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मुहिम : भाषा और स्थानीय नीति के सवाल के साथ कई मंत्रियों और विधायक से मिले आजसू नेता

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रांची:

भाषा और स्थानीय नीति के मुद्दे को लेकर आज आजसू पार्टी के प्रतिनिधियों ने मंत्री बादल पत्रलेख, मंत्री मिथिलेश ठाकुर और मंत्री हफीजुल हसन अंसारी के साथ रांची के विधायक सीपी सिंह, धनबाद की विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह, ईचागढ़ की विधायक साबिता महतो, निरसा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता, सारठ के विधायक रणधीर सिंह और जगरनाथपुर के विधायक सोनाराम सिंकू से मुलाकात की। पार्टी के केंद्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ. देवशरण भगत ने बताया कि झारखंड सरकार द्वारा स्थानीयता, नियोजन नीति एवं क्षेत्रीय भाषा को लेकर लिए गए निर्णय से राज्य के आदिवासी-मूलवासी में व्याप्त आक्रोश है। राज्य के विधायक एवं सांसद से मिलने का मकसद इस संबंध में उनका मंतव्य जानना है। डॉ. देवशरण भगत ने कहा कि हेमंत सरकार ना जनता की सुन रही, ना नौजवानों की और ना ही विपक्ष की। यह सरकार तानाशाह हो चुकी है। राजनीतिक एजेंडा से ग्रसित होकर काम कर रही है। राज्य के ज्वलंत विषयों पर मुख्यमंत्री एवं सरकार के द्वारा कोई जबाब नहीं दिया जाता है, उन्होंने चुप्पी साध ली है।

विधानसभा घेराव की तैयारियों में जुटे कार्यकर्ता

डॉ. देवशरण भगत ने बताया कि भाषा एवं स्थानीय नीति को लेकर झारखंड में उपजे असंतोष और जनभावना के मद्देनजर सरकार के निर्णय के खिलाफ 7 मार्च को आजसू पार्टी झारखंड विधानसभा का घेराव करेगी। इसे लेकर व्यापक तैयारी की जा रही है। 7 मार्च को राज्य के कोने-कोने से कार्यकर्ता राँची कूच करेंगे और सरकार को जगाने की कोशिश करेंगे। आजसू पार्टी ने वर्ष 2022 को संघर्ष वर्ष घोषित किया है। आजसू पार्टी झारखण्डियों की हर लड़ाई में शामिल होगी और हर जनमुद्दों पर मुखर होकर बोलेगी। अलग राज्य की लड़ाई लड़नेवाली आजसू पार्टी संघर्ष की उपज है और यही हमारी पहचान है। जब भी झारखण्डियों की अस्मिता और पहचान खतरे में आएगी, आजसू पार्टी सड़क से लेकर सदन तक व्यापक आंदोलन करेगी। 

 

वीर बुधु भगत और कर्पूरी ठाकुर को दी श्रद्धांजलि

लरका आंदोलन के नायक क्रांतिकारी अमर शहीद वीर बुधु भगत की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ. देवशरण भगत ने कहा कि उनकी संघर्ष गाथा यह गवाही देती है कि झारखण्ड के लोग ना झुक सकते और ना ही रुक सकते। साथ ही जननायक कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि देश में पहली बार किसी राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण सुनिश्चित करनेवाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी बाबू सामाजिक समरसता के प्रतीक तथा उपेक्षितों के मसीहा थे।