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यादें शेष : लता दीदी की सुरीली आवाज विरासत के रूप में जिंदा है, उपलब्धियां बताने को कम हैं शब्द

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मुंबई: 

किसी भी संवेदनशील इंसान को संगीत से प्रेम होना लाजिमी है। संगीत की बात इसलिए क्योंकि हमने अभी सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को खोया है। पांच दशक लंबे करियर में कई भाषाओं में हजारों गीत गाने वाली लता दीदी ने अपने पूरे जीवन में महज 2 बार स्कूल का मुंह देखा था। उन्हें संगीत से इतना प्यार था कि उन्होंने अपना पूरा बचपन और जीवन इसे ही समर्पित कर दिया। हालांकि, एक दौरा ऐसा भी आया जब लता मंगेशकर इससे दूर सी हो गई थीं। 

बचपन से गायिकी की असाधारण प्रतिभा थी
28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में लता मंगेशकर सबसे बड़ी बेटी के रूप में जन्मीं। पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर पेशे शास्त्रीय गायक थे। माता का शेवन्ती मंगेशकर था। परिवार में लता और माता-पिता के अलावा भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनें उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले थीं। सभी ने संगीत को ही अपनी शिक्षा, जीवन और जीविका मान लिया था। लता मंगेशकर बचपन से ही गायिका बनना चाहती थीं। 

महज 13 साल की उम्र में रिकॉर्ड किया पहला गाना
महज 13 साल की उम्र में उनके जीवन में संगीत ने दस्तक दी थी। बचपन में कुंदन लाल सहगल की एक फ़िल्म चंडीदास देखकर उन्होंने कहा था कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेंगी। पहली बार लता ने वसंग जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये गाना भी गया था। हालांकि, पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाने गायें। इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया।

हालांकि, उनकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित थे। हालत इंसान से क्या-क्या नहीं करता। उन्होंने संगीत के साथ अपने जीवन में अभिनय को भी स्थान दिया क्योंकि उनको परिवार की सहायता करनी थी। गौरतलब है कि लता दीदी के पिता का निधन उस वक्त हो गया था जब वो महज 13 साल की थीं। 

पिता की मौत के बाद संभाल ली घर की जिम्मेदारी
1942 में पिता की अचानक मौत होने के बाद सारा भार बड़ी बहन होने के नाते लता पर आ गया था। पैसों की किल्लत इतनी थी कि उन्होंने अभिनय ना पसंद होते हुए भी कई हिंदी और मराठी फिल्मों  में केवल परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए काम किया। उनकी पहली फिल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया। लता मंगेशकर का पहला गाना एक मराठी फिल्म कीति हसाल के लिए था, मगर वो कभी भी रिलीज नहीं हो पाया। 

वसंत जोगलेकर ने लता दीदी को दिया था ब्रेक
उस्ताद ग़ुलाम हैदर आने वाली एक फ़िल्म के लिये लता दीदी को एक निर्माता के स्टूडियो में ले गये। फिल्म में कामिनी कौशल मुख्य भूमिका निभा रही थीं। वे चाहते थे कि लता उस फ़िल्म के लिये गाना गायें लेकिन, गुलाम हैदर को कुछ खास हाथ नहीं लगा। 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में में लता को गाने का मौका दिया।

इस फिल्म में गाए गानों की बदौलत लता मंगेशकर सुर्खियों में आ गईं। इसके बाद लता मंगेशकर ने मज़बूर फ़िल्म के गानों "अंग्रेजी छोरा चला गया" और "दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने" जैसे गानों से अपनी पहचान कायम कर ली। लता दीदी गाने तो गा रही थीं लेकिन अभी भी उन्हें एक हिट अल्बम का इंतजार था। 

लता मंगेशकर को इस गीत से मिली थी पहचान
1949 में लता को  मौका मिला  फ़िल्म "महल" के "आयेगा आनेवाला" गीत से। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म सबसे अधिक सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लता दीदी की जिंदगी पटरी पर लौटी।

इसके बाद मानों जीवन ने लता को अपना लिया हो। अपनी खूबसूरत और सुरीली आवाज की बदौलत लता मंगेशकर चर्चा में रहने लगीं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लता मंगेशकर ने अपने 5 दशक लंबे करियर में 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गाने गाये। 

भारत रत्न सहित इन पुरस्कारों से नवाजा गया
लता मंगेशकर को उनके करियर में कई सम्मानों तथा पुरस्कारों से नवाजा गया। लता दीदी को साल 1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994 फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। 1972, 1975 और 1990 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1966 और 1967 में महाराष्ट सरकार ने सम्मानित किया। लता दीदी को 1969 में पद्म भूषण सम्मान मिला।

1974 में लता दीदी का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। उन्होंने विश्व में सबसे अधिक गीत गाने का रिकॉर्ड कायम किया। 1989 में लता दीदी को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया। 1993 में फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।

1996 में स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया। 197 में राजीव गांधी पुरस्कार दिया गया। 1999 में एनटीआर पुरस्कार दिया गया। 1999 में ही पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 2001 में लता मंगेशकर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।