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भारतीय ज्ञान परंपरा ने सदियों से न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को प्रोत्साहित किया है- राज्यपाल

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द फॉलोअप डेस्क 

राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने सड़क मार्ग से नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित "नालन्दा ज्ञानकुम्भ" के समापन समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने "विकसित भारत 2047" के संदर्भ में "भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय भाषाओं की भूमिका" पर अपने विचार व्यक्त किए।राज्यपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक और गौरवमयी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय ज्ञान की ज्योति से प्राचीन भारत में पूरे विश्व को आलोकित करता था। उन्होंने कहा कि यहां से प्रसारित ज्ञान की किरणें आज भी हमारे समाज और संस्कृति को प्रेरित करती हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा ने सदियों से न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को प्रोत्साहित किया है। वेद, उपनिषद, आयुर्वेद, गणित, खगोलशास्त्र और योग जैसी शास्त्रीय धरोहरें आज भी हमारे आत्मिक और बौद्धिक विकास में सहायक हैं। इस ज्ञान परंपरा ने भारत की शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक मूल्यों को संजीवनी दी है, जो समाज के हर स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।उन्होंने आगे कहा कि हमारी भाषाएं हमारी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं। संस्कृत, हिंदी, तमिल, कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं में हमारे प्राचीन ग्रंथ और साहित्य समाहित हैं, जो हमारी सोच और परंपराओं को जीवित रखते हैं। मातृभाषा में शिक्षा विद्यार्थियों में आत्मविश्वास को बढ़ाती है और उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर प्रदान करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता देना छात्रों को उनकी जड़ों से जोड़ने और आत्मनिर्भरता के साथ आधुनिक शिक्षा प्रदान करने का महत्वपूर्ण कदम है।उन्होंने कहा कि आज के डिजिटल युग में साइबर अपराध एक गंभीर चुनौती बन चुका है। यह व्यक्तियों की उनकी जमा पूँजी को जोखिम में डालता है। इस चुनौती से निपटने के लिए साइबर सुरक्षा के उपायों को गहन विचार करना चाहिए। राज्यपाल ने इस अवसर पर ज्ञानकुम्भ के दौरान भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े नवाचारों और शोध कार्यों को प्रदर्शित किए जाने की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और शिक्षा की समृद्ध धारा को लोगों तक पहुँचाने का यह एक सराहनीय प्रयास है। राज्यपाल ने सभी से आह्वान किया कि वे "विकसित भारत @2047" में सक्रिय रूप से भागीदारी करें और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की दिशा में अपनी भूमिका निभाएँ। उन्होंने सभी एक ऐसे भारत का निर्माण करने का संकल्प लें, जहाँ भारतीय विचार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और संस्कृति वैश्विक स्तर पर श्रेष्ठता प्राप्त करें।
 

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