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होली में आखिर क्यों लगाते हैं रंग-गुलाल, जानें! कैसे बनी ये परंपरा 

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द फॉलोअप डेस्क
हम होली में एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते है। लेकिन क्या आपको बता है कि हम रंग-गुलाल-और फुल से ही होली क्यों खेलते हैं। अगर आपको इसकी जानकारी नहीं है तो आज हम आपको इस क्यों का जवाब देते हैं। मान्यतानुसार, होली के बारे में सबसे प्रचलित कहानी है प्रह्लाद और होलिका की कही जाती है जिसमें  हिरण्यकश्यप की बहन होलिाका को ब्रह्मा जी से वरदान स्वरूप एक वस्त्रा प्राप्त था जिसे ओढ़ने के बाद आग उसे नहीं जला पाती। इस वरदान का लाभ उठाकर हि्रण्यकश्यप भगवान विष्‍णु के भक्त और अपने पुत्र प्रह्लाद को  मरवाना चाहा। इसके लिए होलि‌का लकड़ियों के ढ़ेर पर प्रह्लाद को लेकर बैठ गई। लकड़ियों में जब आग लगाई गई तब हवा के झोंके से अग्निव से रक्षा करने वाला वस्त्र  उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गया।  इससे प्रह्लाद जीवित बच गया और होलिका जलकर मर गई। लोगों को जब इस घटना की जानकारी मिलते ही अगले दिन लोगों खूब रंग गुलाल के संग आनंद उत्सव मनाया। इसके बाद से ही होली पर रंग गुलाल संग मस्ती की परंपरा शुरु हो गई।


कृष्ण की लीलाओं के साथ शुरू हुई परंपरा
वहीं दूसरी कहानी के मुताबिक यह परंपरा राधा-कृष्ण ने शुरू की थी। कहा जाता है कि भगवाना श्री कृष्ण मां यशोदा से हमेशा पूछा करते थे कि राधा गोरी क्यों है और वो काले क्यों हैं। यशोदा उनकी इस बात पर हंसती थी और बाद में एक दिन उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण  को सुझाव दिया कि वह राधा को जिस रंग में देखना चाहते हैं उसी रंग को राधा के मुख पर लगा दें। श्री कृष्ण को यह बात अच्छी लगी। श्री कृष्ण का स्वाभाव तो सबको पता ही है। नटखट,शरारती इसलिए वह राधा को तरह-तरह के रंगों से रंगने के लिए चल दिए और श्री कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ राधा और सभी गोपियों को जमकर रंग लगाया। जब वह राधा और अन्ये गोपियों को तरह-तरह के रंगों से रंग रहे थे, तो नटखट श्री कृष्ण  की यह प्यारी शरारत सभी ब्रजवासियों को बहुत पंसद आई। माना जाता है, कि इसी दिन से होली पर रंग खेलने का प्रचलन शुरू हो गया।


भगवान शि व और देवी पार्वती की पहली मुलाकात
होली पर उत्सव मनाने की दूसरी वजह भगवान शिव और देवी पार्वती की पहली मुलाकात है। कथा के अनुसार तारकासुर का वध करने के लिशए भगवान शिव और पार्वती का विवाह आवश्यक था। लेकिान भगवान शिव तपस्या में लीन थे। ऐसे में भगवान शिव से देवी पार्वती को मिलाने के लिए देवताओं ने कामदेव और रतित का सहारा लिया। कामदेव ने भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया इससे नाराज होकर शिव ने कामदेव को भष्म कर दिाया। लेकिन इस घटना में शिव जी ने पहली बार देवी पार्वती को भी देखा। कामदेव के भष्म होने के बाद रतिे ने विलाप करना शुरु कर दिया। देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने कामदेव को बिना शरीर के रतिर के साथ रहने का आशीर्वाद दिया और कामदेव को पुनः शरीर की प्राप्ति श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में हुआ। शिव पार्वती के मिलन और कामदेव को पुनः जीवन मिलने की खुशी में देवताओं ने रंगोत्सव मनाया था।

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