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हिंदुस्तानी सिनेमा ने जनमानस को प्रोग्रेसिव समाज में बदला है: फिल्म निर्देशक अविनाश दास

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रांची 

रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में ‘रचनात्मक लेखन कार्यशाला’में फिल्म निर्देशक अविनाश दास ने कहा कि हिंदुस्तानी सिनेमा ने जनमानस को प्रोग्रेसिव समाज में बदला है। उन्होंने सिनेमा की कार्यशाला में पहली कक्षा का विषय ‘समानांतर सिनेमा के दौर में डॉक्यूमेंट्री फिल्म्स’ की अहमीयत पर बात की। इस दौरान उन्होंने संजय जोशी के डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण की सिनेमाई और तकनीकी ज्ञान छात्रों के साथ साझा किए। उन्होंने वरिष्ठ फिल्मकार आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘राम के नाम’ पर विशेष चर्चा की। वर्तमान दौर की सिनेमा पर बात करते हुए कहा कि वर्तमान में साउथ की फिल्में ज्यादा सार्थक हैं। हिंदी फिल्में महिमामंडन में लगी हुई हैं। 

कहानी लिखने के टिप्स दिये 

 मुंबई से आए मिथिलेश प्रियदर्शी ने स्क्रिप्ट राइटिंग की कक्षा में फिल्म की कहानी लिखने के गुर बताए। उन्होंने प्रतिभागियों से आइडिया से लेकर पूरी फिल्म स्क्रिप्ट लिखने के तकनीकी ज्ञान साझा किए। इस दौरान उन्होंने दो शॉर्ट फिल्म दिखाकर छात्रों से इन फिल्मों के कहानी की संरचना पर बातचीत भी की। किया। ये कक्षा प्रतिभागियों के सवाल जवाब और जिज्ञासा के कौतुहुल से भरा रहा। इस दौरान अविनाश दास ने प्रोग्रेसिव सिनेमा के विषय में कहा हिंदी सिनेमा की फिल्में हमेशा से प्रोग्रेसिव रही हैं। क्योंकि हिंदुस्तानी सिनेमा का शुरुआत ही प्रोग्रेसिव लेखकों और फिल्मकारों ने की।


पंकज मित्र ने कहानी की बुनावट के बारे में बताया   

कथा साहित्य की कक्षा में वरिष्ठ कहानीकार चंदन पांडे ने छात्रों की लिखी कहानियों पर चर्चा की। झारखण्ड के वरिष्ठ लेखक पंकज मित्र ने “कहानी की बुनावट”विषय में बताया कि कहानी मूल रूप से कहने की विधा है। अगर ये कहना किसी का ध्यान आकर्षित नहीं कर सकता तो यह कहानी नहीं है। कहानी के मूल तत्व में संवेदना होना चाहिए। बताया कि कहानी कहना झूठ और कल्पनाओं के जरिए सच कहना है। उन्होंने व्यंग्य के बारे में कहा कि व्यंग्य निर्बल का हथियार होता है। 

नाटक विधा पर हुई ये बात 
प्रोफेसर आशुतोष ने “नाट्य लेखन की प्रविधियां” विषय की कक्षा में बताया कि वो कहानी जो चरित्रों के माध्यम से समाज में मूल्यों के टकराव को सामने लाती है, वैसी कहानी ही नाटक को ज्यादा पावरफुल बनाती है। एक नाटक में सिर्फ नाटककार की स्वयं की बात नही होती, इसकी रचना में सामूहिकता और सामाजिकता होती है। उन्होंने सिनेमा और नाट्य लेखन के बीच के अंतर को भी प्रतिभागियों को समझाया। प्रेम रंजन अनिमेष ने कथा और कथेतर साहित्य के विषय में प्रतिभागियों को कथा लेखन के तरीके बताए।