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हाईकोर्ट ने पत्रिका प्रकाशन घोटाला मामले में सरयू राय के खिलाफ FIR दर्ज करने की दी अनुमति, जानें पूरा मामला 

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द फॉलोअप डेस्क, रांची 
झारखंड हाईकोर्ट में आज विधायक सरयू राय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई हुई। खाद्य आपूर्ति मंत्री रहते सरयू राय ने आहार पत्रिका के प्रकाशन के नाम पर बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता की है। मामला खाद्य आपूर्ति मंत्री पद पर रहते हुए सरयू राय पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप का है। जिसको लेकर प्रार्थी विनय कुमार सिंह की ओर से झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। आज सुनवाई के बाद कोर्ट ने मामले को निष्पादित कर दिया। कोर्ट ने इसे भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला माना है। साथ ही प्रार्थी को इस मामले में प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराने की छूट प्रदान की है।

यहां समझिये पूरा मामला 

मंत्री पद पर रहते सरयू राय ने अपने विभागीय पत्रिका आहार के प्रकाशन के लिए। मनोनयन के आधार पर झारखंड प्रिंटर्स का चयन करवाया। झारखंड सरकार की वित्तीय एवं कार्यपालिका नियमावली कहती हैं कि 15 लाख से अधिक की राशि से होनेवाले कार्य के लिए निविदा जरूरी है। इसके बाजवूद पूर्व मंत्री  सरयू राय ने मंत्री रहते मनोनयन पर झारखंड प्रिंटर्स को काम दिलवाया। मनोनयन पर काम देने के लिए वित्तीय नियमावली के नियम 235 को शिथिल करने के लिए नियम 245 का सहारा लेना पड़ता है। साथ ही वित्त विभाग और कैबिनेट की सहमति जरूरी होती है। श्री सरयू राय ने न तो वित्त विभाग से सहमति ली न कैबिनेट से अपने स्तर से ही झारखंड प्रिंटर्स को काम देने का निर्णय ले लिया। जनसंपर्क विभाग राज्य सरकार के हर विभाग के प्रचार प्रसार का काम करता है. लेकिन सरयू राय ने मंत्री रहते अपने विभाग के लिए अलग से पत्रिका का प्रकाशन कराया। इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य सरकारी राशि का गबन करना था. झारखंड प्रिंटर्स के चयन का आधार सिर्फ वार्तालाप था। यह बात फाइल में भी दर्ज है. मजेदार बात है कि पत्रिका में विभाग की योजनाओं के प्रचार से अधिक ज्यादतर पूर्व मंत्री का गुणगान होता था। इस पत्रिका के प्रकाशन से न तो सरकार को लाभ हुआ न जनता को। 

कैसे हुआ घोटाला

बिना टेंडर के आहार पत्रिका का प्रकाशन कराया गया। वित्तीय अनियमितता के उद्देश्य से तत्कालीन विभागीय मंत्री सरयू राय ने अपने ही निजी सहायक आनंद कुमार को विशेषज्ञ कार्यकारी संपादक नियुक्त कर दिया। आनंद कुमार से टेलीफोनिक बातचीत के आधार पर झारखंड प्रिंटर्स को हर माह 2,61.793 कॉपी आहार पत्रिका छापने का ऑर्डर दे दिया गया। जब इस गड़बड़ी की सूचना बाहर आने लगी तो पत्रिका के प्रकाशन के लिए अप्रैल 2018 में टेंडर किया गया और काम पुनः उसी झारखंड प्रिंटर्स को दे दिया गया जो टेंडर होने के पहले से आहार पत्रिका का प्रकाशन कर रहा था. टेंडर में भाग लेने वाली दूसरी कंपनियों के पास झारखंड में और राज्य के लिए काम करने का काफी ज्यादा अनुभव था, जबकि झारखंड प्रिंटर्स को सिर्फ तीन साल के काम का अनुभव था। मजेदार बात है कि झारखंड प्रिंटर्स ने अपने काम के अनुभव के बारे में बताया कि उसने युगांतर प्रकृति नामक पत्रिका का प्रकाशन किया है। मालूम हो कि युगांतर प्रकृति के मुख्य संरक्षक सरयू राय और संपादक उनके ही निजी सहायक आनंद कुमार हैं। ऐसे में इस गड़बड़ी के बारे में समझना कोई मुश्किल भरा काम नहीं है।

शून्य अनुभव रखने वाले झारखंड प्रिंटर्स को दिया गया काम 

झारखंड प्रिंटर्स युगांतर प्रकृति का केवल 5000 कॉपी छापता था। वितरण के नाम पर उसका अनुभव सिर्फ युगांतर प्रकृति पत्रिका को संस्था के कार्यालय तक पहुंचाना था। राज्य में पत्रिका के वितरण का उसका कोई अनुभव नहीं था। उसके बावजूद 5000 कॉपी छापने का अनुभव रखने वाले झारखंड प्रिंटर्स को 2,61,793 कॉपी हर माह छापने का काम दे दिया गया। इतना ही नहीं वितरण के नाम पर शून्य अनुभव रखने वाले को पूरे झारखंड में पत्रिका वितरण का काम दिया गया। 10 अगस्त 2019 को प्रभात खबर में समाचार प्रकाशित हुआ कि आहार पत्रिका राशन डीलरों तक नहीं पहुंच रही है। इस खबर के आधार पर विभाग ने सभी जिला आपूर्ति पदाधिकारियों एवं बाबा कंप्यूटर से सात दिनों के अंदर रिपोर्ट मंगवायी। 15 सितंबर 2019 को बाबा कंप्यूटर ने दूरभाष पर विभाग को जानकारी दी कि उसकी 298 डीलरों से बातचीत हुई है, जिसमें 115 ने स्वीकार किया कि उसे पत्रिका मिल रही । जबकि 183 ने कहा कि उसे नियमित रूप से पत्रिका नहीं मिल रही है। कुछ का कहना था कि फरवरी से ही उन्हें पत्रिका नहीं मिल रही है। एक तरफ डीलर कह रहे थे कि उन्हें पत्रिका नहीं मिल रही है और दूसरी तरफ प्रिंटर्स को नियमित भुगतान किया जा रहा था। अनियमितता और शिकायत की सूचना मिलने के बावजूद झारखंड प्रिंटर्स के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी बल्कि उसे अवधि विस्तार दे दिया गया।

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