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लुगुबुरु घंटाबाड़ी में अंतरराष्ट्रीय संथाल धर्म महासम्मेलन का आगाज, जानें इतिहास

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द फॉलोअप डेस्क 

झारखंड के बोकारो, ललपनिया में संथालियों के धर्म महासम्मेलन का आगाज हो गया है। यह महासम्मेलन लुगुबुरु घंटाबाड़ी में आयोजित हो रहा है। संथाली आदिवासियों के लिए इस स्थान यानी लुगुबुरु घंटाबाड़ी का विशेष महत्व है। इसलिए यहां देश और देश के बाहर से भी संथाली आदिवासी प्रकृति में अपनी आस्था प्रकट करने साल में एक बार जरूर आते हैं। संथाली आदिवासियों के हर विधि-विधान और अनुष्ठान के बीच लुगुबुरु घंटाबाड़ी का जिक्र किसी न किसी रूप में जरूर आता है। इसी से इस स्थान की महत्ता को समझा जा सकता है। दूसरे शब्दों में लुगुबुरु घंटाबाड़ी संथाली आदिवासियों की परंपरा और संस्कृति का आगाज स्थल है। संथाली ऐसा मानते हैं कि लुगु बाबा की अगुवाई में लुगुबुरु घंटाबाड़ी में ही उनके संथाली संविधान और रीति-रिवाजों की रचना हुई। इसमें जन्म से लेकर मृत्य तक के अनुष्ठान और मान्यताएं शामिल हैं। 

12 साल तक लगातार धर्म बैठक

लुगुबुरु घंटाबाड़ी के बारे में कहा जाता है कि यहां लाखों साल पहले लुगुबुरु की अगुवाई में संथाली समुदाय ने 12 साल तक लगातार बैठक की। इसी के संकेत में एक संथाली लोकगीत में गेलबार सिइंया, गेलबार इंदा यानी 12 दिन, 12 रात की चर्चा की जाती है। मान्यता है कि संथालियों के गौरवमयी इतिहास की शुरुआत इसी बाद शुरू हुई। संथाली परंपरा और संस्कृति की रचना की गयी। बैठक में लगभग एक युग अथवा दशक के दौरान संथालियों ने इसी स्थान पर पहली बार फसल बोया। अन्न उपजाये और धान कूटने के लिए पहली बार इसी स्थान पर चट्टानों का इस्तेमाल किया गया। इसके चिह्न आज भी यहां यानी लुगुबुरु घंटाबाड़ी में देखे जा सकते हैं। 

सीता नाला के प्रति आस्था

खेती किसानी के लिए पानी की जरूरत को संथालियों ने यहां बहने वाले सीता नाला से पूरा किया। लुगुबुरु घंटाबाड़ी के निकट बहने वाले और 40 फीट नीचे गिरने वाले इस नाले को संथाली समाज सीता नाला के नाम से पुकारता है। इस नाले को अन्य समाज के लोग छरछरिया नाला के नाम से जानते हैं। इस नाले के प्रति संथालियों की आस्था का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे इसके पानी को गाय के दूध के बराबर पवित्र मानते हैं। ये भी कहा जाता है कि सीता नाला का पानी कई बीमारियों से निजात भी दिलाता है। इसलिए यहां कब्जियत, गैस्टिक व चरम रोग आदि के मरीज पूरे वर्ष स्नान के लिए आते रहते हैं। वहीं, झरना के पास ही एक पुरानी गुफा भी है। संथाली समुदाय के लोगो इस गुफा को लुगु बाबा का छटका कहते हैं। एक मिथक के अनुसार लुगुबुरु इसी स्थान पर स्नान करते थे और फिर यहीं से लुगु पहाड़ के सात किमी उपर दोलान यानी एक और पवित्र गुफा तक जाते थे। महासम्मेलन के दौरान संथाली इस क्रिया को दोहराते हैं और अपनी आस्था प्रकट करते हैं। 


2001 से हुई महामसम्मेलन की शुरुआत 

लुगुबुरु घंटाबाड़ी संथालियों के लिए हजारों सालों से आस्था का केंद्र रहा है। लेकिन इसे आधुनिक और व्यवस्थित आकार मिला 2001 से। 2001 से ही यहां महासम्मेलन की शुरुआत हुई। संथाली आदिवासी यहां सात देवी-देवता के प्रति आस्था प्रकट करते हैं। ये देव हैं - मरांग बुरु, लुगुबुरु, लुगु आयो, घांटाबाड़ी गो बाबा, कुड़ीकीन बुरु, कपसा बाबा और बीरा गोसाईं। महासम्मेलन में यहां कई राज्यों और देश से आदिवासी श्रद्धालु आते हैं। जैसे झारखंड, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम, मणिपुर, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के अतिरिक्त नेपाल, बांग्लादेश और  भूटान से भी लोग य़हां आते हैं।