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लोकसभा विशेष : पिछले 3 चुनावों में यहां खिला कमल, गोड्डा में इस बार कौन

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द फॉलोअप डेस्क:

15 नवंबर को धरती आबा बिरसा मुंडा की धरती उलिहातू से पीएम मोदी ने झारखंड में मिशन 2024 का आगाज कर दिया। 22 से 25 नवंबर के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने संताल दौरा कर इस बात पर मुहर लगा दी कि झारखँड में चुनावी शंखनाद हो चुका है। लोकसभा चुनावों के ऐलान में अब कुछ ही महीनों का वक्त बचा है। संताल परगना में लोकसभा की 3 सीटें हैं। दुमका, गोड्डा और राजमहल। 2 सीटों पर बीजेपी काबिज है वहीं राजमहल सीट झामुमो के कब्जे में है। बीजेपी इस बार संताल की तीनों लोकसभा सीटें चाहती है। वहीं, आईएनडीआईए गठबंधन को बाकी 2 सीटें भी चाहिए। आज बात करेंगे संताल परगना की एकमात्र सामान्य सीट गोड्डा की। 

लगातार तीन बार से गोड्डा से सांसद हैं निशिकांत दुबे
गोड्डा में अभी बीजेपी के निशिकांत दुबे सांसद हैं। 2024 में भी वही बीजेपी के प्रत्याशी होंगे। इसकी प्रबल संभावना है। वहीं, गठबंधन की ओर से फिलहाल एक अनार 100 बीमार वाली स्थिति है। गोड्डा लोकसभा की हमारी यात्रा 2004 के लोकसभा चुनाव से होगी। 2004 में गोड्डा लोकसभा सीट का समीकरण मौजूदा स्थिति से बिलकुल अलग था। अभी बीजेपी के धुर विरोधी बन चुके प्रदीप यादव तब बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते थे। 2002 के उपचुनाव में प्रदीप यादव जीत हासिल कर सांसद बन चुके थे। इन्हीं परिस्थितियों में 2004 का लोकसभा चुनाव हुआ।  

बीजेपी की ओर से प्रदीप यादव ही चुनावी मैदान में थे। कांग्रेस ने फुरकान अंसारी को अपना उम्मीदवार बनाया था। चुनाव संपन्न हुआ। परिणाम आए तो केंद्र से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की विदाई हो चुकी थी। एनडीए को करारी हार मिली थी। असर गोड़्डा में भी हुआ। प्रदीप यादव फुरकान अंसारी से चुनाव हार गए। 

फुरकान अंसारी को 44.9 फीसदी वोट मिला। प्रदीप यादव को 41.7 फीसदी वोट मिले। गोड्डा में जेडीयू के सूरज मंडल तीसरे स्थान पर रहे। 

2006 की सियासत का 2009 के आम चुनाव में असर हुआ
2009 के आम चुनावों में क्या हुआ। गोड्डा में कमल खिला या नहीं। इस बारे में बात करेंगे लेकिन पहले जानेंगे कि 2006 में झारखंड की सियासत में क्या हुआ। दरअसल, 2006 में झारखंड की सियासत में एतिहासिक उथल-पुथल हुई। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी से किनारा कर लिया और झारखंड विकास मोर्चा नाम से खुद की पार्टी बनाई।  बीजेपी में हाशिए पर महसूस कर रहे प्रदीप यादव भी बाबूलाल मरांडी के साथ हो लिए। 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रदीप यादव झाविमो के टिकट पर चुनावी मैदान में थे। बीजेपी ने इस बार निशिकांत दुबे को प्रत्याशी बनाया। यूपीए की तरफ से कांग्रेस के कद्दावर नेता फुरकान अंसारी चुनाव लड़ रहे थे। 2009 में भी एनडीए चुनाव हार गई लेकिन गोड्डा में समीकरण बदला। 

यहां निशिकांत दुबे कमल खिलाने में कामयाब रहे। फुरकान अंसारी दूसरे नंबर पर रहे। हालांकि, जीत-हार का अंतर केवल .8 फीसदी था। झाविमो के प्रदीप यादव तीसरे नंबर पर खिसक गए। 

