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पड़ताल : मांडर भी हारे! बतौर प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को अभी भी पहली जीत का इंतजार...

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डेस्क: 

2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। सत्ता चली गई। मोदी फैक्टर भी काम नहीं आया। हेमंत सोरेन की अगुवाई में यूपीए गठबंधन की सरकार बनी, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल शामिल है। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद झारखंड बीजेपी के तात्कालीन अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने इस्तीफा दे दिया।

नई जिम्मेदारी दी गई दीपक प्रकाश को जो उस समय प्रदेश महामंत्री हुआ करते थे। कहा गया था कि संगठन में उनकी मजबूत पकड़ है। जनता की नब्ज भी समझते हैं। रघुवर दास से ठीक-ठाक केमिस्ट्री है और बाबूलाल भी लौट आये थे।सवाल है कि क्या दीपक प्रकाश उतने अच्छे नेतृत्वकर्ता साबित हुए जितनी उनसे उम्मीद की गई थी।

इसका जवाब हेमंत सरकार के गठन के बाद हुए 4 उपचुनावों के परिणामों में छिपा है। कैसे। एक-एक कर समझते हैं। 

दुमका और बेरमो के रूप में पहला झटका
नवंबर 2020 में दुमका और बेरमो विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए। बेरमो विधानसभा सीट पूर्व मंत्री और कांग्रेस पार्टी के कद्दावार नेता राजेंद्र सिंह के निधन की वजह से खाली हुई थी। दुमका सीट को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने छोड़ दिया था। दरअसल, 2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन दुमका और बरहेट विधानसभा सीटों से चुनाव लड़े थे। दोनों सीटों पर उनको जीत मिली। बाद में उन्होंने दुमका वाली सीट छोड़ दी। 3 नवंबर 2020 को दोनों ही सीटों पर उपचुनाव के तहत वोटिंग हुई। 


बेरमों में कांग्रेस प्रत्याशी कुमार जयमंगल ने बीजेपी प्रत्याशी योगेश्वर महतो बाटुल को हरा दिया वहीं दुमका में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन ने बीजेपी की लुईस मरांडी को हराया। लुईस मरांडी की हार इसलिए भी करारी मानी गई क्योंकि 2019 में मंत्री रहते लुईस हार गई थीं।

बीजेपी के लिए दोहरा झटका था। संगठन में नेतृत्व परिवर्तन हुआ था। 2019 के विधानसभा चुनाव में चर्चा थी कि रघुवर दास ने जनता नाराज थी, तो उपचुनाव में ये मसला भी नहीं था। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी की भी घर वापसी हो चुकी थी, लेकिन बीजेपी दोनों ही सीटें नहीं जीत सकी। बतौर प्रदेश दीपक प्रकाश के लिए राज्य में ये पहली चुनावी हार थी। 

4 मार्च 2020 को दीपक प्रकाश ने संभाली थी कमान
दीपक प्रकाश 25 फरवरी 2020 को झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष बने थे। 4 मार्च को उन्होंने पदभार संभाला था। इसके लगभग 8 महीने बाद उपचुनाव हुए थे। राजनीति में इतना वक्त बहुत ज्यादा होता है। जनता की नब्ज पकड़ने को। चुनावी समीकरण समझने को। जनता की पसंद और नापसंद जानने के लिए, लेकिन शायद बीजेपी इसे कहीं पकड़ ही नहीं सकी। 

मधुपुर उपचुनाव में ताबड़तोड़ प्रचार नहीं आया काम
अप्रैल-मई में मधुपुर में उपचुनाव हुआ। मधुपर विधानसभा सीट तात्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के निधन से खाली हो गई थी। उपचुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने दिवंगत हाजी हुसैन अंसारी के बेटे हफीजुल हसन अंसारी को उम्मीदवार बनाया।

झामुमो ने बड़ा दांव खेलते हुए हफीजुल को पहले ही मंत्रीपद की शपथ दिलवा दी थी। बीजेपी ने यहां से गंगा नारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया। मधुपुर में झारखंड मुक्ति मोर्चा के हफीजुल हसन अंसारी ने बीजेपी के गंगा नारायण सिंह को 5 हजार 292 वोटों से हरा दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यहां बीजेपी नेतृत्व ने उम्मीदवार के चयन में गलती की। 2014 में चुनाव जीत चुके राज पलिवाल को दरकिनार कर गंगा नारायण सिंह पर भरोसा जताया। इसकी वजह से खेमेबाजी हुई। वोट बंटे।

बीजेपी को तीसरा उपचुनाव भी हारना पड़ा। मधुपुर की हार ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की नेतृत्व क्षमता पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया। सवाल इसलिए भी क्योंकि इस समय तक बीजेपी के पास सरकार के प्रति युवाओं की नाराजगी, बेरोजगारी, कोरोना जैसे कई मुद्दे थे भुनाने को। 

मांडर उपचुनाव में किस मुगालते में रह गई बीजेपी
मांडर उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा के जैसा था। यहां बीजेपी के पास भुनाने को कई मुद्दे थे। पूजा सिंघल प्रकरण, मुख्यमंत्री पर खनन पट्टा लीज मामले में चल रहा ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला, कानून व्यवस्था का मुद्दा, रांची हिंसा और रोजगार। बीजेपी बीते 2 महीने से इसे लेकर हेमंत सरकार पर हमलावर थी। कुछ महीने पहले झारखंड में बिजली और पेयजल की समस्या भी गंभीर हो गई थी।

भारतीय जनता पार्टी इसे लेकर सड़क पर उतर आई थी। वहीं, सरकार के पास गिनाने को कुछ उपलब्धियां थीं और सहानुभूति। दरअसल, मांडर की सीट बंधु तिर्की को आय से अधिक मामले में हुई सजा के बाद विधायकी जाने से खाली हुई थी।

बीजेपी ने यहां पूर्व मंत्री गंगोत्री कुजूर को उम्मीदवार बनाया था, जबकि 2019 में देवकुमार धान चुनाव लड़े थे। इस बार वे निर्दलीय खड़े हुए और एआईएमआईएम ने समर्थन कर दिया।

महागठबंधन की तरफ से पूर्व विधायक बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की चुनावी मैदान में थीं। शिल्पी नेहा तिर्की ने यहां ऐतिहासिक जीत हासिल की। 23 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से गंगोत्री कुजूर को हराया। दीपक प्रकाश ने भी माना कि उपचुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।


पार्टी सामाजिक समीकरण को अनुकूल बनाने में असफल रही। बीजेपी ने यहां 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों, 2 केंद्रीय मंत्रियों, आधा दर्जन से ज्यादा विधायकों को मैदान में उतारा था। बाबूलाल मरांडी ने मैराथन रैलियों औऱ जनसंपर्क किया था। दीपक प्रकाश भी मैदान में थे लेकिन करारी हार मिली।