द फॉलोअप डेस्क
हजारीबाग में एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था ने ऐसा तमाशा पेश किया है, जिसे देखकर न सिर्फ आम लोग हैरान हैं, बल्कि व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। मामला है बरही अनुमंडल स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का, जहां इलाज के लिए पहुंची एक 20 वर्षीय युवती को स्वास्थ्य लाभ देने की जगह, सीधे एक प्राइवेट अस्पताल का रास्ता दिखा दिया गया।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकारी डॉक्टरों की नई जिम्मेदारी अब मरीजों को निजी अस्पतालों की ओर मोड़ने की हो गई है? क्या यह चिकित्सा व्यवस्था है या फिर एक 'रेफर स्कीम', जिसके तहत सरकारी डॉक्टर अब निजी अस्पतालों के एजेंट बन चुके हैं? क्या हजारीबाग के प्राइवेट अस्पताल अब सरकार के नहीं, बल्कि सरकारी अस्पतालों के भरोसे चल रहे हैं? और अगर ऐसा ही चलता रहा, तो गरीबों को मिलने वाली मुफ्त स्वास्थ्य सेवा का हश्र क्या होगा?
सरकार जहां करोड़ों खर्च कर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर, दवा और संसाधन भेज रही है, वहीं कुछ डॉक्टर उन्हें नज़रअंदाज़ कर सीधे प्राइवेट दरवाजों की ओर भेज रहे हैं। यह घटना ना सिर्फ व्यवस्था की लाचारी को उजागर करती है, बल्कि उस गंभीर मिलीभगत की ओर भी इशारा करती है, जो आम आदमी की जेब और जान दोनों पर भारी पड़ती है।
अब देखना यह है कि प्रशासन इस "रेफर-संस्कृति" पर कब नकेल कसता है, या फिर आगे भी सरकारी अस्पताल केवल “प्राइवेट हॉस्पिटल के गेट पास” ही बनकर रह जाएंगे।
जब इस विषय पर हजारीबाग के सिविल सर्जन डॉ एसपी सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि आपके द्वारा जानकारी मिली है। डॉक्टर के खिलाफ विधि संवत कार्रवाई की जाएगी। डीएमएफटी फंड से उसे डॉक्टर की बहाली की गई है और उसे डॉक्टर के बारे में हमेशा शिकायत भी मिलती है जिसकी जानकारी उप विकास आयुक्त को दे दी गई है साथ ही साथ यह कहा गया है कि उसे हटा दिया जाए।