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काशी में मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली का आयोजन, चिता के भस्म से खेली गई होली

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द फॉलोअप डेस्क  

देश भर में शुक्रवार 14 मार्च को होली का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा, लेकिन काशी में इस पर्व की शुरुआत पहले ही हो चुकी है। मंगलवार को काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर एक खास प्रकार की होली खेली गई। इस होली को 'मसाने की होली' कहा जाता है, जो भगवान शिव से जुड़ी होने के कारण धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखती है।
मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं की भस्म से होली खेलने का यह आयोजन देखने के लिए काशी सहित देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु पहुंचे। यहां पर होली खेलते समय वातावरण भक्तिमय और उल्लास से भरा हुआ था। भस्म के साथ रंग गुलाल और अबीर भी उड़ते रहे, जो इस अद्भुत अनुभव को और भी रंगीन बना रहे थे।
हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन काशी में मसाने की होली का आयोजन होता है। रंगभरी एकादशी से ही काशी में होली का प्रारंभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव मां गौरा का गौना कराकर लौटते हैं और इस दौरान रंग गुलाल उड़ता है। माना जाता है कि भगवान शिव के साथ उनके गण होली का आनंद लेते हैं, लेकिन भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व, प्रेत आदि इस दिन होली नहीं खेल पाते।
इन असुरों के अनुरोध पर भगवान शिव अगले दिन महाश्मशान पहुंचते हैं और वहां चिता की भस्म से होली खेलते हैं। इस धार्मिक मान्यता और परंपरा के अनुसार हर साल काशी में मसाने की होली का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु भगवान शिव के स्वरूप 'मशाननाथ' के विग्रह पर गुलाल और चिता की राख चढ़ाकर इस होली की शुरुआत करते हैं।
यह होली काशी में दुनिया का एकमात्र आयोजन है जहां महाश्मशान के प्रतीक चिता की भस्म से होली खेली जाती है। इस आयोजन के साथ ही काशी में होली का रंग चटक हो जाता है और हर तरफ होली का उल्लास फैल जाता है।
 

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