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ओलचिकी में अनुदित में हनुमान चालीसा का विमोचन करेंगी राष्ट्रपति, जामताड़ा के छात्र ने किया अनुवाद 

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द फॉलोअप डेस्क 
हनुमान चालीसा का अनुवाद संथाल आदिवासियों की लिपि ओलचिकी में किया गया है। इसका विमोचन राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू के हाथों से होगा। जामताड़ा के रहने वाले रबिलाल हांसदा ने हनुमान चालीसा का अनुवाद ओलचिकी लिपि में किया है। बता दें कि हासंदा दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री विश्वविद्यालय से संस्कृत में बीएड की पढाई कर रहे हैं। हांसदा ने बताया कि जल्दी ही वे रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक महाग्रंथों का भी अनुवाद ओलचिकी में करने वाले हैं। इससे आदिवासी दर्शन और हिंदू दर्शन एक दूसरे के करीब आयेंगे। कहा कि दोनों ही दर्शन में कई बातें समान हैं। 

इस दिन होगा विमोचन 


गौरतलब है कि हांसदा ने हाल ही में हनुमान चालीसा का ओलचिकी संस्करण तैयार किया है। इसकी एक प्रति उन्होंने विवि के कुलपति मुरली मनोहर पाठक को भेंट की थी। साथ ही आग्रह किया था कि इसका विमोचन राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू के हाथों से हो। कुलपति ने हांसदा के आग्रह को स्वीकार किया और विमोचन के लिए राष्ट्रपति को आमंत्रित किया। मिली खबर के मुताबिक विवि में पांच दिसंबर को दीक्षांत समारोह होगा। इसी मौके पर राष्ट्रपति के हाथों अनुदित हनुमान चालीसा का विमोचन किया जायेगा। दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगी। 

हांसदा ने बताये ये रोचक तथ्य 

जामताड़ा के कुंडहित के रहने वाले रबिलाल हांसदा ने बताया कि जन्म से लेकर मृत्यु तक किये जाने वाले कई अनुष्ठानों में आदिवासी और सनातन परंपरा में समानता है। बताया कि बच्चे के जन्म के समय उसे तेल लगाया जाता है। इसके बाद नाइकी हड़ाम नवजात का नामकरण करते हैं। इसी तरह की परंपरा सनातन संस्कृति में भी मिलती है। इसी तरह आदिवासी संस्कृति में मृत्यु के बाद श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। इस दौरान सारे अनुष्ठान बायें हाथ से किये जाते हैं। इसी तरह की परंपरा सनातन संस्कृति में भी पायी जाती है।