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झारखंड में 3000 लोगों के इलाज के लिए केवल 1 डॉक्टर, बदहाल हैं स्वास्थ्य केंद्र; WHO का मानक क्या है

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द फॉलोअप डेस्क, रांची:

पाकिस्तान में लोग आटा नहीं खरीद पा रहे हैं। इस बात से देश की जनता को किस टाइप का प्लेजर मिलता है यह तो वही जानें। भारतीय आम चुनाव में पाकिस्तान में आटा-दाल की कीमत से रैलियों में उमड़ी भीड़ को कौन सा चरमसुख मिलता है, ये तो नेता जानें। संभवत मिलता ही होगा, वरना महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी, आवास और पेयजल छोड़कर कोई बेवकूफ ही भारत की जनता के सामने पाकिस्तान की मुश्किलें गिनाएगा और जनता लहालोट हो जाएगी लेकिन, अगर चुनावी रैलियों में पाकिस्तान मुद्दा है तो फिर अल्लाह माफ करे। खैर। आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है। स्वास्थ्य इंसान की प्राथमिक जरूरत है और मूल अधिकार भी। हां, ये अलग बात है कि संविधान में इसे राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में जगह मिली है जहां ये सरकार के संसाधनों पर निर्भर करता है और यहीं खेल हो जाता है। आम चुनाव में आप पाकिस्तान की मुश्किलों पर चटखारे लीजिए लेकिन हम स्वास्थ्य की बात करेंगे क्योंकि ये हमारा काम है। संभवत, यही हमारा काम है। 

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की रिपोर्ट में क्या है
दरअसल, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने ताजा-ताजा रिपोर्ट जारी की है। ये देश में नागरिकों के लिए डॉक्टरों की उपलब्धता के बारे में है। हम ज्यादा व्यापक नहीं जाएंगे। बात केवल झारखंड की होगी। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 3 हजार नागरिकों पर 1 डॉक्टर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से 1000 लोगों पर 1 डॉक्टर होने चाहिए। इसका मतलब ये हुआ कि हर डॉक्टर पर 2 हजार अतिरिक्त लोगों की जिम्मेदारी है। कैसे हो पाएगा। चलिए मान लेते हैं कि रोज सारे 3000 लोग बीमार नहीं पड़ेंगे लेकिन किसी हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति में क्या होगा। समझाने की जरूरत नहीं है, आप कोरोना में देख चुके हैं। 

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं
रिपोर्ट्स के मुताबिक झारखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 73 फीसदी पद खाली हैं। डॉक्टरों के 684 स्वीकृत पद हैं लेकिन केवल 186 डॉक्टर की काम कर रहे हैं। चिकित्सा केंद्रों में चिकित्सकों के 498 पद खाली हैं। साल 2021 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रूरल हेल्थ स्टैटिक्स सर्वे कराया था। रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में तब कुल 203 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित थे। इनमें से 140 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में केवल 1 डॉक्टर है। 203 में से कोई भी स्वास्थ्य केंद्र ऐसा नहीं है जहां 4 से ज्यादा डॉक्टर हो। 14 ऐसे स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां 3 डॉक्टर काम करते हैं। 42 स्वास्थ्य केंद्र ऐसे थे जिसमें केवल 2 चिकित्सक कार्रत थे। 7 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे थे जिनमें 1 भी डॉक्टर नहीं है। 55 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में को भी महिला डॉक्टर नहीं है। 

ग्रामीण स्वास्थ्य सिस्टम की दशा और भी खराब
सवाल केवल डॉक्टरों का नहीं है। झारखंड में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा भी संतोषजनक नहीं है। प्रदेश के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में बिल्डिंग बना दी गई है लेकिन रखरखाव के अभाव में भवन जर्जर हो रहे हैं। कई तो इस्तेमाल के लायक नहीं रहे। इन स्वास्थ्य केंद्रों में बेड, ऑक्सीजन, दवाइयां, डॉक्टर और जांच उपकरण जैसी आधारभूत सुविधायें नहीं है। 3300 से ज्यादा स्वास्थ्य उपकेंद्र केवल नर्सों के भरोसे चल रहे हैं। झारखंड में साल 2000 में केवल 3 मेडिकल कॉलेज थे। अब 9 हैं। यहां एमबीबीएस की 920 सीटें हैं लेकिन उनको पढ़ाने के लिए प्रोफेसर नहीं हैं। 

