द फॉलोअप डेस्क
देश के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट हरीश चंद्र शुक्ला, जिन्हें 'काक' के नाम से जाना जाता था, का बुधवार को निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। उनके परिवार ने इस दुखद समाचार की पुष्टि की। उनका अंतिम संस्कार गाजियाबाद के हिंडन शमशान घाट पर किया गया, जहां परिजनों और मित्रों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
हरीश चंद्र शुक्ला का जन्म 16 मार्च 1940 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के छोटे से गाँव पुरा में हुआ था। उनके पिता, शोभा नाथ शुक्ला, एक स्वतंत्रता सेनानी थे। पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर काक ने अपने कार्टूनों के माध्यम से भारतीय समाज और राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी।
काक का स्वर्णिम युग 1983 से 1990 के बीच माना जाता है, जब अखबार पढ़ने वाले अधिकतर लोग पहले उनके कार्टून देखते थे और फिर समाचार पढ़ते थे। उनकी हास्यपूर्ण दृष्टि और तीखे कटाक्ष उनके कार्टूनों को विशेष धार देते थे, जिससे वे पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे।
उनका पहला कार्टून 1967 में दैनिक जागरण समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ था। काक ने 1983 से 1985 तक जनसत्ता (इंडियन एक्सप्रेस समूह) और 1985 से 1999 तक नवभारत टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया समूह) में संपादकीय कार्टूनिस्ट के रूप में कार्य किया।
काक को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए। 2003 में उन्हें हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'काका हाथरसी सम्मान' से नवाजा गया। इसके अलावा, केरल ललित कला अकादमी और केरल कार्टून अकादमी ने भी उन्हें सम्मानित किया।
2009 में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कार्टूनिस्ट्स, बैंगलोर ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। 2016 में उन्हें पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और 2017 में भारतीय प्रेस परिषद द्वारा विशेष सम्मान प्राप्त हुआ। काक के निधन से भारतीय कार्टून जगत ने एक अनमोल रत्न खो दिया है। उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।