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Raksha Bandhan 2022 : इस साल 11 या 12 कब मनाए रक्षाबंधन का त्योहार, जानें! कब है शुभ पूजा मुहूर्त

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डेस्क:
भाई-बहन का रिश्ता, दुनिया के खूबसबरत रिश्तों में से एक है। इसमें लड़ाई-झगड़े और तकरार के साथ हीं एक दूसरे के लिए निस्वार्थ प्रेम भी होता है। भाई-बहन ही एक दूसरे के सबसे पहले और सबसे करीबी दोस्त होते हैं। इसी प्यार भरे रिश्ते को और खास बनाने के लिए हर साल रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस बार रक्षाबंधन की तिथि को लेकर लोगों के बीच काफी संशय है क्योंकि इस बार सावण की पूर्णिमा दो दिन 11 और 12 अगस्त को है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस वर्ष रक्षाबंधन की खास बातें और कब मनाएं रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार।

 रक्षाबंधन का त्यौहार 12 तारीख शुक्रवार को मनाना श्रेष्ठ रहेगा! 
11 तारीख गुरुवार को पूर्णिमा तिथि प्रातः 09:35 से लगेगी और उसी समय से भद्रा भी शुरू हो रही है जो रात्रि में 8:53 तक रहेगी और दूसरे दिन यानी 12 अगस्त को प्रातः 7:16 तक पूर्णिमा रहेगी। अतः भद्रा के अंदर में ना ही तो कोई मांगलिक कार्यक्रम होते हैं। यदि कोई  रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाना चाहते हैं तो भद्रा की समाप्ति होने पर यानी रात 08 बजकर 52 मिनट से लेकर 09 बजकर 13 मिनट के बीच राखी बांधी जा सकती है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि रक्षाबंधन का त्योहार 12 तारीख को ही मनाना श्रेष्ठ होगा। 

11 को दिन में क्यों नहीं बांधे राखी
कुछ लोगों का मानना है कि 11 अगस्त को भद्रा पाताल में रहेगी। जिसका धरती पर अशुभ असर नहीं होगा। इसलिए पूरे दिन रक्षाबंधन कर सकते हैं। लेकिन विद्वत परिषद का कहना है कि किसी भी ग्रंथ या पुराण में इस बात का जिक्र नहीं है। वहीं, ऋषियों ने पूरे ही भद्रा काल के दौरान रक्षाबंधन और होलिका दहन करने को अशुभ बताया है। इसलिए भद्रा के वास पर विचार ना करते हुए इसे पूरी तरह बीत जाने पर ही राखी बांधना चाहिए। वहीं, 12 तारीख को पूर्णिमा तिथि सुबह सिर्फ 2 घंटे तक ही होगी और प्रतिपदा के साथ रहेगी। इस योग में भी रक्षाबंधन करना निषेध है। 11 अगस्त को पूर्णिमा देर से आ रही है जबकि 12 को उदया तिथि में पूर्णिमा है इसलिए 12 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जाए।


भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी?

रक्षाबंधन पर भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। लंकापति रावण की बहन ने भद्राकाल में ही उनकी कलाई पर राखी बांधी थी और एक वर्ष के अंदर उसका विनाश हो गया था। भद्रा शनिदेव की बहन थी।भद्रा को ब्रह्मा जी से यह श्राप मिला था कि जो भी भद्रा में शुभ या मांगलिक कार्य करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा।