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लाखों मजदूर मजबूर, नहीं करना चाहते पलायन.. सरकार के सामने रोजगार की चुनौती।

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द फॉलोअप, रांची: कोरोना काल प्रवासी मजदूरों के लिए अभिशाप बनकर आया है। बड़ा सवाल यह कि झारखंड के मजबूर मजदूर आनेवाले समय में इस विपदा से कभी उबर भी पायेंगेलंबे समय से महानगरों में मजदूरों का पलायन उनके भाग्य से जुड़ा हुआ है। झारखंड में अबतक 5.47 लाख से ज्यादा श्रमिकों की घर वापसी हो चुकी है। अहम सवाल ये कि क्या लाखों मजदूरों को रोजगार मिल पायेगा?

कैसे मिलेगा मजदूरों को रोजगार ?

सुकून देनेवाली बात है कि सूबे के मुखिया हेमंत सोरेन ने फिलहाल महानगरों से आये मजदूरों को मनरेगा से जोड़ दिया है। लेकिन अब बारिश का मौसम मजदूरों के काम को प्रभावित कर रहा है। जब सभी महानगरों से मजदूरों की घर वापसी हुई थी, तब झारखंड सरकार ने आश्वासन दिया था कि राज्य में लौटनेवाले सभी श्रमिकों को यहीं रोजगार दिया जाएगा। इसके बाद अब झारखंड सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी सामने आ गई है। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के लिए रोजगार उपलब्ध करा पाना काफी मुश्किल है।

70 फीसदी मजदूर घर-द्वार छोड़ने को तैयार नहीं

प्रदेश में लौटे सभी मजदूरों के सामने जीविका का सवाल खड़ा हो गया है। सूबे के लगभग 70 प्रतिशत मजदूर महानगरों में नहीं जाना चाहते हैं। उनका कहना है कि अब कोई नौकरी मिले या न मिले, यहीं थोड़े में गुजारा कर लेंगे, लेकिन अपना घर-द्वार नहीं छोड़ेंगे। 

केवल अनाज से समाधान नहीं- सीएम

इधर, झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार की ओर से गरीबों को नवंबर माह तक अनाज देने की घोषणा पर सवाल उठाया है। सूबे के मुखिया हेमंत सोरेन ने कहा कि मौजूदा दौर में मजदूर और उनके परिवार के लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। रोजगार जाने की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पहले से ही लोगों को अनाज दे रही है। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा हूल दिवस का जिक्र नहीं करने पर सवाल खड़ा किया। बहरहाल, वैश्विक महामारी कोरोना काल के बीच केंद्र और राज्य सरकारों की इस बहस के बीच मजबूर मजदूर पीस रहे हैं। उन्हें अपना भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है। उनका मसीहा कौन बनेगा, ये अहम सवाल है।