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ऑटो को ही आखिर इस बुजुर्ग ने क्‍यों बना लिया अपना आशियाना, कौन-सी है ज़िद

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मुंबई के देशराज की कहानी उनकी ही जुबानी


बात छह साल पहले की है। मेरा सबसे बड़ा बेटा घर से गायब हो गया। वह हमेशा की तरह काम पर निकला लेकिन कभी वापस नहीं लौटा। एक हफ्ते बाद लोगों को उसकी लाश एक ऑटो में मिली। वो सिर्फ 40 साल का था। मेरे साथ उसका एक हिस्सा मर गया। लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ ने मुझे सही से दुःख मनाने का समय भी नहीं दिया। अगले ही दिन मैं सड़क पर था।अपना ऑटो चला रहा था। लेकिन 2 साल बाद, दुःख ने फिर से मेरा दरवाज़ा खटखटाया। मैंने अपने दूसरे बेटे को भी खो दिया। गाड़ी चलाते समय मुझे एक कॉल आई- “आपके बेटे की लाश प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर मिली है। उसने आत्महत्या कर ली है।" मेरी बहू और उनके 4 बच्चों की ज़िम्मेदारी ने मुझे जिन्दा रखा। दाह संस्कार के बाद मेरी पोती (जो 9 वीं कक्षा में थी) ने  पूछा, “दादाजी, क्या अब मेरा स्कूल छूट जायेगा?” ’मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और उससे कहा, “कभी नहीं! तुम् जितनी चाहो उतनी पढाई करना।”

पोती दिल्‍ली में कर रही है बी-एड

मैं पहले से ज़्यादा समय तक ऑटो चलाने लगा। मैं सुबह 6 बजे घर से निकलता और आधी रात तक अपना ऑटो चलाता। इतना करने के बाद भी मैं हर महीने बस दस हज़ार रुपये कमा पाता. उनके स्कूल की फीस और स्टेशनरी पर 6000 खर्च करने के बाद मुझे 7 लोगों के परिवार को खिलाने के लिए मुश्किल से 4000 ही बचते। अधिकांश दिनों में हमारे पास खाने के लिए मुश्किल से ही कुछ होता है। एक बार, जब मेरी पत्नी बीमार हो गई, तो मुझे उसकी दवाएँ खरीदने के लिए घर-घर जाकर भीख माँगनी पड़ी। लेकिन पिछले साल जब मेरी पोती ने मुझे बताया कि उसकी 12 वीं बोर्ड में 80% अंक आए हैं, तो मुझे लगा मैं अपना ऑटो आसमान में उड़ा रहा हूँ। मैंने पूरे दिन अपने सभी कस्टमर को मुफ्त सवारी दी! पोती ने मुझसे कहा,'दादाजी, मैं दिल्ली में बी-एड कोर्स करना चाहती हूँ। 'पोती को दूसरे शहर में पढ़ाना मेरी औकात से बाहर था। लेकिन मुझे किसी भी कीमत पर उसके सपने पूरे करने थे इसलिए। 

और एक दिन बेच दिया अपना घर

मैंने अपना घर बेच दिया और उसकी फीस चुकाई। फिर, मैंने अपनी पत्नी, बहू और अन्य पोतों को हमारे गाँव में अपने रिश्तेदारों के घर भेज दिया, और  मैं मुंबई  में बिना छत के रहने लगा। अब मेरा पता है, देशराज. खार डंडा नाका 160 गाडी नंबर। अब एक साल हो गया है और सही कहूँ तो ज़िन्दगी से कोई शिकायत नहीं है। अब ऑटो ही मेरा घर है1 मैं अपने ऑटो में ही खाता और सोता हूं और दिनभर लोगों को उनकी मंजिल तक ले जाता हूँ। बस कभी कभी दिन भर ऑटो चलाते हुए पैरों में दर्द होता है लेकिन जब मेरी पोती फोन करके कहती है कि वो अपनी क्लास में फर्स्ट आई है तो मेरा सारा दर्द गायब हो जाता है।

परिवार की पहली ग्रेजुएट हो जाएगी पोती

मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है कि वो टीचर बन जाये और मैं उसे गले लगाकर बोल सकूँ- “मुझे उस पर कितना गर्व है।” वो हमारे परिवार की पहली ग्रेजुएट होने जा रही है। जैसे ही उसका रिजल्ट आएगा मैं पूरे हफ्ते किसी भी कस्टमर से पैसे नहीं लूँगा।

(Humens of Bombay मार्फत शशांक  गुप्‍ता)

 

(लेखक शशांक  गुप्‍ता कानपुर में रहते हैं। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन ।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।