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भाजपा के पास मुद्दा नहीं रह गया इसलिए कम्युनल डेमोग्राफी की बात कर रहेः सुप्रियो भट्टाचार्य

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द फॉलोअप डेस्कः
आज झामुमो के कार्यायल में झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरीय नेता सुप्रियों भट्टाचार्य प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा घुसपैठ मामले में हाईकोर्ट में जमा की गई शपथ पत्र का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में एक केस चल रहा है हमारे राज्य में घुसपैठ को लेकर। वो शपथ पत्र को हमने भी पढ़ा। कल शपथ पत्र दायर हुआ। और फिर उसकी सुनवाई अगले मंगलवार को होगी। लेकिन उसके पहले ही एक पॉलिटिकल बयान सामने आ गया बीजेपी का कि डेमोग्राफी चेंज हो गया। संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठिया है। भारत सरकार की तरफ से या आधार की जो ऑथोरिटी है उसके तरफ से कहीं इस बार का जिक्र नहीं है कि बांग्लादेश से कुछ लोग संथाल परगना के इलाके में आकर रह रहे हैं। शपथ पत्र में 2011 के सेंसस को एक आधार बनाया गया। उसमें 1961 को बेसलाइन माना गया और 2011 का सेंसस दिया गया। मतलब 50 साल का समय।

 
बंगाली दूसरे सबसे बड़ी कम्युनिटी थी
उन्होंने शपथ पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि उसमें यह भी कहा गया कि तब आदिवासियों की प्रतिशत इतनी थी और मुस्लिमों की इतनी थी और ईसाईयों की इतनी थी और अब ये रह गई। उसमें कहीं संख्या नहीं है। ये छह जिले को लेकर न्यायलय में शपथ पत्र दायर किया। मैं रांची का बहुत पुराना वासिंदे से बात कर रहा था। उनकी उम लगभग 97-98 साल थी। हमने उनसे पूछा कि रांची में लोग कब से आ रहे हैं। तब उन्होंने हमसे कहा कि 1952 से जब एचईसी का निर्माण होना शुरू हुआ तब से लोग आने लगे। उस वक्त रांची में पूरे जिले की आबादी 3 लाख से भी कम थी और आज रांची शहर की आबादी 35 लाख से ज्यादा है। उस वक्त मूलत रांची में आदिवासी सबसे बड़ी कम्युनिटी थी और बंगाली उसके बाद का कम्युनिटि था शहर कए अंदर। लेकिन आज की स्थिति ऐसी है कि बंगाली कम्युनिटी कई कारण से दूसरी सबसे बड़ी कम्युनिटी नहीं है। ये डेमोग्राफी चेंज इन 50 वर्षों में पूरे हिंदुस्तान का हुआ है। 


दफ्तरों में कोर्ट की आलोचना हो रही
जब देश आजाद हुआ था तब 33 करोड़ लोग थे आज 150 करोड़ है। ये 75 साल का आंकड़ा है। अब भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है। चुंकी चुनाव सामने आ रहा है भाजपा के पास मुद्दा नहीं रह गया इसलिए संप्रदायिक डेमोग्राफी की बात कर रहे हैं। ये कौन सा खेल चल रहा है। और न्यायलय को इसमें क्यों लाया जा रहा है। न्यायलय में यदि कुछ चल रहा है तो पार्टी के दफ्तरों में क्यों उसकी आलोचना हो रही है। राजनीतिक दल का दफ्तर न्यायलय नहीं है। न्यायलय की कोई भी कार्रवाई में राजनीतिक दल को यदि आना है तो उनको इंटर वेनर बनना पड़ेगा। क्या भाजपा इस केस की इंटर वेनर है जो उनके दफ्तर में ये बात होती है। कोर्ट में शपथ पत्र जमा हुआ है। कोर्ट को ये तय करना है कि उसपर सुनवाई होगी या नहीं। उसपर बहस होगी। चीजें सामने आएगी। विवेचना होगी। कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। जो उनसे वाकिफ नहीं होंगे वो और ऊपर के अदालत में जा सकते हैं। लेकिन यहां तो ऐसा लग रहा है माना पैराशूट ड्रॉपिंग हुआ है मुस्लमानों का, ईसाईयों का। 


आप आदिवासी लिखते हैं तो बताईएगा ना वो सरना है या गैर सरना। संथाल परगना में पुराने समय से खासकर साहिबगंज, राजमहल पाकुड़ ये इलाका बंगला भाषी इलाका है। भाषा से धर्म विभाजित नहीं होता है। ईसाइ बढ़ गये। ईसाई को अलग से इंडिकेट कर दिया। क्या वो आदिवासी से अलग हो गये। केंद्र सरकार मजाक बनाकर रखी है। एनआरसी की बात शपथ पत्र में आता है। उनके सांसद संथाल परगना को तोड़ने की बात कहता है। ये खेल हमलोग समझते हैं। ये बहुत खतरनाक खेल है। इस प्रकार से राज्य में जो विभाजनकारी तेज किये गये हैं। ये कबीर का देश है। ये गुरुनानक का देश है। ये देश बुद्ध का है। महावीर का है। कैसी कैसी ओछी बात होती है। राजनीतिक मुद्दा है सामने लाइए। मैं हाईकोर्ट से विनती करता हूं कि आप इसमें स्वतः संज्ञान लें। कोर्ट की शर्तें पार्टी दफ्तरों में ना लिखी जाए।