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कोल्हान में कोलाहल! : क्यों उठती रहती है अलग कोल्हान देश की मांग, पूरा इतिहास यहां समझ लीजिए...

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रांची: 

23 जनवरी 2022। दिन रविवार। चाईबासा का मुफस्सिल थाना परिसर पूरे 4 घंटे तक रणक्षेत्र बना रहा। एक तरफ तकरीबन साढ़े 300 की संख्या में ग्रामीण थे तो दूसरी तरफ पुलिसकर्मी। ग्रामीणों के हाथ में ईंट-पत्थर, लाठी, तलवार और तीर कमान था। ग्रामीणों ने पारंपरिक हथियार के साथ थाना पर हमला बोल दिया। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी दागे। पथराव में थाना प्रभारी पवन चंद्र पाठक सहित दर्जनभर जवान घायल हो गये।
 
आरक्षी बृजभूषण मिश्रा को कमर में तीर लगा। उनकी हालत गंभीर है। सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ। क्यों ये हिंसा भड़की। ग्रामीण किस बात से नाराज थे। रविवार को जो भी हुआ। उसकी जड़ें भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता से जुड़ी है। कैसे, इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। फिलहाल बात तात्कालिक घटना की। 

 

कोल्हान में किस बात की नियुक्ति हो रही थी! 
बीते 4 माह से कोल्हान गर्वमेंट इस्टेट की ओर से कोल्हान पुलिस तथा मुंडा-मानकी और हो भाषा के शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया जारी थी। खुद को कोल्हान का पहला खेवटदार बोलने वाले आनंद चातर और उनके सहयोगी इस प्रक्रिया में शामिल थे। मुफस्सिल थानाक्षेत्र अंतर्गत सदर प्रखंड के लादुराबासा गांव में भर्ती प्रक्रिया चल रही थी। मिली जानकारी के मुताबिक हजारों युवक और युवतियों ने नियुक्ति का आवेदन पत्र खरीदा था। कोल्हान पुलिस में 30 हजार भर्ती का लक्ष्य था। 10 हजार भाषा शिक्षकों की बहाली का भी लक्ष्य रखा गया था। सूचना मिलने पर रविवार को मुफस्स्लि थाना की एक टीम लादुबासा गांव पहुंची। 

 

वहां से युवक-युवतियों के दस्तावेज के साथ गैर-कानूनी गतिविधि में लिप्त 8 लोगों को गिरफ्तार कर थाने ले आई। दोपहर तकरीबन साढ़े 12 बजे ग्रामीण हथियारों से लैस होकर थाने आ धमके। ग्रामीण सबको छोड़ने की मांग कर रहे थे। शाम तकरीबन साढ़े 4 बजे ग्रामीणों ने थाने पर हमला बोल दिया। क्या ऐसा पहली बार हुआ है। दरअसल नहीं। चलिए, थोड़ा अतीत में पीछे चलते हैं। बात करते हैं 1980 की। 

30 मार्च 1980 को चाईबासा में भीड़ क्यों इकट्ठा थी! 
30 मार्च 1980 को पहली बार झारखंड के हो आदिवासियों ने चाईबासा के मंगलाहाट में आयोजित एक रैली में अलग कोल्हान देश की मांग की। तब उस भीड़ का नेतृत्व कोल्हान रक्षा संघ के नेता नारायण जोनको, क्राइस्ट आनंद टोपनो और कृष्ण चंद्र हेंब्रम ने किया था। हवाला दिया 1837 के विल्किंसन रूल का। कहा कि कोल्हान इलाके पर भारत का कोई अधिकार नहीं बनता, तब उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के प्रति आस्था जताई। उस समय कोल्हान अविभाजित बिहार राज्य का एक प्रमंडल था। इसके अधीन पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम जिले थे। अब ये झारखंड में है। 

