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Ranchi : हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने जा रहीं झारखंड की स्नेहा बच्चों की शिक्षा के लिए करना चाहती हैं ये काम

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रांची: 

सफलता की कहानी संघर्ष और जूनून से लिखी जाती है।  जिसका ताज़ा उदाहरण पेश कर रही हैं झारखंड की स्नेहा। जिन्होंने पहले जापान से स्कॉलरशिप की बदौलत एक साल की पढ़ाई पूरी की और अब अमेरिका के हॉर्वर्ड जाने की तैयारी में जुटी है। द फ़ॉलोअप की टीम ने स्नेहा से बात की। पढ़िये बातचीत के  प्रमुख अंश -

सवाल - लोग विदेश में पढ़ने का सपना देखते है और आप दुनिया के सबसे नामचीन और बड़े विश्वविद्यालयों  में शुमार हॉर्वर्ड में पढ़ाई के लिए जा रही हैं ,कैसा लग रहा है ?
जवाब - बहुत खुशी हो रही है। सबका साथ मिल रहा है। मैं सपना देखती थी। अब भी देख रही हूं। तब तक जब तक हार्वर्ड चली न जाऊँ। इस उपलब्धि में सबका सहयोग मिला। माँ-पिताजी , दोस्त , पड़ोसी। सबको शुक्रिया कहना चाहूँगी।   

सवाल -  आप झारखंड से है, जो कि एक पिछड़ा राज्य माना जाता है। एक चुनौती ये होती है कि पढ़ाई के लिहाज से सीमित संसाधन वाले राज्य से आने के वाबजूद हार्वर्ड का सपना देखे साथ ही लड़की होने की अलग चुनौतियाँ होती है सामाजिक दृष्टिकोण से देखे तो आप कैसे देखती हैं ? 
जवाब - अभी फरवरी में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी हार्वर्ड - इंडिया कांफ्रेंस में गए हुए थे। जहां उन्होंने  झारखण्ड की आदिवासी संस्कृति की बात की थी। तो मुझे उन्हें देखकर प्रेरणा मिली कि हां! वो कर सकते है तो मैं क्यों नहीं। दूसरे सवाल पर मैं कहना चाहूंगी कि लड़की होने के कारण जितना माँ -बाप चिंता नहीं करते उनसे ज्यादा चिंता कुछ पडोसियों और रिश्तेदारों को होती है। उम्र और पढ़ाई दोनों को आगे बढ़ता देख वे कहते है इतना पढ़ाई करके क्या करना है। एनजीओ टाइम पास है। ये  सब छोड़ो 24 की हो गयी हो शादी  कर लो। 

इस पर मेरा कहना है कि जीवन में लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर छोटी-छोटी सफलताओं को हासिल करते रहना चाहिए। मां - बाप को विश्वास दिलाते रहना चाहिए।

मां- बाप को भी बच्चो पर यकीन होना चाहिए। खासकर लड़कियों को भी बड़े सपने देखने चाहिए। जज़्बा रखना चाहिए। इस प्रकार इस सवाल का हल निकला जा सकता है।   

सवाल - बड़े कॉलेज में पढ़ना वह भी विदेश जाकर ख़ुशी की बात है। लेकिन, इसमें फीस की भी चुनौती होती है। इस बारे में कुछ बताए?
जवाब - मेरा मानना है की विविधता के बीच समस्याओ का हल एक ग्लोबल नेटवर्क के साथ जुड़ कर निकलने का प्रयास आपको जीवन में बहुत कुछ सीखाता है। तो पढ़ाई के लिए खर्च करने से पीछे नहीं हटना चाहिये। रही बात रकम की तो हां करीब 70 लाख की राशि चाहिए होगी। जिसमे से मुझे 21 लाख रुपये स्कॉलरशिप के रूप में दिये जायेंगे। चुनौती है लेकिन अपना प्रयास जरूर करुँगी।  सरकार से भी मेरी अपील है की वह मेरी मदद करे। ताकि इतने बड़े मौके का लाभ मैं लूँ। साथ ही और भी छात्र प्रेरणा लेकर विदेश पढ़ने जा सके। 

सवाल :- किस कोर्स में दाखिला लेने आप हार्वर्ड जा रही है? आसान भाषा में समझाए।
जवाब -  कोर्स का नाम  है लर्निंग डिज़ाइन इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी इन एजुकेशन । इसे एम ऐड कहते है वहाँ। इसमें पढ़ाने  की नयी तकनीक और तकनीक की मदद से पढ़ाई को और कैसे आसान बनाया जा सकता है। बेसिकली ये पढ़ाई उस चीज़ की है।  

सवाल :- माता पिता के साथ पड़ोसियों के प्रतिक्रिया आपके विदेश जाने को लेकर क्या है ?
जवाब :- मैं  परिवार से पहली शख्स हूँ जो विदेश जा रही है। सब बहुत खुश है आशीर्वाद दे रहे हैं। पिता बैंक से सेवानिवृत हो चुके है। तो वह अब आम आदमी  की श्रेणी  में आते है। तो लोन मिलना अब थोड़ा मुश्किल है। वह चिंतित है। बाकी दोस्त , पडोसी सब बहुत खुश हैं। 

सवाल :- लोग सोचते है पढ़ाकू लोग विदेश जाते हैं। पढ़ाई के अलावा और कुछ पसंद है ?
जवाब :- ऐसा नहीं है. मुझे संगीत का शौक है। मैंने प्रयाग संगीत समिति में ग्रेजुएट किया है इलहाबाद से। इसके साथ मुझे नए लोगों से मिलना उन्हें ओब्सर्व करना,उनसे सीखना पसंद है। चाहे वो पढ़ाई के क्षेत्र में हो या किसी और क्षेत्र में।