झारखंड में सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते डॉक्टर
झारखंड सरकार को मेडिकल कॉलेजों में टीचिंग और नॉन टीचिंग डॉक्ट्स ढूंढ़ नहीं मिल रहे। पिछले साल अगस्त महीने में प्रखंड और जिला अस्पताल सहित मेडिकल कॉलेजों के विभिन्न पदों पर डॉक्टरों के रिक्त पद पर बहाली के लिए आवेदन मांगे गये थे। लोग इंटरव्यू के लिए नहीं आये। रिम्स अस्पताल में 100 रेजिडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए इंटरव्यू का आयोजन हुआ। केवल 33 लोगों का चयन नहीं किया जा सका। ऐसा नहीं है कि योग्य लोग नहीं मिले बल्कि लोग आये ही नहीं। रिम्स निदेशक डॉ. राजीव कुमार ने तब बताया था कि सभी संकायों के लिए महज 58 डॉक्टर ही इंटरव्यू के लिए पहुंचे थे। 

सितंबर 2023 में जेपीएससी ने नॉन टीचिंग विशेषज्ञ चिकित्सकों के 771 पदों के लिए इंटरव्यू आयोजित किया था। केवल 266 लोग ही इंटरव्यू देने पहुंचे। साल 2015 में 654 पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन मांगा गया था। 492 पद खाली रह गये। इंटरनल रिपोर्ट्स बताती है कि डॉक्टरों को सरकारी नौकरी में दिलचस्पी नहीं है। ज्यादातर लोग कॉर्पोरेट और निजी अस्पताल की ऊंचे पैकेज वाली नौकरी पसंद करते हैं। डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में ड्यूटी भी नहीं करना चाहते। वे बड़े शहर में रहना चाहते हैं। 

झारखंड में निजी अस्पतालों पर हुई थी बड़ी कार्रवाई
झारखंड में निजी अस्पतालों की मनमानी किसी से छुपी नहीं है। आयुष्मान भारत योजना का हाल भी सब जानते हैं। 4 अक्टूबर 2023 को नवभारत टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में आयुष्मान भारत योजना में फर्जीवाड़ा के आरोप में 400 से ज्यादा हॉस्पिटल के खिलाफ कार्रवाई की गई। 78 अस्पतालों को डि इम्पैनल्ड किया गया। 89 अस्पतालों से 1 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला गया। 250 से ज्यादा अस्पतालों को शो-कॉज किया गया।

स्वास्थ्य पर सरकारी दावों की हकीकत स्याह है
बतौर नागरिक, इतना आंकड़ा पेश करने के बाद आप शायद समझ पाए हों कि प्रदेश में स्वास्थ्य की दशा क्या है। विभागीय मंत्री बिल्डिंग और उपकरणों का फीता काटने को हेल्थ में सुधार समझते हैं तो समझने दीजिए। उन्हें शायद अच्छे से पता है कि वे क्या कर रहे हैं। समझना आपको है कि क्या नागरिक होने के नाते क्या चाहिए। यदि आपने भूगोल और समाजशास्त्र पढ़ा है, और नहीं भी पढ़ा तो समझिए। केवल खनिज, नदी और पहाड़ ही संसाधन नहीं हैं। किसी देश प्रदेश के नागरिक भी संसाधन हैं। ह्यूमन रिसोर्स बोलते हैं इनको। रिसोर्स तभी सकारात्मक भूमिका अदा कर सकता है जब उसका संरक्षण और संवर्धन हो।

इंसान के संरक्षण और संवर्धन के लिए क्या चाहिए। 2 बेसिक चीजें हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य। देश में यही 2 बेसिक चीजें सबसे महंगी है और आम पहुंच से बहुत दूर। पार्टियां मेनिफेस्टो में क्या बोलती है। उसपर मत जाइये। कसमें वादे प्यार वफा सब, वादे हैं वादों का क्या।

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