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बचपन : चहारदीवारी में कैद ना करें बच्चों का बचपन, उनको प्रकृति की गोद में खेलने दें

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डेस्क: 

एक पुरानी कहावत है- "हम यह  धरती अपने बच्चों से उधार लेते हैं"। यानी वे संसाधन जिनका आज हम या तो इस्तेमाल करते हैं या दोहन कर रहे हैं वो हमारे आने वाली नस्ल की धरोहर है। अपने  गांव या शहर की गलियारों में गुजरा वह बचपन याद कीजिए। पता नहीं चलता था कि अहले सुबह से उठकर खेलने गए तो कब दोपहर की तपती गर्मी में बड़े- बड़े दीवार फ़ांद लिया करते थे।

चहारदीवारी में कैद हो गया है बचपन
शाम से देर रात तक सुनसान राहों पर अकेले  खेलते रहते थे, तालाबों- नदियों में घंटों दूर तक तैर कर जाना,  पेड़ों पर चढ़ना, लुक्का- छुप्पी खेलना, मिट्टी के घर और बर्तन बनाकर एक अलग दुनिया बसाना, अभिभावकों के बार- बार बुलाने के बाद भी उनके पास ना आना, पढ़ाई के बाद का पूरा वक्त अपने मन के अनुरूप प्रकृति के साथ स्वतंत्र रूप से बिताना और घर से बाहर गुजारना, मनोरंजन करना कितना अच्छा लगता था लेकिन, वर्तमान परिवेश ने बचपन को घरों के चहारदीवारी में बिल्कुल कैद सा कर दिया गया है। 

मैदानों में नहीं दिखती है बच्चों की आपा-धापी
पढ़ाई, होमवर्क और बचा- खुचा वक्त कम्प्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट की भेंट चढ़ रहा है। अब बच्चे गलियों में शोर करते नहीं दिखते, अब बच्चे को खोजने माता- पिता को कहीं दुर नहीं जाना पड़ता, बच्चों की जिंदगी से शारीरिक और सामाजिक क्रियाकलाप लगभग समाप्त होता दिख रहा है, बच्चे प्रकृति से दुर होते जा रहे हैं।

उक्त बातें हजारीबाग सदर विधायक मनीष जायसवाल के मीडिया प्रतिनिधि रंजन चौधरी ने कही । रंजन चौधरी ने बताया कि अधिकतर बच्चों के स्कूलों में गर्मी छुट्टी हो गया है और जहां नहीं हुआ है वहां भी जल्द छुट्टी होने वाला है। स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों को हॉमवर्क भी दे दिया गया है। गर्मी अपने रौद्र रूप में हैं।

सदर विधायक के प्रतिनिधि ने क्या अपील की! 
सदर विधायक मीडिया प्रतिनिधि रंजन चौधरी ने ऐसे में सभी बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों से आग्रह है कि अपने बच्चों को प्रकृति से जोड़े रखें। बच्चों में प्रकृति प्रेम के बीज बोने का यह अच्छा समय और तरिका है। बच्चों को गर्मी छुट्टी मनाने "नेचुरल स्थान" में ले जायें और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति उनके अंदर सम्मान का भाव पैदा करें। हिंदुस्तानी संस्कृति और सभ्यता से रूबरू कराएं ।