द फॉलोअप डेस्क
भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ धरना देने वाले पहलवानों ने अपने मेडल गंगा में बहाने का फैसला बदल दिया है। मेडल को गंगा में बहाने के लिए पहलवान हरिद्वार पहुंच गए थे। लेकिन इसकी जानकारी मिलते ही भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत भी वहां पहुंच गए। उन्होंने पहलवानों से बाती की। उनसे मेडल्स और मोमेंटो वाली पोटली भी ले ली है। उन्होंने कहा कि इन्हें राष्ट्रपति को देंगे। वहीं, टिकैत ने केंद्र सरकार को कार्रवाई के लिए 5 दिन का अल्टीमेटम दिया है। सभी खिलाड़ी हरिद्वार से अपने घर के लिए रवाना हो गए। इससे पहले हर की पौड़ी साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट करीब एक घंटे तक में मेडल पकड़े रोते रहे। दूसरी ओर गंगा समिति पहलवानों के खिलाफ खड़ी हो गई थी। उनका कहना था कि ये (हर की पौड़ी) पूजा-पाठ की जगह है, राजनीति की नहीं।
पहलवानों ने लिखा भावुक पोस्ट
मेडल गंगा में बहाने की घोषणा करते हुए पहलवानों ने भावुक पोस्ट लिखा था। सोशल मीडिया में उन्होंने लिखा है कि "28 मई को जो हुआ वह आप सबने देखा.पुलिस ने हम लोगों के साथ क्या व्यवहार किया. हमें कितनी बर्बरता से गिरफ़्तार किया. हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे. हमारे आंदोलन की जगह को भी पुलिस ने तहस नहस कर हमसे छीन लिया और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफआईआर दर्ज कर दी गई. क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए दोन उत्पीड़न के लिए न्याय मांगकर कोई अपराध कर दिया है. पुलिस और तंत्र हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रही है, जबकि उत्पीड़क खुली सभाओं में हमारे ऊपर फबतियां कस रहा है. टीवी पर महिला पहलवानों को असहज कर देनी वाली अपनी घटनाओं को क़बूल करके उनको ठहाकों में तब्दील कर दे रहा है. यहां तक कि पास्को एक्ट को बदलवाने की बात सरेआम कह रहा है. हम महिला पहलवान अंदर से ऐसा महसूस कर रही हैं कि इस देश में हमारा कुछ बचा नहीं है. हमें वे पल याद आ रहे हैं जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीते थे.अब लग रहा है कि क्यों जीते थे. क्या इसलिए जीते थे कि तंत्र हमारे साथ ऐसा घटिया व्यवहार करे. हमें घसीटे और फिर हमें ही अपराधी बना दे.कल पूरा दिन हमारी कई महिला पहलवान खेतों में छिपती फिरी हैं. तंत्र को पकड़ना उत्पीड़क को चाहिए था, लेकिन वह पीड़ित महिलाओं को उनका धरना खत्म करवाने, उन्हें तोड़ने और डराने में लगा हुआ है.अब लग रहा है कि हमारे गले में सजे इन मेडलों का कोई मतलब नहीं रह गया है. इनको लौटाने की सोचने भर से हमें मौत लग रही थी, लेकिन अपने आत्म सम्मान के साथ समझौता करके भी क्या जीना। सवाल आया कि आखिर मेडल किसको लौटाएं… हमारी राष्ट्रपति को, जो खुद एक महिला हैं. मन ने ना कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ़ 2 किलोमीटर बैठी सिर्फ देखती रहीं, लेकिन कुछ भी नहीं बोलीं। हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे. मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध - बुध नहीं ली. बल्कि नयी संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया और वह तेज सफ़ेदी वाली चमकदार कपड़ों में फ़ोटो खिंचवा रहा था. उसकी सफ़ेदी हमें चुभ रही थी. मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र हूं।
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