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CBSE Board 2021: परीक्षा कैंसिल होने पर क्या कहते हैं शिक्षक और विद्यार्थी, किसे होगा फायदा और किसे नुकसान

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सूरज ठाकुर, रांची: 

सीबीएसई 12वीं बोर्ड की परीक्षा रद्द कर दी गई। आईसीएसई बोर्ड ने भी 12वीं बोर्ड की परीक्षा को रद्द कर दिया। बोर्ड ने कहा कि अंतरिम मूल्यांकन के आधार पर बच्चों का परिणाम जारी किया जायेगा। मूल्यांकन का आधार क्या होना चाहिए इसके लिए कमिटी गठित की जानी है। कमिटी 2 हफ्तों में गठित होगी, ये जानकारी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सचिव अनुराग त्रिपाठी ने दी। बहुत संभव है कि प्री बोर्ड परीक्षा, छमाही परीक्षा, मंथली यूनिट टेस्ट और स्कूल में किए गए प्रायोगिक कार्यों के आधार पर बच्चों का मूल्यांकन किया जायेगा। ऑफिशियल बातें अपनी जगह है लेकिन बोर्ड परीक्षा स्थगित होने पर शिक्षकों का क्या कहना है। विद्यार्थी इस पर क्या सोचते हैं। ये जानने के लिए द फॉलोअप ने कुछ शिक्षकों और विद्यार्थियों से बात की। 

परीक्षा रद्द होना शिक्षा के लिए हितकारी नहीं!
जवाहर नवोदय विद्यालय पाकुड़ में पीजीटी इतिहास के शिक्षक राजेश ने बताया कि परीक्षा रद्द होना ना तो शिक्षकों के लिए अच्छा है और ना ही विद्यार्थियों के लिए हितकारी। उन्होंने कहा कि परीक्षा रद्द किए जाने से शिक्षकों और विद्यार्थियों द्वारा की गई सालों की मेहनत बेकार हो गई सी लगती है। इतिहास के शिक्षक राजेश ने कहा कि सर्वाधिक नुकसान क्लास के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को होगा। औसत मार्किंग होगी और इसका फायदा क्लास के औसत या कमजोर विद्यार्थियों को मिल जायेगा। फर्क करना मुश्किल हो जायेगा कि किसने मेहनत की और कौन गंभीर नहीं था। उन्होंने कहा कि परीक्षा होती तो विद्यार्थियों को उनकी मेहनत का वास्तविक फल मिल पाता। उन्होंने कहा कि ये समस्या उसी वक्त दिख गई थी जब हमने विद्यार्थियों की ऑनलाइन परीक्षा ली। ऑनलाइन परीक्षा में हमने पाया कि जो विद्यार्थी क्लास में हमेशा अच्छे मार्क्स लाया करते थे उनको कम अंक आया वहीं जो लोग विलो एवरेज था उन्होंने अचानक से बाजी मार ली। 

वे कहते हैं कि ना केवल 12वीं बोर्ड के परिणामों पर बल्कि उच्च शिक्षा के लिए दाखिले पर भी इसका व्यापक प्रभाव होगा। ज्यादातर क्षेत्रीय कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में 12वीं में हासिल किए गए अंकों के आधार पर दाखिले के लिए मेरिट लिस्ट बनाई जायेगी। हो सकता है कि औसत मार्किंग की वजह से वो बच्चा पिछड़ जाये जो परीक्षा होने पर बेहतर परिणाम हासिल करता। उन्होंने कहा कि, कई बच्चे मेधावी हैं लेकिन इंटरनेट की समस्या, मानसिक तनाव या किसी और वजह से उन्होंने प्री बोर्ड की परीक्षा ठीक से नहीं दी। कई बार कोई-कोई विद्यार्थी ये भी सोचता है कि सारी ताकत फाइनल्स में लगाउंगा। प्री बोर्ड पर उतना फोकस नहीं करता। उन्हें मुश्किल होगी। 


सुरक्षा के लिहाज से ठीक पर शिक्षा के लिए उत्तम नहीं! 
द फॉलोअप ने जवाहर नवोदय विद्यालय हंसडीहा में ज्योग्रॉफी की शिक्षिका संयुक्ता प्रियदर्शिनी से भी बात की। उन्होंने कहा कि निसंदेह कोरोना महामारी ने तबाही मचा रखी है। निकट भविष्य में भी ऐसा नहीं लगता कि स्थिति सामान्य होगी। किसी भी सरकार, शिक्षक या अभिभावक के लिए बच्चों की सुरक्षा ही सर्वोपरि होगी। 

इस लिहाज से देखें तो सीबीएसई द्वारा 12वीं बोर्ड की परीक्षा को रद्द करना बिलकुल तर्कसंगत है। हां, बात करें शिक्षा या विद्यार्थियों के भविष्य की तो परीक्षा रद्द होने का कुछ तो नकारात्मक प्रभाव होगा ही। उन्होंने कहा कि अभी सभी बच्चों को लग रहा है कि चलो अच्छा है कि परीक्षा नहीं देना होगा क्योंकि वे भविष्य की परेशानियों से ज्यादा अवगत नहीं हैं। संयुक्ता कहती हैं कि 12वीं बोर्ड के विद्यार्थियों का मूल्यांकन कैसे होगा फिलहाल इसकी स्पष्ट जानकारी तो नहीं है लेकिन 10वीं बोर्ड परीक्षा के मूल्यांकन से थोड़ा-थोड़ा इस बात का अंदाजा हो गया था कि क्या मुश्किल आने वाली है।  

उन्होंने कहा कि 10वीं बोर्ड परीक्षा के मूल्यांकन में ये स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि बीते तीन साल में स्कूल के औसत प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाये और फिर उसी आधार पर इस बार भी मार्किंग की जाये। संयुक्ता प्रियदर्शिनी कहती हैं कि ऐसे में कई बार उन बच्चों को भी कम नंबर देना पड़ा जिन्हें परीक्षा होने पर शायद उससे कहीं ज्यादा अंक मिलते। ज्योग्रॉफी की शिक्षिका संयुक्ता प्रदर्शनी कहती हैं कि, ये बात अच्छी है कि जो बच्चे अपनी मार्किंग से संतुष्ट नहीं होंगे उनको बाद में परीक्षा देकर अपना प्रदर्शन सुधारने का विकल्प दिया गया है। वे कहती हैं कि यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को भी दाखिले में मार्किंग के आधार पर मेरिट का निर्धारण करने की बजाय प्रवेश परीक्षा आयोजित करना चाहिए ताकि डिजर्विंग बच्चा ठगा हुआ ना महसूस करे। 

पक्षपातपूर्ण मूल्यांकन सीबीएसई के लिए बड़ी चुनौती!
जवाहर नवोदय विद्यालय पाकुड़ के पीजीटी इकोनॉमिक्स शिक्षक अजय कहते हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से ये फैसला लिया गया है। वर्तमान परिस्थितियों में परीक्षा कराने का जोखिम लेना तर्कसंगत नहीं होता। उन्होंने कहा कि फिलहाल सीबीएसई के सामने 12वीं बोर्ड के विद्यार्थियों का मूल्यांकन पद्दति तय करना और उसका क्रियान्वयन काफी चुनौती भरा काम होगा। पक्षपात से रहित और न्यायसंगत मूल्यांकन चुनौतीपूर्ण काम है। अजय कहते हैं कि सीबीएसई को बच्चों को मार्किंग से असंतुष्ट होने पर दोबारा परीक्षा देने का विकल्प देना चाहिए। 

परीक्षा होती तो अपना बेहतर मूल्यांकन कर पाता!
द फॉलोअप ने कुछ विद्यार्थियों से भी बात की और उनकी राय जानने की कोशिश की। जवाहर नवोदय विद्यालय में आर्ट्स स्ट्रीम के विद्यार्थी अभिषेक का कहना है कि परीक्षा होती तो जरूर खुद के मूल्यांकन का बेहतर अवसर मिलता। हालांकि, वर्तमान परिस्थिति में परीक्षा होती तो वो काफी जोखिम भरा होता। अभिषेक ने कहा कि पिछले एक साल से क्लास नहीं हुई। बच्चों को ठीक से पढ़ाई या रिवीजन का मौका नहीं मिला। कई बच्चे मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। ऐसे में परीक्षा ना लेने का फैसला भी मुझे ठीक लगता है। उनका कहना है कि अब परिणाम को लेकर थोड़ी आशंका है कि पता नहीं क्या होगा। उनका कहना है कि परिणाम आने पर ही वे उच्च शिक्षा के बारे में कोई निर्णय लेंगे। 

बीते एक साल में हमारी अच्छी तैयारी नहीं हो पाई है! 
जवाहर नवोदय विद्यालय हंसडीहा में 12वीं आर्ट्स स्ट्रीम की विद्यार्थी आकांक्षा से भी द फॉलोअप ने बात की। उनकी राय पूछी। आकांक्षा ने कहा कि बीते एक साल में पढ़ाई का काफी नुकसान हो गया। शिक्षकों के संपर्क में रहने का मौका नहीं मिला। किसी भी विषय का रिवीजन नहीं हो पाया और ना ही डाउट क्लियर हो पाया। ऑनलाइन क्लास में हमें नेटवर्क की समस्या का सामना करना पड़ा। सामान्य परिस्थितियों में जैसी तैयारी हो पाती वैसी नहीं हो पायी। इस लिहाज से देखें तो परीक्षा रद्द होना तर्कसंगत फैसला है। 

ये पूछे जाने पर कि यदि औसत मार्किंग हुई तो क्या दाखिले में समस्या नहीं आएगी। आकांक्षा ने जवाब दिया कि उन्हें इस बात से विशेष समस्या नहीं है। आकांक्षा कहती हैं कि उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से लॉ की पढ़ाई करने का सोचा है। वो जानती हैं कि बीएचयू में प्रवेश परीक्षा से दाखिला मिलता है इसलिए 12वीं के परिणामों का ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। उनका कहना है कि जोखिम के नजरिए से ये ठीक फैसला था। 

सरकार ने इसलिए लिया था परीक्षा रद्द करने का फैसला
बता दें कि भारत में फिलहाल कोरोना महामारी की तीसरी लहर जारी है। फिलहाल संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आई है लेकिन हालात नियंत्रण में नहीं कहे जा सकते। सीबीएसई 12वीं बोर्ड में तकरीबन 15 लाख बच्चे हैं। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों को परीक्षा केंद्रों तक लाना काफी जोखिम भरा काम है। यही नहीं, कई विद्यार्थी वैसे भी हैं जिन्होंने इस महामारी में अपने प्रियजनों को खोया है। बच्चे मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। क्लासेज भी ऑनलाइन ही चली हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 12वीं बोर्ड की परीक्षा को रद्द करने का फैसला किया था।