द फॉलोअप डेस्क
अयोध्या राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा तीन दिवसीय भव्य उत्सव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रामलला का महाभिषेक के साथ कल से शुरू हुआ है। पिछले साल की प्राण प्रतिष्ठा की तरह वार्षिकोत्सव को भी दिव्यता और भव्यता के साथ मनाया जा रहा है। लगभग 500 वर्षों के इंतजार के बाद 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में श्री रामजन्मभूमि पर "राम मंदिर" का प्राण प्रतिष्ठा हुआ और प्रभु श्री राम को मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थापित किया गया। यह ऐतिहासिक पल हज़ारों वर्षों के पौराणिक सनातन संस्कृति के गौरवशाली पलों में दर्ज हुआ।
आज स्वामी विवेकानंद की 162वीं जयंती है, 127 वर्ष पूर्व वराहनगर मठ से सन्यास लेने के बाद उन्होंने अपनी पहली भारत यात्रा के दौरान अपने गुरु भाई स्वामी अखंडानंद के साथ सबसे पहले वाराणसी यात्रा किया। उसके बाद वे अगस्त 1888 में अयोध्या पहुंचे। सरयू नदी में स्नान किया, फिर अयोध्या में लक्ष्मण घाट स्थित सीताराम मंदिर में ठहरे। भ्रमण के दौरान अयोध्या में हनुमानगढ़ी, सीता रसोई, कनक मंदिर के दर्शन किये। वहां उन्होंने त्यागी जी महाराज और लक्ष्मण किला के संस्थापक रसिकोपासना के आचार्य युगलनन्य शरण के शिष्य पंडित जानकीवर शरण से धर्म, वेदांत, रामायण, महाभारत, गीता और आध्यात्मिक के बारे में चर्चा किया। स्वामी जी रामजन्मभूमि के आध्यात्मिक स्पंदन से आनंदित थे। वे साधु-संतों के बीच रहे, कथा कीर्तन और सत्संगों में भगवान राम की लीला बहुत ही आनंदपूर्वक सुनते थे।स्वामी विवेकानंद के शिष्य स्वामी अनंत दास ने अपनी आत्मकथा 'माय लाइफ विद माय गुरुजी' में लिखा है,"कोलकाता के एक प्रसिद्ध व्यापारी ने राम मंदिर का निर्माण कराया। उसने स्वामी विवेकानंद से मंदिर का उद्घाटन भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया, विक्रम संवत १९५७ (12अगस्त 1900) के शुभ मुहूर्त पर कराया। जब व्यापारी ने उनके चरण स्पर्श करते हुए समय देने के लिए धन्यवाद कहा तो स्वामी विवेकानंद ने कहा-"अरे इसमें धन्यवाद क्या, यह तो मेरा सौभाग्य है कि अयोध्या के राजा राम का कलकत्ता में आगमन का मैं प्रत्यक्षदर्शी बना।"
पश्चिम की दूसरी यात्रा के दौरान 31 जनवरी 1900 को अमेरिका के कैलिफोर्निया में पासाडेना के शेक्सपियर क्लब में दिये गये एक व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने कहा कि राम और सीता भारत के आदर्श हैं। अयोध्या के राजा, वीर युग के आदि आदर्श, सत्य और नैतिकता के अवतार राम का जीवन चरित्र एक पुत्र, एक शिष्य, एक पति, एक भाई, एक राजा व एक मित्र के रूप में मनुष्य का सम्पूर्ण सर्वोत्तम आचरण कैसा होना चाहिए, यह सिखाता है। उन्होंने कहा कि भारत में महिलाओं को सीता होने का आशीर्वाद दिया जाता है। एक आदर्श पुत्री, पत्नी व माँ के रूप में सीता का समूचा जीवन संघर्ष में बीता, किन्तु उन्होंने सारी पीड़ा सहर्ष सहन की और हर परिस्थिति में अपनी पारिवारिक भूमिकाओं के कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाया।
2 सितंबर 1897 को मद्रास (अब के चेन्नई) के विक्टोरिया हॉल के संबोधन में स्वामी विवेकानंद ने कहा:
“मैं बस राम के पुल के निर्माण में उस गिलहरी की तरह बनना चाहता हूं, जो पुल पर अपनी थोड़ी सी रेत-धूल डालकर ही अपने योगदान से काफी संतुष्ट थी।” 30 मार्च 1901 को अब के बांग्लादेश के ढाका में ‘मैंने क्या सीखा’ शीर्षक पर स्वामी विवेकानंद कहते हैं, “जहां राम हैं, वहां काम नहीं है; जहां काम है, वहां राम नहीं हैं। रात और दिन कभी एक साथ नहीं रह सकते।”
स्वामी विवेकानंद के जीवन पर हनुमान का भी अद्भुत प्रभाव था। जब बाल्यकाल में स्वामीजी को यह जानकारी मिली कि हनुमान जी तो अमर है और अभी भी वनों में निवास करते है ; तो वह घर के पास स्थित केले के बाग में इस आशा से पहुंचे की हनुमान जी उनको वहां दर्शन देंगे। स्वामीजी के गुरु भाई स्वामी शिवानंद से हमे पता लगता है की स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि भारत के हर घर में हनुमान जी की पूजा होनी चाहिए क्योंकि उनका व्यक्तित्व हमारे मन को मजबूत बनता है; आत्मशक्ति का विकास करता है। हनुमान जी अपनी इंद्रियों के पूर्ण स्वामी, बुद्धिमान और अतिबलवाना थे।
करोड़ो युवाओं की प्रेरणाश्रोत स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता वर्ष दर वर्ष बढ़ती है, उनकी प्रेरणा भी माता सीता, प्रभु श्री राम और वीर हनुमान है। इनके जीवन को स्वामीजी ने सम्पूर्ण भारत राष्ट्र के लिए आदर्श बताया।
डॉ अमरदीप यादव
भाजपा ओबीसी मोर्चा झारखंड प्रदेश अध्यक्ष