द फऑलोअप डेस्क
बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अचानक दिल्ली यात्रा ने सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया है। इस यात्रा को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं-क्या नीतीश कुमार भाजपा के शीर्ष नेताओं से मिलने और आगामी रणनीति तय करने गए हैं? या फिर वे अपनी राजनीति के भविष्य को लेकर कोई नई राह तलाशने के लिए निकले हैं? सवालों के इस बवंडर के बीच बिहार की राजनीति एक बार फिर धुंधली तस्वीर में सिमट गई है।
नीतीश कुमार ने अपनी मुजफ्फरपुर और वैशाली जिलों की निर्धारित यात्रा रद्द कर दिल्ली का रुख किया, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल और बढ़ गई। इस दौरे का मकसद क्या केवल पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार को सांत्वना देना था, या इसके पीछे कोई गहरी रणनीति छिपी है?
संशय के बादल: राजनीति का नया समीकरण?
संशय 1: गृह मंत्री अमित शाह के बयान ने सियासी सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। उनका कहना कि बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, यह फैसला संसदीय बोर्ड करेगा, जदयू के लिए चिंता का विषय बन गया है।
संशय 2: केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा नीतीश कुमार को भारत रत्न देने की मांग ने अटकलों को हवा दी है। क्या यह इशारा है कि नीतीश कुमार राजनीति से संन्यास लेने की तैयारी में हैं?
संशय 3: उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा का बयान भी चर्चा का विषय बन गया है। उनका कहना कि भाजपा की सरकार बनते ही बिहार को सही दिशा मिलेगी, जदयू नेताओं के लिए नई चुनौती बनकर उभरा है।
भाजपा नेताओं से सीधी बात
नीतीश कुमार की इस यात्रा का मकसद सिर्फ शोक संवेदना व्यक्त करना नहीं है। माना जा रहा है कि वे भाजपा नेताओं से खुलकर बातचीत करेंगे। इसमें गृह मंत्री अमित शाह, गिरिराज सिंह और विजय सिन्हा के बयानों पर भी चर्चा होगी। साथ ही, आगामी 2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर एनडीए की रणनीति पर मंथन किया जाएगा।
सियासी समीकरणों की बिसात
नीतीश कुमार की इस यात्रा को राजनीति के संभावित बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। बिहार की राजनीति में नई चालों की तैयारी हो रही है। अब देखना यह है कि इस यात्रा के बाद बिहार की सियासत किस दिशा में आगे बढ़ेगी।