व्यंकटेश पांडेय, पटना
चिराग पासवान ने अब तो खुले तौर पर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ये घोषणा उन्होंने शाहाबाद की धरती से की। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले शाहाबाद का इलाका केंद्र में आकर खड़ा हो गया है और इस इलाके में NDA ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है।
बिहार के आरा जिले में बीते रविवार 08 जून को एक जनसभा हुई। आरा जिला घर बा, त कौन बात के डर बा वाला आरा। आरा के रमना मैदान में दिन भर खासी गहमागहमी रही। शाहाबाद और मगध के इलाके से सैकड़ों बसें आरा पहुंची थीं। 2:30 बजते-बजते समूचे मैदान में नारे गूंजने लगे कि देखो देखो कौन आया, शेर आया आया। तो वहीं मंच से एक और नारा उछाला गया कि गूंजे धरती आसमान, भाई चिराग पासवान। जो नारा कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के लिए उछाला जाता था। नारे में बदलाव को बदलते समय और दौर की तस्वीर की प्रस्तुति के तौर पर दर्ज किया जा सकता है। बदलते नारों, जहां-तहां हो रही जनसभाओं, रोड शो और यात्राओं के बीच बिहार में चुनाव आयोग की टीम भी दौरे पर आई थी। बिहार चुनावी राज्य है और यहां होने वाली तमाम राजनीतिक व गैर राजनीतिक गतिविधियों में चुनाव की आहट सुनी जा सकती है। रोड शो और जनसभाओं से याद आया कि पिछले महीने के अंत में ही तो पीएम मोदी बिहार के दो दिवसीय दौरे पर थे। पटना में रोड शो किया तो वहीं बिहार की भोजपुरी पट्टी कहे जाने वाले शाहाबाद में जनसभा को संबोधित किया, और अब केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का शाहाबाद/आरा की ओर रुख करना औचक तो नहीं ही है?
राजनीति में कुछ भी औचक नहीं होता, न बयानबाजी और न ही सभाएं। सबकुछ रणनीतिक होता है, जैसे केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का हाल के दिनों में दिया गया बयान कि उन्हें बिहार बुला रहा है। और उस बयान के विस्तार में जाते हुए आरा की जनसभा से इस बात की घोषणा कि वे बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। बहुतों को साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की याद दिला रहा है, तब चिराग पासवान ने एनडीए में रहते हुए जदयू के उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर नीतीश कुमार को खासा परेशान कर दिया था। हालांकि वो साल दूसरा था और यह साल दूसरा है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि राजनीति में काल और परिस्थितियां बहुत कुछ तय करती हैं। पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी-शाह दोनों को नीतीश कुमार की जरूरत वैसी नहीं थी, जैसी अब है। तो वहीं अब तक लगभग नॉन सीरियस तरीके से बिहार के चुनावों में शामिल रहने वाली कांग्रेस भी खबरों में रहने की भरपूर कोशिशें कर रहीं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी इसी वर्ष 5 बार बिहार आ-जा चुके हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर में दलित बच्ची से दुष्कर्म और हत्या का मुद्दा भी सड़कों पर है।
सड़कें और चौक-चौराहों पर गर्माहट और भी बढ़ेगी जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आएंगे। शाहाबाद तो पहले से ही गर्म है, क्योंकि पीएम मोदी और भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद इस इलाके से अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही। विश्लेषक इसके पीछे महागठबंधन की ओर से किए गए राजनीतिक गठजोड़ की भूमिका देख रहे, तो वहीं एनडीए इस इलाके में पूरे दमखम के साथ सेंध लगाने की कोशिश कर रही। ऐसे में पाठकों/दर्शकों के मन में ऐसे सवाल आ सकते हैं कि शाहाबाद आखिर कहते किसे हैं और यहां के चुनावी गुणा-गणित में नफा-नुकसान किसका हुआ?
शाहाबाद का गुणा-गणित और हार-जीत?
शाहाबाद के इलाके में 22 विधानसभा की सीटें हैं। चार जिले भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर आते हैं। राजनीतिक रूप से भी बिहार के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं और चुनाव से पहले हो रही जनसभाओं ने इन इलाकों की राजनीति को और गर्म कर दिया है। केवल NDA के नेता ही नहीं बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष ने भी अपनी जनसभा को करने के लिए इसी इलाके को चुना था।
2020 के विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आए थे, तब NDA को शाहाबाद की 22 सीटों में से केवल दो सीटों पर ही जीत मिली थी और दोनों सीटें बीजेपी के ही खाते में गई थी। बीजेपी आरा और बड़हरा की सीट जीतने में कामयाब रही थी। आरा से अमरेंद्र प्रताप सिंह ने और बड़हरा से राघवेंद्र प्रताप सिंह ने जीत हासिल की थी।
आधा दर्जन से अधिक सीटों पर खेल LJP ने बिगाड़ा
शाहाबाद की 22 सीटों में से 10 पर NDA का हिस्सा रहने के बावजूद LJP ने अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे। जिसने NDA को लगभग आधा दर्जन से अधिक सीटों पर (बीजेपी छोड़ NDA के अन्य घटक दलों के वोट बैंक में) सेंध लगाने का काम किया।
बता दें कि जगदीशपुर, ब्रह्मपुर और दिनारा में LJP दूसरे स्थान पर रही तो वहीं अगिआंव, चेनारी, सासाराम और नोखा में LJP तीसरे पायदान पर रही। यानी शाहाबाद के इलाके में NDA को मिली करारी हार की एक वजह आपसी मतभेद भी रहा। इसका सबसे ज्यादा असर JDU पर पड़ा और वो 71 सीट (2015) से सीधा 2020 के विधानसभा चुनाव में 43 सीटों पर आ गई।
लोकसभा चुनाव में भी मिली करारी हार
साल 2024 का लोकसभा कई मायनों में काफी अहम था। नरेंद्र मोदी के साथ पूरे NDA ने चुनाव में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। वहीं विपक्ष हर संभव तीसरी मर्तबा NDA की सरकार को बनने से रोकने की कोशिश कर रहा था। कौन कितना कामयाब हुआ, ये तो एक अलग बहस का हिस्सा है। बिहार में NDA ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन NDA को शाहाबाद की सभी चार सीटों पर करारी हार मिली और महागठबंधन में शामिल पार्टियों ने यहां की सीटों पर बाजी मार ली। बक्सर से RJD के नेता सुधाकर सिंह ने जीत हासिल की तो आरा की सीट CPIML के सुदामा प्रसाद ने जीती, वहीं काराकाट की सीट भी CPIML के राजाराम सिंह के झोली में गई और सासाराम से कांग्रेस के मनोज कुमार ने अपना परचम लहराया।
आपस में सबकुछ ठीक नहीं था
काराकाट से चुनाव लड़ रहे उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गाए थे, जिसके बाद उन्होंने कहा था कि अपने ही लोगों ने मुझे चुनाव हरा दिया। दरअसल उस सीट से पवन सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, जिसका बहुत हद तक असर देखने को भी मिला था। आरा से चुनाव हारने के कुछ समय बाद आर के सिंह का भी कुछ ऐसा ही बयान सामने आया था। वहीं एक बार फिर उपेंद्र कुशवाहा ने सहयोगी दलों को चेतावनी दी है और कहा है कि अगर नाव डूबी तो मैं अकेला नहीं डूबूंगा। इसके पहले वाले चुनाव में चिराग पासावान ने कैसे अलग राग अलापा था ये भी हर किसी ने देखा था। हालांकि किसकी नाव डूबेगी कौन मझधार में फंसेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा।