ्य समाज को हमेशा भोगना पड़ा है। भारत की कई समस्याओं के मूल में जाएँ तो पता चलता है कि नेताओं ने उस समस्या की शुरुआत करने वाले गुण्डा तत्वों या असामाजिक तत्वों को अपने किसी छोटे लाभ के लिए पाला-पोसा। जब वो काबू से बाहर हो गये तो उन्होंने उस समस्या के लिए दूसरी-तीसरी वजह बतानी शुरू कर दीं। फिर उसकी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ी। अच्छी बात है कि जन्तर-मन्तर पर एक समुदाय के खिलाफ हिंसा उकसाने वाली नारेबाजी के आरोपी गिरफ्तार कर लिये गये हैं। लेकिन हम सब जानते हैं कि बहुत सम्भव है कि इन गुण्डा-तत्वों के बीच से कोई नेता निकल आये। गुण्डे-दंगाई विधायक-सांसद तो हमारे लिए आम बात हो चुके हैं। हैरानी उस भद्रलोक पर होती है जो अपने किसी दिमागी फितूर के लिए समाज में गुण्डा तत्वों का बचाव करता है। इतिहास गवाह है कि जब गुण्डे सत्ता पाते हैं तो वो उस भद्रलोक से जूते उठवाते हैं जिसने कभी उसकी लिए बौद्धिक तर्क उपलब्ध कराये होते हैं। 

 

तालिबान अफगान भद्रलोक का सबसे बड़ा दुश्मन

ताजा उदाहरण तालिबान का ही लेते हैं। तालिबान अफगान भद्रलोक का सबसे बड़ा दुश्मन है। पाकिस्तानी पत्रकार गुल बुखारी से चर्चा में अफगान पत्रकार बिलाल सरवरी ने तालिबान द्वारा किये जा रहे अफगान बौद्धिक वर्ग के सफाये पर गहरी चिन्ता व्यक्त की। पत्रकार, डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट इत्यादि तालिबान के निशाने पर हैं। इसके बावजूद कल किसी हिन्दुस्तानी को हिन्दी में कमेंट करते देखा कि 'इस बार वाले तालिबान पढ़े-लिखे हैं!' सोचिए जरा! हिन्दुस्तान में बैठकर एक आदमी मजे से तालिबान के पक्ष में बौद्धिक दलील दे रहा है क्योंकि उसकी इस मूढ़ता से उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे तो तालिबान इस्लाम के रक्षक नजर आ रहे हैं!  तालिबान दावा करते हैं कि वह इस्लामी निजाम लाएँगे! सेना की भाषा में इसे कैमफ्लॉज (बहरूप) कहते हैं। बहुत सारे लोग इस बहरूप को उनकी हकीकत समझ लेते हैं। अफगानिस्तान में जो हो रहा है उसका सबसे बड़ी शिकार वहाँ की आम जनता हो रही है। वही जनता जो लोकतंत्र में सरकार बना रही होती। तालिबान के शासन में वो उन लोगों की गुलाम होगी जिनके हाथ में बन्दूक है। चूँकि ये बातें तालिबान और अफगानिस्तान के बारे में हैं तो बहुत से भारतीय इसे आराम से समझ लेंगे। ठीक यही चीज जब भारत के बारे में कही जाएगी तो वो अपने पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों को जायज ठहराने के लिए कुतर्क की सारी सीमाएँ तोड़ देंगे।

 

संसद के कई चेहरों को देखकर क्‍या अफसोस नहीं होता 

गुण्डे गुण्डे होते हैं। कलियुगी गुण्डे अगर आपके देश या धर्म या जाति की रक्षा का आश्वासन दे रहे हैं तो समझिए कि इन सबको पहला खतरा उन गुण्डों से है। भारतीय सेना एवं अन्य सुरक्षाबलों की कुल संख्या 15 लाख के करीब है। देश के अन्दर और बाहर सक्रिय किसी भी असामाजिक तत्व से निपटने के लिए इतने लोग काफी हैं। हमारे समाज या देश को गुण्डों की कतई जरूरत नहीं है। न ही ऐसे राजनीतिक दलों की जरूरत है जो गुण्डों को पालते-पोसते हैं। मैं जानता हूँ कि आपको यह बात हास्यास्पद लग रही होगी क्योंकि आज कमोबेश सभी राजनीतिक दल गुण्डाप्रेमी हैं लेकिन आप इतना तो मानेंगे कि आज शायद ही कोई राजनीतिक दल हो जिसपर जनता दिल से भरोसा करती हो। अफसोस है कि हिन्दी भद्रलोक अभी तक यह समझ नहीं बना पाया है कि गुण्डा-उपद्रवी-असामाजिक-हिंसक तत्व सभ्य-सुसंस्कृत-सम्पन्न समाज के लिए अवांछनीय हैं। आपकी चाहे जो भी राजनीतिक विचारधारा हो, मुझे पूरा यकीन है कि आप शिक्षित वर्ग से आते हैं तो भारतीय संसद के कई मौजूदा चेहरों को देखकर आप अफसोस करते होंगे कि अब ऐसे लोग आपके प्रतिनिधि हैं। 

 

नासमझी का घातक दुष्परिणाम

हिन्दी भद्रलोक की इस नासमझी का घातक दुष्परिणाम हो रहा है। अभी चन्द साल पहले मैं अपने गाँव में था। एक 14-15 साल के बच्चे से एक स्थानीय गुण्डे के बारे में बातचीत हो रही थी। वह गुण्डा अभी उभर रहा था। मैंने कहा, अरे इन सबका कोई भविष्य नहीं, आज नहीं तो कल पुलिस मुठभेड़ में मारा जाएगा। बच्चे ने चट से जवाब दिया, 'लेकिन अगर सही सेटिंग रहे तो सांसद भी बन सकता है!' उसने एक पूर्वांचल के नेता कम गुण्डे का हवाला दिया। मैं हैरान रह गया कि महज 30 साल में दुनिया इतनी बदल गयी। हम अपने बचपन में क्राइम को संसद तक ले जाने वाले करियर के रूप में नहीं देखते थे। आज बच्चा भी समझ रहा है कि चार-पाँच कत्ल और डकैती के रास्ते से कोई गुण्डा भारत का कानून निर्माता बनने तक का सफर कर सकता है।

 

(रंगनाथ सिंह हिंदी के युवा लेखक-पत्रकार हैं। ब्‍लॉग के दौर में उनका ब्‍लॉग बना रहे बनारस बहुत चर्चित रहा है। बीबीसी, जनसत्‍ता आदि के लिए लिखने के बाद संप्रति एक डिजिटल मंच का संपादन। )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।