द फॉलोअप डेस्क
बिहार में अब न्याय की प्रक्रिया और तेज होगी, क्योंकि राज्य सरकार जल्द ही 100 नए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करने जा रही है। पुलिस मुख्यालय ने इसकी रूपरेखा तैयार कर ली है और जल्द ही इस प्रस्ताव को गृह विभाग के माध्यम से सरकार को भेजा जाएगा।
डीजीपी विनय कुमार के अनुसार, इन कोर्टों में हत्या, लूट, डकैती और आर्म्स एक्ट जैसे गंभीर अपराधों के मामलों की त्वरित सुनवाई की जाएगी। उन्होंने बताया कि आबादी और लंबित मामलों की संख्या को देखते हुए बड़े जिलों में अधिकतम पांच तथा छोटे जिलों में एक से दो फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए जाने की योजना है।
रिटायर्ड जजों की होगी तैनाती
इन नए कोर्टों में रिटायर्ड जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव भी शामिल है। साथ ही इन फास्ट ट्रैक कोर्ट को बेल (जमानत) मामलों से पूरी तरह अलग रखा जाएगा, जिससे ये केवल गंभीर मामलों की सुनवाई पर ही केंद्रित रहें।
डीजीपी ने बताया कि वर्ष 2011 तक राज्य में 178 फास्ट ट्रैक कोर्ट कार्यरत थे, जिनकी वजह से उस समय मामलों के निपटारे की रफ्तार काफी तेज हुई थी। बाद में पोक्सो, एससी-एसटी और मद्य निषेध जैसे विशेष कानूनों के लिए अलग कोर्ट स्थापित किए गए।
1172 अपराधियों की संपत्ति की पहचान
डीजीपी ने यह भी जानकारी दी कि बिहार में 1172 कुख्यात अपराधियों की अवैध कमाई से अर्जित संपत्तियों की पहचान कर ली गई है। राज्य के 1249 थानों से इस संबंध में प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। इनमें कांट्रैक्ट किलर, शराब व हथियार तस्कर और संगठित अपराध से जुड़े अपराधी शामिल हैं।
बीएनएसएस की धारा 107 के अंतर्गत इन अपराधियों की संपत्तियों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। आर्थिक अपराध इकाई (EOU) ने पीएमएलए के तहत मधुबनी के मनोज झा, मुजफ्फरपुर के राकेश कुमार और खुशरूपुर के संजय कुमार की कुल 5.15 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त करने का प्रस्ताव ईडी को भेजा है।
भ्रष्ट पुलिसकर्मियों पर होगी सख्त कार्रवाई
डीजीपी विनय कुमार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि यदि कोई पुलिसकर्मी किसी मामले में सहायता के नाम पर रिश्वत मांगता है तो नागरिक बिना किसी झिझक के निगरानी विभाग, एसवीयू, ईओयू या सीधे बिहार पुलिस मुख्यालय में शिकायत करें। ऐसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। अब तक 66 पुलिसकर्मी निलंबित किए जा चुके हैं।
डीजीपी ने कहा कि भले ही अपराधों की संख्या अधिक हो, लेकिन दर्ज मामलों के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक मामलों का निष्पादन हो रहा है, जो कानून व्यवस्था में सुधार का संकेत है।