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बदलाव : देश को अब खुल कर लूट लीजिये, भ्रष्टाचारी नहीं कहलायेंगे! संसद में हो गयी मनाही

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डेस्क: 

विश्व के सबसे विशाल लोकतंत्र में अब सरकार को तानाशाह नहीं कहा जा सकेगा। वित्तीय अनियमितता के चाहे जितने मामले सामने आयें कोई नहीं कह सकेगा कि सरकार भ्रष्टाचारी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर पीएम और कैबिनेट मंत्री चाहे जितने भी हवाई दावे और घोषणाएं करे। बाद में उसे पूरा ना करे लेकिन कह नहीं पाएंगे कि सरकार जुमलेबाज है। ये बातें हवा हवाई नहीं है बल्कि संसद के मानसून सत्र के लिए सचिवालय की गाइडलाइन में ये दिशा-निर्देश सांसदों के लिए जारी किया गया है।

विश्व के सबसे विशाल लोकतंत्र की साख पर बट्टा ना लग जाये, इसलिए अब तक केवल मीडिया का टेंटुवा ही दबाया गया था लेकिन अब ऐतिहासिक फैसला लेते हुए प्रचंड बहुमत की सरकार ने जनप्रतिनिधियों की आवाज को भी म्यूट कर देने का फरमान सुनाया है।

कुल मिलाकर बात ऐसी है कि संसद में भी अब ना कोई वकील  होगा। ना कोई दलील होगी। फैसला ऑन द स्पॉट होगा। कहते हैं लोकतंत्र में सवाल सबसे बुनियादी चीज होता है।

असंसदीय भाषा की पूरी लिस्ट जारी की गई है
इंस्टाग्राम रील, फेसबुक वॉचलिस्ट, ट्विटर की टपरी और हिंदू बनाम मुस्लिम की बहस जैसे अति अहम मुद्दों में फंसे आप लोग अभी तक नहीं जान पाए होंगे तो आपके बता दें कि अब संसद में कोई भी सदस्य तानाशाह, भ्रष्टाचारी, भ्रष्टाचार, जुमलेबाजी और खालिस्तान जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। किसी को इसकी इजाजत नहीं दी जायेगी। ये शब्द अब असंसदीय होंगे।

संसद में इन शब्दों का इस्तेमाल पाप समझा जायेगा और इसे रिकॉर्ड से हटा दिया जायेगा। यदि फिर भी किसी ने विश्व के सबसे विशाल लोकतंत्र में प्रचंड बहुमत की सरकार में इन शब्दों का इस्तेमाल कर विश्व के परम श्रद्धेय, यशस्वी और लोकप्रिय प्रधानसेवक की छवि खराब करने की कोशिश की तो उसे निलंबित कर दिया जायेगा। सांसद सरकार को निकम्मी सरकार नहीं कह सकते।  

मेरा वचन ही है शासन में तब्दील हो गया लोकतंत्र
वैसे कमाल की बात है ना। भारत का लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए वाले फॉर्मूले से बदलकर कब मेरा वचन ही है शासन में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला। वैसे, केंद्र सरकार इस पर भी अपनी पीठ थपथपा कर कह सकती है कि देखो।

जो बदलाव बीते 70 साल में नहीं हुआ। जो काम आजादी के 70 दशक बाद भी नहीं हो पाया था, हमने 8 साल में कर दिखाया। अब जबकि हमने विश्व के सबसे विशाल लोकतंत्र में अपने 8 साल के शासन में सवाल पूछने की आजादी ना केवल जनता और लोकतंत्र के कथित चौथे खंभे से छीनी बल्कि संसद तक में सवाल नाम की चिड़िया गायब कर दी तो सोचो, पिछली बजट में हमने जो अगले 25 सालों का रोडमैप तैयार किया, उसमें क्या-क्या करेंगे। क्या होगा। वही होगा जो मंजूर ए प्रचंड बहुमत सरकार होगा।

विपक्ष भी मान ही लेगा कि जो हो रहा है ठीक हो रहा है! 
जनता ने मान लिया है। मीडिया मानने को मजबूर है और संसद के सदस्य भी मान ही लेंगे कि प्रधानसेवक जी ने कुछ कहा है तो ऐसे ही थोड़े कहा होगा। प्रधानसेवक ने जो किया है, कुछ सोचकर ही किया होगा। ऐसे ही अनुमानों और मान लेने की प्रथा पर हमारा विशाल लोकतंत्र चलता रहेगा। ना कोई शिकायत होगी ना कोई शिकवा। हो सकता है कि जब सवाल ही ना हो तो समस्या ही पता ना चले।

लोग समस्याओं के साथ ही जीना सीख जाएं जैसे कोविड के साथ जीना सीख लिया और फिर खुशहाली इंडेक्स में हम नंबर-1 होंगे। वैसे भी, आखिरकार कब तक विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के दौरे में झुग्गियों को हरे पर्दे से ढंकने को ढोंग करते रहेंगे।

कब तक कोविड से मारे गये लोगों की कब्रों से रामनामी कपड़ा नोचेंगे। डायरेक्ट क्यों ना वहीं आलोचनाएं बंद कर दी जायें तो सवालों का सबसे बड़ा मंच है। संसद, जहां लाखों का प्रतिनिधि सवाल पूछने बैठता है, यदि उसे ही खामोश कर दिया जाये तो कैसा रहेगा।

आलोचनाओं का जवाब देने में समय जाया हो जाता है
प्रधानसेवक दूरदृष्टा हैं। वैसे भी उनको इतना सारा काम करना है। भारत को विश्व गुरू बनाना है। प्रधानसेवक पहले से ही ऐसा योग कर रहे हैं कि देश सेवा करते हुए उनको सोना ही ना पड़े। इतना सारा काम करना है। वैसे में वे सांसदों के सवालों का जवाब दें।

उनकी आलोचना सुनें या अपना काम करें। सवालों से रूकावट आती है। ठहरकर देखना पड़ता है। सोचना पड़ता है। सुधार करना पड़ता है। इसमें वक्त जाया होता है। अब जबकि आलोचना ही नहीं होगी सोचना नहीं होगा तो सरकार खुलकर विश्व गुरु बनने की राह में तेजी से काम कर सकेगी। 

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तो बहुत आलोचना चाहते हैं
वैसे, लगता नहीं है कि तानाशाह, भ्रष्टाचारी, भष्टाचार, जुमलेबाजी जैसे शब्दों के इस्तेमाल की मनाही वाली खबर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को पता होगी। लगता नहीं है कि वे जनता की आवाज दबाना चाहते हैं। पीएम मोदी ने कुछ महीने पहले ही एक इंटरव्यू में कहा था कि मुझे आलोचकों की कमी महसूस होती है। कमियां बताने वाले लोगों की कमी खलती है। गृहमंत्री ने भी कहा था कि हम चाहते हैं कि ज्यादा सवाल पूछा जाये। हमने मीडिया के काम में कोई दखल नहीं दिया। हमारी आदत ही नहीं है। अब सवाल वही है कि कौन है जो सांसदों को आलोचना करने से रोककर सरकार को बदनाम कर रहा है।