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ST आयोग ने संताल में घुसपैठ पर तैयार की किताब, इन जिलों पर दिया गया विशेष ध्यान

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द फॉलोअप डेस्क
दिल्ली में शुक्रवार को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष किशोर मकवाना को आयोग की सदस्य आशा लकड़ा ने झारखंड के संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ से संबंधित रिपोर्ट पर आधारित एक पुस्तक भेंट की। आशा लकड़ा ने इस रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए कहा कि यह किताब झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठ के प्रभाव और जनसांख्यिकी परिवर्तन पर आधारित है।

आशा लकड़ा ने दी जानकारी 
इस मौके पर आशा लकड़ा ने जानकारी दी कि इस किताब में रोटी, बेटी और माटी की सुरक्षा के मुद्दे के साथ-साथ संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ से आदिवासी समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख किया गया है। आशा लकड़ा ने यह भी बताया है कि यह रिपोर्ट झारखंड सरकार को पहले ही भेजी जा चुकी है। आयोग की सदस्य ने यह स्पष्ट किया है कि आयोग का उद्देश्य आदिवासी समाज की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा करना है। यही कारण है कि संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के विषय पर किताब तैयार की गई है।किताब में क्या बताया गया है 
मीडिया रिपोर्ट्स से जानकारी मिली है कि किताब में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण संताल परगना की जनसांख्यिकी में व्यापक बदलाव के बारे में बताया गया है। इस किताब में खासकर साहिबगंज और पाकुड़ जिलों में 1971 के बाद घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशियों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा घुसपैठ की प्रक्रिया अभी भी जारी है, जिसके आंकड़े लगातार बदल रहे हैं। किताब में कई ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं, जो बांग्लादेशी घुसपैठ की पुष्टि करते हैं। 

रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि घुसपैठिए आदिवासी युवतियों को अपने जाल में फंसाते हैं। उन्हें शादी करने के लिए मजबूर करते हैं। इसके साथ ही आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा करने के लिए दानपत्रों का भी जिक्र किया गया है। 

किताब में 4 जिलों पर दिया गया विशेष ध्यान
इस किताब में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर 4 जिलों—साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा और जामताड़ में विशेष ध्यान दिया गया है। इसके साथ ही बोरियो प्रखंड से कुछ लड़कियों के गायब होने की घटनाओं को भी प्रमुख रूप से उठाया गया है। इससे इन घुसपैठियों के खिलाफ और सख्त कदम उठाने की आवश्यकता महसूस होती है। बताया जा रहा है कि यह किताब आदिवासी समाज की सुरक्षा के संदर्भ में एक अहम दस्तावेज बन चुकी है, जो भविष्य में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा और कार्रवाई का आधार बन सकती है।

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