द फॉलोअप डेस्क
नयी दिल्ली: नटवर सिंह ऐसे शख्स थे, जिन्होंने कूटनीति और राजनीति के क्षेत्र में तो एक खास पहचान बनाई ही, लेकिन जब लेखन के क्षेत्र में उन्होंने हाथ आजमाए, तो वहां भी उन्हें काफी प्रशंसा मिली। इन खूबियों के अलावा उनके व्यक्तित्व की जिन खासियत ने उन्हें दशकों तक लोकप्रिय बनाए रखा, वह थी उनकी हाजिर जवाबी और साफगोई।
नटवर सिंह की गिनती कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में होती थी, लेकिन उनके पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ कभी बेहद घनिष्ट तो कभी बेहद तल्खी भरे रिश्ते रहे। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिर उनके बेटे राजीव गांधी का बेहद खास या करीबी माना जाता था, लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के पहले कार्यकाल में उनके ऊपर कुछ आरोप लगे, जिसके बाद सोनिया गांधी के साथ पहले उनका मनमुटाव हुआ और फिर धीरे-धीरे रिश्ते तल्ख होते चले गए। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का शनिवार देर रात निधन हो गया। वह 93 वर्ष के थे। उनके परिवार से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि नटवर सिंह पिछले कुछ हफ्तों से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे और शनिवार रात को उन्होंने अंतिम सांस ली। नटवर सिंह का जन्म 1931 में राजस्थान के भरतपुर जिले में हुआ था। वह ‘कैरियर डिप्लोमैट’ थे, लिहाजा जब वह राजनीति में आए तो उनके पास कूटनीतिक मामलों की समझ, पकड़ और अनुभवों की थाती भी साथ थी।
नटवर सिंह 1953 में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुने गए, लेकिन 1984 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया। उन्होंने चुनाव जीता और 1989 तक केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में सेवाएं दीं।
जब 2004 में कांग्रेस सत्ता में आई, तो नटवर सिंह को विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान, वह एक प्रकार से राजनीति के क्षेत्र में खुलकर सामने आए। हालांकि, 18 महीने बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की वोल्कर समिति ने उन्हें और कांग्रेस पार्टी, दोनों को इराकी तेल घोटाले में अवैध भुगतान के लाभार्थियों के रूप में नामित किया था।
नटवर सिंह को कई युवा राजनयिक आदर्श मानते हैं और कई ने कूटनीति के क्षेत्र में शानदार मुकाम हासिल भी किया है।
नटवर सिंह ने चीन, अमेरिका, पाकिस्तान और ब्रिटेन जैसे देशों में महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएं दीं। उन्हें 1983 में नयी दिल्ली में आयोजित सातवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन का महासचिव और उसी वर्ष यहां आयोजित राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक का मुख्य समन्वयक भी नियुक्त किया गया था।
नटवर सिंह ने मार्च 1982 से नवंबर 1984 तक विदेश मंत्रालय में सचिव के रूप में कार्य किया। उन्हें 1984 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके बाद 1984 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और राजस्थान के भरतपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।
नटवर सिंह को 1985 में राज्य मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई और उन्हें इस्पात, कोयला एवं खान तथा कृषि मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। 1986 में उन्होंने विदेश राज्य मंत्री का पद संभाला।
वह कुछ वक्त तक पार्टी से दूर रहे, लेकिन जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान थामी तो वह पार्टी में वापस आ गए। 2004 में जब कांग्रेस पुनः सत्ता में आई तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नटवर सिंह को विदेश मंत्री नियुक्त किया।
नटवर सिंह का अभी तक का सफर ठीक था, लेकिन अक्टूबर 2005 में एक रिपोर्ट आई, जिसके बाद उन्हें न सिर्फ पद से इस्तीफा देना पड़ा, बल्कि पार्टी से भी उनकी दूरी बढ़ती चली गई।
दरअसल, पॉल वोल्कर की अध्यक्षता वाली स्वतंत्र जांच समिति ने तेल के बदले खाद्य कार्यक्रम में भ्रष्टाचार की जांच पर अपनी रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया था कि नटवर सिंह के परिवार को तेल के बदले खाद्य कार्यक्रम में लाभ पहुंचाया गया। जिस वक्त यह रिपोर्ट आई, उस वक्त नटवर सिंह आधिकारिक यात्रा पर विदेश गए हुए थे।
इस जांच रिपोर्ट के आने के बाद हड़कंप मच गया और नटवर सिंह को पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनके मन में इस बात की कसक थी कि सोनिया गांधी उनके बचाव में नहीं आईं और इन्हीं सब मनमुटाव के बीच नटवर सिंह ने कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस छोड़ने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि नटवर सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो सकते हैं, लेकिन सभी अटकलों के उलट 2008 के मध्य में उन्होंने और उनके बेटे जगत ने मायावती नीत बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का हाथ थाम लिया। हालांकि, अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें चार महीने के भीतर ही पार्टी ने निष्कासित कर दिया गया। नटवर सिंह के बेटे जगत बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले नटवर सिंह सोनिया गांधी के मुखर आलोचक बन गए और अनेक साक्षात्कारों तथा कार्यक्रमों में उन्होंने सोनिया के खिलाफ खुलकर अपनी बात भी रखी।
नटवर सिंह ने कई किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘द लिगेसी ऑफ नेहरू : अ मेमोरियल ट्रिब्यूट’ और ‘माई चाइना डायरी 1956-88’ शामिल हैं। उनकी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज नॉट इनफ’ को लोगों ने खूब पसंद किया।
नटवर सिंह का जन्म भरतपुर रियासत में एक कुलीन जाट हिंदू परिवार में हुआ था, जो भरतपुर के शासक वंश से संबंधित था।
उन्होंने मेयो कॉलेज, अजमेर और ग्वालियर के सिंधिया स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली।
नटवर सिंह के करीबी लोग हमेशा उनके ज्ञान, कूटनीति में गहरी अंतर्दृष्टि और उनकी हाजिर जवाबी के लिए उनकी प्रशंसा करते थे।