द फॉलोअप डेस्क
चंद्रयान-3 मिशन की लॉन्चिंग आज दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से किया जाएगा। इसके लैंडर के चंद्रमा की सतह पर 23 या 24 अगस्त को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने की उम्मीद है। अगर दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिग होती है, तो भारत दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला विश्व का पहला देश बन जाएगा। बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन सितंबर 2019 में भेजे गए चंद्रयान-2 का फॉलोअप मिशन है, जिसके चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने की संपूर्ण क्षमता प्रदर्शित करने की उम्मीद है।
क्या है चंद्रयान-3 का मकसद?
बता दें कि ISRO वैज्ञानिक दुनिया को बताना चाहते हैं कि भारत दूसरे ग्रह पर सॉफ्ट लैंडिंग करा सकता है। वहां अपना रोवर चला सकता है। चांद की सतह, वायुमंडल और जमीन के भीतर होने वाली हलचलों का पता करना चंद्रयान-3 का मकसद है। इसके लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल में कुल मिलाकर छह पेलोड्स जा रहे हैं। पेलोड्स यानी ऐसे यंत्र जो किसी भी तरह की जांच करते हैं। लैंडर में रंभा-एलपी (Rambha LP), चास्टे (ChaSTE) और इल्सा (ILSA) लगा है। रोवर में एपीएक्सएस (APXS) और लिब्स (LIBS) लगा है। प्रोपल्शन मॉड्यूल में एक पेलोड्स शेप (SHAPE) लगा है।
चंद्रयान-2 से कैसे अलग है चंद्रयान-3
चंद्रयान-2 में लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर था। जबकि चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर के बजाय स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल है। जरुरत पड़ने पर चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की की मदद ली जाएगी। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर को चंद्रमा की सतह पर छोड़कर, चांद की कक्षा में 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाता रहेगा। यह कम्यूनिकेशन के लिए है।
आखिर चंद्रमा पर खोज क्यों की जा रही है?
चंद्रयान-3 को मिलाकर अकेले भारत के ही तीन चंद्र मिशन हो जाएंगे। हालांकि, इसके अलावा भी दुनिया की तमाम राष्ट्रीय और निजी अंतरिक्ष एजेंसियां लूनर मिशन भेज चुकी हैं या भेजने की तैयारी में हैं। इन मिशनों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। यही कारण है कि आज भी चंद्रमा पर खोज एक चुनौती मानी जाती है। चंद्रमा पर मिशन भेजने के उद्देश्यों को लेकर नासा की वेबसाइट कहती है कि चंद्रमा पृथ्वी से बना है और यहां पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के साक्ष्य मौजूद हैं। हालांकि, पृथ्वी पर ये साक्ष्य भूगर्भिक प्रक्रियाओं की वजह से मिट चुके हैं।
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