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नाबालिग लड़की की सहमति से बनाया गया यौन संबंध भी अपराध, जानें पूरा मामला

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द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने अपने एक फैसले में कहा कि नाबालिग की सहमति से यौन संबंध बनाने को वाले को दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता। अदालत ने सजा के खिलाफ सचिंद्र सिंह की अपील पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा है कि विचारणीय बात यह है कि क्या पीड़िता की सहमति ने अपराध को नकार दिया है। दुष्कर्म के मामले में नाबालिग लड़की की सहमति कोई मायने नहीं रखती है। घटना के समय यानी वर्ष 2005 में जब दुष्कर्म किया गया, उस वक्त वह 16 वर्ष थी। वर्ष 2013 में किए गए संशोधन के जरिए ही इसे बढ़ाकर 18 वर्ष किया गया है। ऐसे में सजायाफ्ता को राहत नहीं दी जा सकती है। खूंटी सिविल कोर्ट ने सचिंद्र सिंह को नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में नौ फरवरी 2021 को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई थी। सचिंद्र सिंह ने खूंटी सिविल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी।


घटना पांच फरवरी 2005 को हुई
प्राथमिकी के अनुसार, घटना पांच फरवरी 2005 को हुई। उस समय पीड़िता की उम्र 15 वर्ष ही थी। 19 अप्रैल  2006 को गवाही के समय उसकी उम्र 15 वर्ष थी। पीड़िता की जांच करने वाले चिकित्सक ने रेडियोलाजिस्ट ने पीड़िता की उम्र 14-16 वर्ष आंकी थी। यह साबित करने के लिए बचाव पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है कि घटना के समय पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से अधिक थी। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि शारीरिक संबंध बनने के दौरान नाबालिग की सहमति थी। अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता की सहमति आरोपित को उसके अपराध से मुक्त करने का आधार नहीं हो सकती है।


क्या है मामला 
दरअसल, खूंटी सिविल कोर्ट ने सचिंद्र सिंह को नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में 9 फरवरी 2021 को दोषी करार दिया गया था। सचिंद्र सिंह ने खूंटी सिविल कोर्ट के फैसले को लेकर क्रिमिनल अपील दाखिल कर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि उसने जबरन यौन संबंध स्थापित नहीं किया था, बल्कि नाबालिग की भी उसमें सहमति थी। इस कारण उस पर यौन शोषण का मामला नहीं चलाया जा सकता। अदालत को बताया गया कि पीड़िता ने अपना उम्र सही नहीं बताया है। इस संबंध में निचली अदालत में भी बात रखी गयी थी, लेकिन निचली अदालत ने इस मामले में उसके पक्ष पर गौर नहीं किया है। सभी तथ्यों पर विचार किए बिना ही आदेश दिया गया है। इसलिए निचली अदालत के आदेश को रद्द किया जाए और उसे मामले से बरी किया जाए।

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