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26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

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द फॉलोअप डेस्कः
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एक महिला ने 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति मांगी थी। कोर्ट ने साफ कह दिया कि भ्रूण पूरी तरह स्वस्थ है। मेडिकल बोर्ड ने इसकी पुष्टि भी कर दी है इसलिए, बच्चे को अब अबोर्ट नहीं किया जा सकता। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में हुई। कोर्ट में कहा गया कि भ्रूण को 24 सप्ताह से अधिक समय का हो गया है और यह अवधि उस अधिकतम सीमा के पार है जिसमें गर्भपात की अनुमति दी जाती है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 अक्टूबर को महिला को गर्भ की चिकित्सीय समाप्ति की अनुमति दी थी। 9 अक्टूबर को अपने पहले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि महिला डिप्रेशन में है और उसके 2 बच्चे पहले से हैं। वह तीसरे बच्चे को पालने की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में नहीं है।

 
 

छह अक्तूबर को शीर्ष अदालत के सामने रिपोर्ट प्रस्तुत की
यह मुद्दा उस वक्त उठा, जब एम्स मेडिकल बोर्ड के एक चिकित्सक ने 10 अक्तूबर को एक ई-मेल भेजा था। इसमें कहा गया था कि इस चरण पर गर्भ गिराने पर भ्रूण के जीवित रहने की प्रबल संभावना है। इससे पहले बोर्ड ने महिला की जांच की थी और छह अक्तूबर को शीर्ष अदालत के सामने रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। 

माता-पिता का निर्णय हो अंतिम 
आज की सुनवाई में पीठ ने कहा कि महिला की डिलीवरी एम्स में सरकारी खर्च पर होगी। जन्म के बाद माता-पिता को ही आखिरी फैसला लेना होगा कि वह बच्चे को लालन-पालन करना चाहते हैं या फिर किसी को गोद देना चाहते हैं। इसमें सरकार हरसंभव मदद करेगी। पीठ ने गुरुवार को इसी मामले पर सुनवाई करते हुए कहा था कि हम बच्चे को नहीं मार सकते। साथ ही पीठ ने कहा था कि एक अजन्मे बच्चे के अधिकारों और स्वास्थ्य के आधार पर उसकी मां के निर्णय लेने के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की जरूरत है।


दो जजों की पीठ में असहमति के बाद चीफ जस्टिस के पास पहुंचा केस

इससे पहले, इस मामले की सुनवाई दो जजों की पीठ के सामने हुई. 11 अक्टूबर को हुई सुनवाई में पीठ ने खंडित फैसला सुनाया. एक जस्टिस ने गर्भपात की अनुमति देने में अनिच्छा प्रकट की, वहीं दूसरे जस्टिस का कहना था कि महिला के फैसले का सम्मान होना चाहिए। जस्टिस हिमा कोहली ने हैरानी जताते हुए कहा कि कौन सी अदालत कहेगी कि 'एक भ्रूण की दिल की धड़कनों को रोका जाए'। उन्होंने कहा कि वह महिला को गर्भपात की इजाजत नहीं दे सकती हैं। 


एक मामले में गर्भ गिराने की अनुमति दी गई थी
 ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक महिला को अपने 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत दी थी, लेकिन उस भ्रूण में दिल से संबंधित गंभीर बीमारी नजर आ रही थी. जबकि अभी सुप्रीम कोर्ट ने जिस याचिका को खारिज किया है, वह भ्रूण और उसकी मां दोनों स्वस्थ हैं। 

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