logo

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है लोहड़िया जनजाति

616news.jpg

द फॉलोअप टीम,  रांची झारखंड के 4 जिलों के 11 गांवों में निवास करनेवाली लोहड़िया जनजाति झारखंड निर्माण के बाद से ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। पिछले दो दशकों में अजीबोगरीब प्रशासनिक फैसलों ने लोहड़िया जनजाति की समस्याओं और भी उलझा दिया है। हालात ये है कि चतरा पलामू और हजारीबाग जिले में लोहड़िया समाज के लोगों को जनजाति का प्रमाण पत्र मिल रहा है, लेकिन व रांची जिले में समाज के लोगों का जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं हो रहा है, जो प्रमाण पत्र जारी हो रहे हैं, उसमें जनजाति का नाम लोहरा (लोहड़िया) लिखा जा रहा है। 
आरक्षण का लाभ नहीं मिलता 
रांची और पलामू में जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं होने से लोहड़िया जनजाति के लोग न चाहते हुए भी सामान्य वर्ग में शामिल हो गए हैं। इसके कारण बच्चों को मिलनेवाली छात्रवृत्ति व अन्य सुविधाओं नहीं मिल पा रही है। यही नहीं नौकरी में मिलनेवाला आरक्षण का लाभ भी समाज के लोगों को नहीं मिल पा रहा है। 
सरकारी दस्तावेजों से ऐसे गायब हुए लोहड़िया  
1950 के Constitution (Scheduled Tribes) Order 1950  के तहत बिहार की जनजातियों की सूची में लोहड़िया समाज 20वें नंबर पर दर्ज है लेकिन 1956 के मोडिफिकेशन दस्तावेजों से लोहड़िया समाज का नाम गायब हो गया है, और उसकी जगह लोहारा या लोहरा दर्ज कर दिया गया है। इस दस्तावेज के आलोक में वर्ष 1960 से ही समाज को जो जाति प्रमाण पत्र जारी हो रहा है, वो लोहरा जनजाति के नाम से दर्ज हो रहा है।   
इन गांवों में 2908 लोहड़िया जनजाति 
64 वर्षों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही लोहड़िया जनजाति की जनसंख्या काफी कम है। संभवतः यही कारण है कि समाज के लोगों की आवाज राजनीतिक गलियारे में दब जाती है। 2002 के एक शोध के अनुसार झारखंड के चार जिलों के 7 प्रखंडों के 11 गांव में रहनेवाले लोहड़िया जनजाति की जनसंख्या मात्र 2908 है। इसमें रांची के बुढ़मू प्रखंड के उमेडंडा में 476 व राय में 65, कांके प्रखंड के पिठोरिया में 8, नामकुम प्रखंड के ओवरिया में 315, हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड के गोसाई वलिया में 268, नयाटांड में 417, केरेडारी प्रखंड के हेन्दगिर में 91 व पगार में 108, चतरा के टंडवा प्रखंड के टंडवा में 837 लोग व बड़गांव में 252, पलामू के बालूमाथ प्रखंड के मुरपा में 71 लोग शामिल हैं।