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कुरमी/कुड़मी समाज के लोग क्यों नहीं हो सकते आदिवासी, जानकारों ने ये बताया कारण 

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रांची  
प्रेस क्लब रांची में आज आदिवासी समाज द्वारा प्रेस वार्ता करके कुरमी/कुड़मी को आदिवासी सूची में जबरन शामिल करने की मांग का विरोध किया गया। इस प्रेस कांफ्रेंस में शशि पन्ना, प्रेमचंद मुर्मू,  कुंदरेसी मुंडा, अनिल पन्ना, अमरनाथ लकड़ा, आदि शामिल थे। शशि पन्ना ने कहा कि कुरमी/कुड़मी को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग को लेकर आदिवासी समाज आक्रोशित है। कुरमी/कुड़मी की भाषा, संस्कृति, परंपरा, रीति रिवाज कुछ भीं आदिवासी से मेल नहीं खाता है। लोकुर कमिटी द्वारा जो 5 मापदंड तय किये गये हैं, उसमें कुरमी/कुड़मी किसी भी अहर्ता को पूरा नहीं करता है।

भाषा परिवार है अलग 
कहा, इनकी भाषा कुरमाली, बंगला और मगही का अपभ्रंश है। ये इंडो आर्यन लैंग्वेज फैमिली से है। आदिवासी का भाषा ड्राविडियन और ऑस्ट्रो एशियाटिक लैंग्वेज फैमिली से है। क्षेत्र के साथ साथ इनकी भाषा भी बदल जाती है। बिहार में मगही, झारखंड में खोरठा और कुरमाली, बंगाल में बगला, ओडिशा में उड़िया भाषा बोलते हैं। खुद को आदिवासी से अलग रखते हैं फिर भी आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग कर रहे। कहा, आदिवासी की पारंपरिक त्योहार, रीति रिवाज से दूर रहते हैं।  इनके द्वारा हाल में सरहुल पर्व की शोभा यात्रा में किसी भी तरह का कोई योगदान नहीं रहा। इनके द्वारा किसी भी तरह की कोई झांकी भी नहीं निकाली गयी।  


आदिवासी समाज हाईकोर्ट ने इंटरवेन करेगा 
बता दें कि कुरमी/कुड़मी समाज द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसको हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। इस पर शशि पन्ना ने कहा कि आदिवासी समाज द्वारा इस केस में इंटरवेन किया जाएगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एक बयान और सुप्रीम कोर्ट के कांस्टीट्यूशनल बेंच का जजमेंट का हवाल देते हुए कहा कि हाई कोर्ट किसी भी आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का निर्देश नहीं दे सकता है। कुरमी/कुड़मी को आदिवासी में शामिल करने से आदिवासी की जनसंख्या 50% से अधिक बढ़ जाएगी। इसके बाद यह छठवीं अनुसूची लागू हो जाएगी।


सड़क से सदन तक आंदोलन 
सामाजिक कार्यकर्ता कुंदरेसी मुंडा ने कहा कि कुरमी/कुड़मी मध्य भारत से माइग्रेट करके छोटा नागपुर में आए हैं। उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। जैसे हमारे आदिवासी भाई असम में 200 साल पहले जाकर के बसे हैं फिर भी उन्हें वहां पर अनुसूचित जनजाति की सूची में नहीं रख रखा गया है क्योंकि वह वहां के मूलनिवासी नहीं हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पन्ना ने कहा कि कुरमी/कुड़मी के कुछ नेता अपनी राजनीति फायदे के लिये आदिवासी बनना चाहते हैं। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमचंद मुर्मू ने कहा कि कुरमी/कुड़मी आर्यन प्रजाति के है बल्कि आदिवासी लोग ड्राविडियन और प्रोटो एस्ट्रो लॉयड प्रजाति के होते है। भविष्य में अगर दोबारा इस तरह की मांग की गई तो आदिवासी समाज द्वारा सड़क से सदन तक जोरदार आंदोलन किया जाएगा।

 

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