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क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड टाइगर डे! झारखंड का बिरसा जैविक उद्यान बाघों के लिए सबसे उपयुक्त क्यों

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द फॉलोअप टीम, रांची:

अपनी बड़ी बड़ी आंखें और गुर्राहट से सब को डराने वाला बाघ आज अपने जीवन को लेकर भयभीत है। दुनियाभर में 29 जुलाई के दिन विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। बाघ भारत के राष्ट्रीय पशु है। बावजूद भारत में साल 2010 से बाघ विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए थे। बाघों को संरक्षित करने और प्रजाति को विलुप्त होने से बचाने के लिए विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। देश में कुल 52 टाइगर रिजर्व हैं। 

भारत का पहला बाघ रिजर्व जिम कार्बेट है। देश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व नागार्जुन सागर श्रीशैलम है जबकि देश का सबसे छोटा टाइगर रिजर्व महाराष्ट्र के पेंच में है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बाघ भारत में पाए जाते हैं।  देश के कुल 18 राज्यों में बाघ पाए जाते हैं।  2019 में आई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2967 बाघ हैं। 

 

क्या है पलामू टाइगर रिजर्व का हाल 
 टाइगर रिजर्व बाघों को आरक्षित करने का स्थान है। जहां एक भौगोलिक क्षेत्र का परिसीमन करके उसको टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित किया जाता है। झारखंड के जंगलों की खास पहचान रही है। पलामू टाइगर रिजर्व का इतिहास विशेष रहा है। इस इलाके में राज्य गठन के समय बाघों की करीब 40 की संख्या के बीच रहने की पुष्टि नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी और टाइगर फाउंडेशन ने की थी।  वहीं अब संस्था कहती है कि राज्य में एक भी बाघ नहीं है। सरकारी आंकड़ों में भी बाघ होने की पुष्टि नहीं हो रही है। 2020 में टाइगर सेंसस में एक भी बाघ होने की पुष्टि नहीं की गई है। जबकि बाघों के संरक्षण के लिए झारखंड में पलामू टाइगर रिजर्व देश के सबसे अच्छे हैबिटेट के रूप में जाना जाता है। राज्य का एकमात्र टाइगर रिजर्व 779 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 

 

बाघ है लेकिन दिख नहीं रहे 
राज्य के मुख्य वन्य प्रतिपालक राजीव रंजन के अनुसार बाघों की गणना भारत सरकार की एजेंसी करते हैं। उन्होंने कहा कि जब गणना  होती है तो पूरा टाइगर रिजर्व कवर नहीं हो पाता है। वन विभाग भी पूरे रिजर्व में ट्रैप कैमरा नहीं लगा पाता है। यहां के हैबिटेट को लगातार डिस्टर्ब किया जा रहा है। इससे यहां बाघ देखने में परेशानी हो रही है। यहां जंगल उच्च गुणवत्ता वाले हैं। पानी भी भरपूर है लेकिन कुछ गांव है जिसके कारण बड़ा इलाका जानवरों के लिए उचित नहीं है। इसे शिफ्ट करने की कार्रवाई चल रही है इससे करीब 250 वर्ग किलोमीटर एरिया बिना आबादी के हो जाएगा इससे जानवरों की गतिविधियां बढ़ सकतीं हैं। 

 

बाघों के प्रजजन के लिए  कैसा है रांची का जू 

ओरमांझी स्थित बिरसा मुंडा जू बाघिन के प्रजनन के लिए काफी अच्छा है। बाघिन अनुष्का और बाघ मलिक 6 बच्चे को जन्म दे चुके हैं। इसके पीछे यहां के माहौल और खान पान को बताया जाता है। इंग्लैंड से प्रशिक्षण प्राप्त वन्य प्राणी एक्सपर्ट डॉ अजय कुमार बताते हैं यहां का हैबिटेट बाघों के लिए अनुकूल है। साल का जंगल बाघों को नेचुरल जंगल लगता। यहां बाघों के रहने के लिए जो स्थान है वह 4000 वर्ग फीट में है जबकि सेंट्रल जू अथॉरिटी कहता है कि क्षेत्र 1000 वर्ग फिट होना चाहिए।  उससे 4 गुना अधिक होने से बाघ बाघिन काफी कंफर्ट महसूस करते हैं। इनको खाने के लिए भैंस का मांस दिया जाता है जो इन्हें काफी पसंद है। इनके प्रजनन का जो स्टैंडर्ड समय है उसी समय पर बच्चा जन्म दिया है। पहली बार अनुष्का ने 6 अप्रैल 2018 और दूसरी बार 17 अप्रैल 2020 के तीन-तीन बच्चे को जन्म दिया था। 

 

बढ़ रही है बाघों की संख्या 
एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में केरल, उत्तराखंड, बिहार और मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। साल 2010 में की गई गणना के मुताबिक बाघों की संख्या 1706 थी, वहीं साल 2018 की गणना के अनुसार देशमें बाघों की संख्या बढ़कर 2967 हो गई है। फिलहाल देशभर में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ने के साथ ही उनके ऑक्युपेंसी एरिया भी बढ़ रहा है। बता दें कि देशभर में बाघों की जनगणना हर चार साल में होती है।  जिससे उनकी ग्रोथ रेट का पता लगाया जाता है।  साल 1973 में देशभर में मात्र 9 टाइगर रिजर्व ही थे, जिसकी संख्या अब बढ़कर 51 हो गई है।