द फॉलोअप डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत किसी सरकारी सेवक के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच आवश्यक नहीं है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पूर्व प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है, हालांकि कुछ मामलों में यह वांछनीय हो सकता है। यह निर्णय उन सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो प्रारंभिक जांच की आड़ में FIR से बचने का प्रयास करते थे।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य प्राप्त सूचना की सत्यता की पुष्टि करना नहीं है, बल्कि यह निर्धारित करना है कि क्या सूचना से संज्ञेय अपराध का संकेत मिलता है। इस प्रकार, प्रारंभिक जांच का दायरा संकीर्ण और सीमित होता है, ताकि अनावश्यक उत्पीड़न से बचा जा सके और वास्तविक आरोपों को दबाया न जाए। प्रत्येक मामले में प्रारंभिक जांच की आवश्यकता तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगी।
यह निर्णय कर्नाटक राज्य सरकार की उस अपील पर आया है, जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा एक लोक सेवक के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में दर्ज FIR को रद्द कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। इस फैसले से स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में FIR दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं है, जिससे भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित होगी।