औपनिवेशिक शासन में छिपी है कोल्हान देश की मांग
भारत तब ब्रिटेन का उपनिवेश हुआ करता था। तब सर थॉमस विल्किंसन साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी के प्रमुख थे। उनके समय में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता के खिलाफ कोल विद्रोह हुआ। मुंडाओं का विद्रोह उफान पर था। सर थॉमस विल्किंसन ने सैन्य हस्तक्षेप कर कोल विद्रोह को दबा दिया। कोल्हान इलाके के तकरीबन 620 गांवों के मुंडाओं अथवा प्रधानों को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सामने सरेंडर करना पड़ा। बार-बार विद्रोह की आग ना भड़के, इसलिए सर थॉमस विल्किंसन ने 1837 में कोल्हान सेपरेट इस्टेट की घोषणा की। चाईबासा को उसका मुख्यालय बनाया।

सर थॉमस विल्किंसन का कौन सा रूल बन गया फांस! 
उनको लग रहा था कि महज ताकत की बदौलत कोल विद्रोह को बहुत देर तक शांत नहीं रखा जा सकता है। लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए थॉमस विल्किंसन ने इलाके में पहले से चली आ रही मुंडा-मानकी स्वशासन व्यवस्था लागू कर दी। इसे ही विल्किंसन रूल कहा जाता है। इसके तहत सिविल मामलों के निष्पादन का अधिकार मुंडाओं को दिया गया। फौजदारी यानी आपराधिक मामलों के निष्पादन का अधिकार मानकी को दिया गया। 

किस आधार पर की जाती है अलग कोल्हान देश की मांग! 
सवाल है कि किस आधार पर अलग कोल्हान देश की मांग की जाती है। दरअसल, आजादी के बाद देशी रियासतों का विलय भारतीय संघ में किया गया। तात्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की अगुवाई में देशी रियासतों से विलय पत्र पर साइन लिया गया। विल्किंसन रूल से पहले कोल्हान का इलाका पोड़ाहाट के राजा के अधीन था, लेकिन कोल्हान सेपरेस एस्टेट बनने के बाद सारा अधिकार मुंडाओं को दिया गया। जब भारत को आजादी मिली तो पोड़ाहाट रियासत अस्तित्व में ही नहीं थी। इसलिए कोल्हान इलाके का भारतीय संघ में विलय का कोई मजबूत दस्तावेज नहीं बन सका। आजादी के बाद भी यहां के लोगों के लिए विल्किंसन रूल ही प्रभावी रहा। इसी को आधार बनाकर समय-समय पर अलग कोल्हान देश की मांग की जाती है।

2018 में रामो बिरुआ की गिरफ्तारी से जुड़ा मामला क्या है! 
इस बीच साल 2018 में पश्चिमी सिंहभूम के मंझारी निवासी रामो बिरुवा ने खुद को कोल्हान गर्वमेंट इस्टेट का खेवटदार घोषित कर दिया। खूंटपानी प्रखंड के बिंदीबासा में अपना झंडा फहराने की घोषणा कर दी। ब्रिटेन की महारानी से साल 1995 में हुए पत्राचार का हवाला देकर किया कहा कि वे ही इलाके के केवटदार नंबर-1 अर्थात प्रशासक हैं। तब चाईबासा पुलिस ने रामो बिरुवा सहित 45 लगों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया था। जमशेदपुर के बागबेड़ा थाने में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। बाद में रामो बिरुवा की जेल में मौत हो गई। 

अलगाववादी विचारधारा वाले इस रुख का क्या जवाब है! 
आज भी यदा-कदा कोल्हान इलाके में अलग कोल्हान देश की मांग की मसला सुलग उठता है। इसे अलगाववाद की एक छोटी चिंगारी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कल की घटना पर सरकार का क्या रुख है ये देखना होगा। अतीत में कोल्हान सेपरेट इस्टेट की मांग को लेकर स्थानीय नेता संयुक्त राष्ट्र का भी रुख कर चुके हैं, जिस पर तात्कालीन भारत सरकार ने कड़ा रुख दिखाया था। कई गिरफ्तारियां हुई थीं। उम्मीद यही होगी कि मामला जल्द सुलझे।