साल 2014 में राष्ट्रीय राजनीति पूरी तरह बदली हुई थी। अन्ना आंदोलन के बाद देशभर में यूपीए के खिलाफ माहौल बन गया था। इसी माहौल में बीजेपी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडीडेट घोषित कर दिया। पूरे देश में जैसे मोदी लहर आ चुकी थी।
चुनाव बाद नतीजे भी इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि मोदी लहर ने विरोधियों का सूपड़ा साफ कर दिया। अब जबकि 2009 में यूपीए की जीत के बाद भी गोड्डा में कमल खिला था तो 2014 में परिस्थितियां पूरी तरह अनुकूल थी। 2014 में दूसरी बार निशिकांत दूबे, बीजेपी की ओर से चुनावी मैदान में थे। निशिकांत दूबे ने लगातार दूसरी बार गोड्डा में कमल खिलाया। उन्होंने कांग्रेस के फुरकान अंसारी को हराया। झाविमो उम्मीदवार प्रदीप यादव को लगातार तीसरी बार सांसदी के चुनाव में हार मिली। यहां से प्रदीप यादव और निशिकांत दुबे में जो राजनीतिक और व्यक्तिगत खटास पैदा हुई, वह बदस्तूर जारी है।

2019 में बीजेपी के निशिकांत दुबे ने तीसरी बार जीत दर्ज की
2019 में आम चुनाव से कुछ महीने पहले तक डंवाडोल दिख रहा एनडीए, फरवरी-मार्च में अचानक मजबूत दिखने लगा। एनडीए ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। मोदी लहर का वेग इस बार और भी प्रचंड था। गोड्डा में निशिकांत दूबे ने लगातार तीसरी बार कमल खिलाया। निशिकांत दुबे को 53.4 फीसदी वोट मिला। यूपीए की ओर से झाविमो के टिकट पर प्रदीप यादव चुनावी मैदान में थे। प्रदीप यादव को निशिकांत दुबे के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी। उनको 38 फीसदी वोट मिला। इस बार बहुजन समाज पार्टी के जफर ओवैद तीसरे स्थान पर रहे। 

गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें हैं
गोड्डा लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 6 सीटें हैं। इनमें से देवघर, एससी आरक्षित सीट है। बाकी 5 सीटें जिनमें गोड्डा, पौड़ेयाहाट, महागामा, जरमुंडी और मधुपुर सामान्य सीटें हैं। देवघर से बीजेपी के नारायण दास विधायक हैं। पौड़ेयाहाट से कांग्रेस के प्रदीप यादव विधायक हैं। मधुपुर से झामुमो के हफीजुल हसन अंसारी विधायक हैं। जरमुंडी से कांग्रेस के बादल पत्रलेख विधायक हैं। महागामा से कांग्रेस की दीपिका पांडेय सिंह विधायक हैं वहीं गोड्डा से बीजेपी के अमित मंडल विधायक हैं। मतलब, कुल 6 में से 2 सीटें बीजेपी के पास है। बाकी गठबंधन के खाते में है। 

गोड्डा लोकसभा में कौन से मुद्दे और समस्याएं रहेंगी हावी
बड़ा सवाल है कि गोड्डा में किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाएगा। गोड्डा के ललमटिया में राजमहल कोल परियोजना के अंतर्गत एशिया का सबसे बड़ा सवाल है। मुद्दा यह है कि स्थानीय ग्रामीणों को इसका कितना लाभ मिलता है। गोड्डा शहर में 1600 मेगावाट क्षमता वाला अडाणी का पावर प्लांट है। समझौते के मुताबिक इसका 25 फीसदी झारखंड को मिलना था लेकिन नहीं मिल रहा है। गठबंधन इसे यहां मुद्दा बनाएगा। गोड्डा में बांग्लादेशी घुसपैठ भी इस बार मुद्दा बनेगा। 

गोड़्डा में किस दल का कौन प्रत्याशी लड़ेगा आम चुनाव
गोड्डा में इस बार कौन से क्षत्रप चुनावी मैदान में होंगे। यह भी बड़ा सवाल है। निशिकांत दुबे ही बीजेपी प्रत्याशी होंगे। इसकी प्रबल संभावना है। लेकिन, आईएनडीआईए के लिए फिलहाल कुछ भी तय नहीं है। 3 नाम चर्चा में हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि दीपिका पांडेय सिंह अब राष्ट्रीय राजनीति के लिए महात्वाकांक्षी हैं। वह, गोड्डा में टिकट के लिए दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाती रहती हैं। तकरीबन 1 दशक से राजनीतिक निर्वासन झेल रहे फुरकान अंसारी भी एक्टिव हो गए हैं। विधायक बेटे इरफान अंसारी समय-समय पर पिता की उम्मीदवारी की वकालत करते रहते हैं। समीकरण साधने के लिए खुद को यादव कुल का बताते हैं। वहीं, पिछले 3 आम चुनावों में शिकस्त झेल चुके प्रदीप उम्मीदवारी भी गोड्डा में उम्मीदवारी पेश कर सकते हैं।