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नई पहल : नव गठित झारखंडी खतियान संघर्ष समिति करेगी हमेशा के लिए भाषाई विवाद खत्म, सौंपा ज्ञापन

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रांची:

झारखंड में भाषा विवाद तमाम प्रयासों के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस दिशा में राज्य के प्रबुद्ध लोगों ने कदम बढ़ाए हैं। जिसमें झारखंड के कई सामाजि और, सांस्कृतिक संगठन के प्रतिनिधि शामिल हैं। उनका मानना है कि भाषा विवाद का खात्मा खतियान आधारित स्थानीय नीति के बनने से होगा। सभी ने मिलकर झारखण्डी खतियान संघर्ष समिति का गठन किया है। समिति का कहना है कि समय पर खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू हो और इसके बाद ही नियुक्ति हो सके, इसी में हम सभी झारखंडी की भलाई है। इसके लिए भाषाई विवाद से उपर उठकर सोंचने की जरूरत है।

 

गठन के बाद से ही झारखण्डी खतियान संघर्ष समिति ने भाषाई विवाद को झारखंड से हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करने और खतियान आधारित स्थानीय नीति-निर्माण के लिए संघर्ष तेज कर दिया है। आज गोमिया विधायक डाॅ. लम्बोदर महतो और शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो को आगामी विधानसभा सत्र में खतियान आधारित स्थानीय नीति-निर्माण की मांग रखने के लिए ज्ञापन सौंपा गया। मौके पर अमरलाल महतो, इमाम सफी, सुभाष महतो, धनेश्वर महतो, अखिल महतो, प्रशांत महतो, कमाल हसन और साबिर अंसारी मौजूद रहे।

 

समिति का मानना है झारखंड में विभिन्न क्षेत्र में भाषाओं की विविधता पायी जाती है। पिछले दिनों बोकारो-धनबाद समेत कई जिलों में सरकार द्वारा मगही, भोजपुरी, अंगिका भाषा लागू करने से  उत्पन्न हुआ विवाद देखते ही देखते जन आक्रोश के रूप में बदलने लगा। झारखण्डी भाषा संघर्ष समिति और आम जनता के दबाव को देखते हुए सरकार ने बोकारो-धनबाद से भोजपुरी व मगही भाषा को वापस ले लिया। लेकिन अभी भी समूचे झारखंड प्रदेश से उक्त भाषाएं नहीं हटाई गई हैं। साथ ही साथ ऊर्दू, बंगाली, उडिया भाषा को झारखंड की द्वितीय भाषा की सूची से हटाने की मांग उठने लगी है।